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Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1237 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] किरियासु भूयगामेसु परमाहम्मिएसु य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: क्रियाओं में, जीव – समुदायों में और परमाधार्मिक देवों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1241 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तेवीसइ सूयगडे रूवाहिएसु सुरेसु अ । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: सूत्रकृतांग के तेईस अध्ययनों में, रूपाधिक अर्थात्‌ चौबीस देवों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1262 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कामं तु देवीहि विभूसियाहिं न चाइया खोभइउं तिगुत्ता । तहा वि एगंतहियं ति नच्चा विवित्तवासो मुनिनं पसत्थो ॥

Translated Sutra: यद्यपि तीन गुप्तियों से गुप्त मुनि को अलंकृत देवियाँ भी विचलित नहीं कर सकती, तथापि एकान्त हित की दृष्टि से मुनि के लिए विविक्तवास ही प्रशस्त है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1265 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कामाणुगिद्धिप्पभवं खु दुक्खं सव्वस्स लोगस्स सदेवगस्स । जं काइयं मानसियं च किंचि तस्संतगं गच्छइ वीयरागो ॥

Translated Sutra: समस्त लोक के, यहाँ तक कि देवताओं के भी, जो कुछ भी शारीरिक और मानसिक दुःख हैं, वे सब कामासक्ति से पैदा होते हैं। वीतराग आत्मा ही उन दुःखों का अन्त कर पाते हैं। जैसे किंपाक फल रस और रूप – रंग की दृष्टि से देखने और खाने में मनोरम होते हैं, किन्तु परिणाम में जीवन का अन्त कर देते हैं, काम – गुण भी अन्तिम परिणाम में ऐसे
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति

Hindi 1369 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नेरइयतिरिक्खाउ मनुस्साउ तहेव य । देवाउयं चउत्थं तु आउकम्मं चउव्विहं ॥

Translated Sutra: आयु कर्म के चार भेद हैं – नैरयिकआयु, तिर्यग्‌आयु, मनुष्यआयु और देवआयु।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति

Hindi 1373 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयाओ मूलपयडीओ उत्तराओ य आहिया । पएसग्गं खेत्तकाले य भावं चादुत्तरं सुण ॥

Translated Sutra: ये कर्मों की मूल प्रकृतियाँ और उत्तर प्रकृतियाँ कही गई हैं। इसके आगे उनके प्रदेशाग्र – द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को सूनो।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति

Hindi 1374 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वेसिं चेव कम्माणं पएसग्गमणंतगं । गंठियसत्ताईयं अंतो सिद्धाण आहियं ॥

Translated Sutra: एक समय में बद्ध होने वाले सभी कर्मों का कर्मपुद्‌गलरूप द्रव्य अनन्त होता है। वह ग्रन्थिभेद न करनेवाले अनन्त अभव्य जीवों से अनन्त गुण अधिक और सिद्धों के अन्तवे भाग जितना होता है। सभी जीवों के लिए संग्रह – कर्म – पुद्‌गल छहों दिशाओं में – आत्मा से स्पृष्ट सभी आकाश प्रदेशों में हैं। वे सभी कर्म – पुद्‌गल बन्ध
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३४ लेश्या

Hindi 1426 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एसा नेरइयाणं लेसाण ठिई उ वण्णिया होइ । तेण परं वोच्छामि तिरियमनुस्साण देवाणं ॥

Translated Sutra: नैरयिक जीवों की लेश्याओं की स्थिति का यह वर्णन किया है। इसके बाद तिर्यंच, मनुष्य और देवों की लेश्या – स्थिति का वर्णन करूँगा।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३४ लेश्या

Hindi 1429 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एसा तिरियनराणं लेसाण ठिई उ वण्णिया होइ । तेण परं वोच्छामि लेसाण ठिइ उ देवाणं ॥

Translated Sutra: मनुष्य और तिर्यंचों की लेश्याओं की स्थिति का यह वर्णन है। इससे आगे देवों की लेश्याओं की स्थिति का वर्णन करूँगा।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३४ लेश्या

Hindi 1433 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तेण परं वोच्छामि तेउलेसा जहा सुरगणाणं । भवणवइवाणमंतर-जोइसवेमाणियाणं च ॥

Translated Sutra: इससे आगे भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की तेजोलेश्या की स्थिति का निरूपण करूँगा।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1467 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दव्वओ खेत्तओ चेव कालओ भावओ तहा । परूवणा तेसि भवे जीवाणमजीवाण य ॥

Translated Sutra: द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से जीव और अजीव की प्ररूपणा होती है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1619 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पंचिंदिया उ जे जीवा चउव्विहा ते वियाहिया । नेरइयतिरिक्खा य मनुया देवा य आहिया ॥

Translated Sutra: पंचेन्द्रिय जीव के चार भेद हैं – नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य और देव।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1667 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] देवा चउव्विहा वुत्ता ते मे कियत्तओ सुण । भोमिज्जवाणमंतर-जोइसवेमाणिया तहा ॥

Translated Sutra: भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक – ये देवों के चार भेद हैं। भवनवासी देवों के दस, व्यन्तर देवों के आठ, ज्योतिष्क देवों के पाँच और वैमानिक देवों के दो भेद हैं। सूत्र – १६६७, १६६८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1669 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असुरा नागसुवण्णा विज्जू अग्गी य आहिया । दीवोदहिदिसा वाया थणिया भवणवासिणो ॥

Translated Sutra: असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिक्‌कुमार, वायुकुमार और स्तनितकुमार – ये दस भवनवासी देव हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1670 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पिसायभूय जक्खा य रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा । महोरगा य गंधव्वा अट्ठविहा वाणमंतरा ॥

Translated Sutra: पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महोरग और गन्धर्व – ये आठ व्यन्तर देव हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1671 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चंदा सूरा य नक्खत्ता गहा तारागणा तहा । दिसाविचारिणो चेव पंचहा जोइसालया ॥

Translated Sutra: चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, ग्रह और तारा – ये पाँच ज्योतिष्क देव हैं। ये दिशाविचारी हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1672 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वेमाणिया उ जे देवा दुविहा ते वियाहिया । कप्पोवगा य बोद्धव्वा कप्पाईया तहेव य ॥

Translated Sutra: वैमानिक देवों के दो भेद हैं – कल्प से सहित और कल्पातीत।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1673 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कप्पोवगा बारसहा सोहम्मीसाणगा तहा । सणंकुमारमाहिंदा बंभलोगा य लंतगा ॥

Translated Sutra: कल्पोपग देव के बारह प्रकार हैं – सौधर्म, ईशानक, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत आरण और अच्युत। सूत्र – १६७३, १६७४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1675 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कप्पाईया उ जे देवा दुविहा ते वियाहिया । गेविज्जाणुत्तरा चेव गेविज्जा नवविहा तहिं ॥

Translated Sutra: कल्पातीत देवों के दो भेद हैं – ग्रैवेयक और अनुत्तर। ग्रैवेयक नौ प्रकार के हैं – अधस्तन – अधस्तन, अधस्तन – मध्यम, अधस्तन – उपरितन, मध्यम – अधस्तन, मध्यम – मध्यम, मध्यम – उपरितन, उपरितन – अधस्तन, उपरितन – मध्यम और उपरितन – उपरितन – ये नौ ग्रैवेयक हैं। विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धक – ये पाँच अनुत्तर
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1679 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वट्ठसिद्धगा चेव पंचहाणुत्तरा सुरा । इइ वेमाणिया देवा णेगहा एवमायओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १६७५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1682 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] साहियं सागरं एक्कं उक्कोसेण ठिई भवे । भोमेज्जाणं जहन्नेणं दसवाससहस्सिया ॥

Translated Sutra: भवनवासी देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति किंचित्‌ अधिक एक सागरोपम की और जघन्य दस हजार वर्ष की है। व्यन्तर देवों की उत्कृष्ट आयु – स्थिति एक पल्योपम की और जघन्य दस हजार वर्ष की है। ज्योतिष्क देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की और जघन्य पल्योपम का आठवाँ भाग है। सूत्र – १६८२–१६८४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1685 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दो चेव सागराइं उक्कोसेण वियाहिया । सोहम्मंमि जहन्नेणं एगं च पलिओवमं ॥

Translated Sutra: सौधर्म देवों की उत्कृष्ट आयु – स्थिति दो सागरोपम और जघन्य एक पल्योपम। ईशान देवों की उत्कृष्ट किंचित्‌ अधिक सागरोपम और जघन्य किंचित्‌ अधिक एक पल्योपम। सनत्कुमार की उत्कृष्ट सात सागरोपम और जघन्य दो सागरोपम। माहेन्द्रकुमार की उत्कृष्ट किंचित्‌ अधिक सात सागरोपम, और जघन्य किंचित्‌ अधिक दो सागरोपम। ब्रह्मलोक
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1697 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तेवीस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे । पढमम्मि जहन्नेणं बावीसं सागरोवमा ॥

Translated Sutra: प्रथम ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति तेईस जघन्य बाईस सागरोपम। द्वितीय ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट चौबीस जघन्य तेईस सागरोपम। तृतीय ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट पच्चीस, जघन्य चौबीस सागरोपम। चतुर्थ ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट छब्बीस, जघन्य पच्चीस सागरोपम। पंचम ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट सत्ताईस, जघन्य
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1706 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तेत्तीस सागराउ उक्कोसेण ठिई भवे । चउसुं पि विजयाईसुं जहन्नेणेक्कतीसई ॥

Translated Sutra: विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति तैंतीस सागरोपम और जघन्य इकत्तीस सागरोपम हैं। महाविमान सर्वार्थसिद्ध के देवों की अजघन्य – अनुत्कृष्ट आयु – स्थिति तैंतीस सागरोपम हैं। सूत्र – १७०६, १७०७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1708 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जा चेव उ आउठिई देवाणं तु वियाहिया । सा तेसिं कायठिई जहन्नुक्कोसिया भवे ॥

Translated Sutra: देवों की पूर्व – कथित जो आयु – स्थिति है, वही उनकी जघन्य और उत्कृष्ट कायस्थिति है। देव के शरीर को छोड़कर पुनः देव के शरीर में उत्पन्न होने में अन्तर जघन्य अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल का है। सूत्र – १७०८, १७०९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1709 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए देवाणं हुज्ज अंतरं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १७०८
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Gujarati 57 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उसिणपरियावेणं परिदाहेण तज्जिए । घिंसु वा परियावेणं सायं नो परिदेवए ॥

Translated Sutra: ઉષ્ણભૂમિ આદિના પરિતાપથી અને તૃષાના દાહથી અથવા ગ્રીષ્મના પરિતાપથી પીડિત થતા પણ મુનિ સાતાને માટે આકુળતા ન કરે. ઉષ્ણતા વડે પરેશાન થવા છતાં પણ સ્નાનની ઇચ્છા ન કરે, જળ વડે શરીરને સિંચિત ન કરે, વીંઝણા આદિથી પોતાને માટે હવા ન કરે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૫૭, ૫૮
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Gujarati 413 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] देवा य देवलोगम्मि आसि अम्हे महिड्ढिया । इमा नो छट्ठिया जाई अन्नमन्नेण जा विना ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૧૦
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१५ सभिक्षुक

Gujarati 508 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सद्दा विविहा भवंति लोए दिव्वा मानुस्सगा तहा तिरिच्छा । भीमा भयभेरवा उराला जो सोच्चा न वहिज्जई स भिक्खू ॥

Translated Sutra: સંસારમાં દેવતા, મનુષ્ય અને તિર્યંચોના જે અનેકવિધ રૌદ્ર, અતિ ભયંકર અને અદ્‌ભુત શબ્દ હોય છે, તેને સાંભળીને જે ન ડરે, તે ભિક્ષુ છે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Gujarati 975 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तस्सक्खेवपमोक्खं च अचयंतो तहिं दिओ । सपरिसो पंजली होउं पुच्छई तं महामुनिं ॥

Translated Sutra: તેના આક્ષેપોના ઉત્તર દેવામાં અસમર્થ બ્રાહ્મણે પોતાની સમગ્ર પર્ષદા સાથે હાથ જોડી તે મહામુનિને પૂછ્યું – હે મુનિ ! તમે કહો, વેદોનું મુખ શું છે ? યજ્ઞોનું મુખ શું છે ? નક્ષત્રોનું મુખ શું છે ? ધર્મોનું મુખ પણ કહો. પોતાનો અને બીજાનો ઉદ્ધાર કરવામાં જે સમર્થ છે, તે પણ મને બતાવો. હે સાધુ! હું મારા આ બધા સંશયો પૂછુ છું,
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Gujarati 978 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अग्गिहोत्तमुहा वेया जण्णट्ठी वेयसा मुहं । नक्खत्ताण मुहं चंदो धम्माणं कासवो मुहं ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૯૭૮. વેદોનું મુખ અગ્નિહોત્ર છે, યજ્ઞોનું મુખ યજ્ઞાર્થી છે. નક્ષત્રોનું મુખ ચંદ્ર છે, ધર્મોનું મુખ કાશ્યપ – ઋષભદેવ છે. સૂત્ર– ૯૭૯. જેમ ઉત્તમ અને મનોહારી ગ્રહ આદિ હાથ જોડીને ચંદ્રની વંદના અને નમસ્કાર કરતા એવા સ્થિત છે. તે પ્રમાણે જ ઋષભદેવ છે. સૂત્ર– ૯૮૦. વિદ્યા બ્રાહ્મણની સંપત્તિ છે, યજ્ઞવાદી તેનાથી અનભિજ્ઞ
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ विनयश्रुत

Gujarati 34 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नाइउच्चे व नीए वा नासन्ने नाइदूरओ । फासुयं परकडं पिडं पडिगाहेज्ज संजए ॥

Translated Sutra: સંયમી મુનિ પ્રાસુક અને પરકૃત આહાર લે, પરંતુ ઘણા ઊંચા કે નીચા સ્થાનેથી લાવેલ કે અતિ નજીક કે દૂરથી દેવાતો આહાર ન લે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ विनयश्रुत

Gujarati 48 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] स देवगंधव्वमनुस्सपूइए चइत्तु देहं मलपंकपुव्वयं । सिद्धे वा हवइ सासए देवे वा अप्परए महिड्ढिए ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: તે દેવ, ગંધર્વ અને મનુષ્યોથી પૂજિત વિનયી શિષ્ય મલ અને પંકથી નિર્મિત આ દેહનો ત્યાગ કરીને શાશ્વત સિદ્ધ થાય છે અથવા અલ્પકર્મી મહાઋદ્ધિ સંપન્ન દેવ થાય છે – તેમ હું કહું છું.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Gujarati 62 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगयाचेलए होइ सचेले यावि एगया । एयं धम्महियं नच्चा नाणी नो परिदेवए ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૧
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Gujarati 85 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] किलिन्नगाए मेहावी पंकेण व रएण वा । घिंसु वा परितावेण सायं नो परिदेवए ॥

Translated Sutra: ગ્રીષ્મમાં મેલથી, રજથી કે પરિતાપથી શરીરના લિપ્ત થઈ જવાથી મેધાવી મુનિ સાતાને માટે વિલાપ ન કરે. નિર્જરાપ્રેક્ષી મુનિ અનુત્તર આર્યધર્મને પામીને શરીર વિનાશની અંતિમ ક્ષણો સુધી શરીર ઉપર જલ્લ – પરસેવાજન્ય મેલને રહેવા દે. તેને સમભાવે સહે.) સૂત્ર સંદર્ભ– ૮૫, ૮૬
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Gujarati 98 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगया देवलोएसु नरएसु वि एगया । एगया आसुरं कायं आहाकम्मेहिं गच्छई ॥

Translated Sutra: પોતાના કરેલા કર્મો મુજબ જીવ ક્યારેક દેવલોકમાં, ક્યારેક નરકમાં, ક્યારેક અનુત્તરનિકાયમાં જન્મ લે છે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Gujarati 1080 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयं पंचविहं नाणं दव्वाण य गुणाण य । पज्जवाणं च सव्वेसिं नाणं नाणीहि देसियं ॥

Translated Sutra: આ પાંચ પ્રકારનું જ્ઞાન બધા દ્રવ્ય, ગુણ અને પર્યાયોનું જ્ઞાન છે – એ પ્રમાણે જ્ઞાનીઓએ કહેલ છે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Gujarati 1081 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गुणाणमासओ दव्वं एगदव्वस्सिया गुणा । लक्खणं पज्जवाणं तु उभओ अस्सिया भवे ॥

Translated Sutra: દ્રવ્ય, ગુણોનો આશ્રય છે, જે પ્રત્યેક દ્રવ્યના આશ્રિત રહે છે, તે ગુણ હોય છે, પર્યાયોનું લક્ષણ દ્રવ્ય અને ગુણોનું આશ્રિતત્વ છે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Gujarati 1082 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धम्मो अहम्मो आगासं कालो पुग्गलजंतवो । एस लोगो त्ति पन्नत्तो जिनेहिं वरदंसिहिं ॥

Translated Sutra: ધર્મ, અધર્મ, આકાશ, કાળ, પુદ્‌ગલ અને જીવ આ છ દ્રવ્યરૂપ લોક વરદર્શી જિનેશ્વરોએ કહેલ છે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Gujarati 1083 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धम्मो अहम्मो आगासं दव्वं इक्किक्कमाहियं । अनंताणि य दव्वाणि कालो पुग्गलजंतवो ॥

Translated Sutra: ધર્મ, અધર્મ અને આકાશ એ ત્રણે દ્રવ્ય સંખ્યામાં એક – એક છે. કાળ, પુદ્‌ગલ અને જીવ એ ત્રણે દ્રવ્યો અનંત – અનંત છે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Gujarati 109 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विसालिसेहिं सीलेहिं जक्खा उत्तरउत्तरा । महासुक्का व दिप्पंता मन्नंता अपुणच्चवं ॥

Translated Sutra: વિશાળ શીલપાલનથી યક્ષ થાય, ઉત્તરોત્તર સમૃદ્ધિથી મહાશુક્લવત દીપ્તિમાન થાય છે. સ્વર્ગથી ચ્યવવાનો જ નથી તેમ માને છે. દિવ્ય ભોગોને માટે પોતાને અર્પિત કરેલો દેવ કામરૂપ વિકુર્વવા સમર્થ હોય છે. તથા ઉર્ધ્વકલ્પોમાં શતપૂર્વ વર્ષો સુધી રહે છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૦૯, ૧૧૦
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Gujarati 110 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अप्पिया देवकामाणं कामरूवविउव्विणो । उड्ढं कप्पेसु चिट्ठंति पुव्वा वाससया बहू ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૦૯
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Gujarati 111 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ ठिच्चा जहाठाणं जक्खा आउक्खए चुया । उवेंति मानुसं जोणिं से दसंगेऽभिजायई ॥

Translated Sutra: ત્યાં યથાસ્થાને રહીને, આયુ – ક્ષય થતા તે દેવ ત્યાંથી પાછો ફરીને મનુષ્ય યોનિને પામે છે. ત્યાં દશાંગ ભોગ સામગ્રી યુક્ત થાય છે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Gujarati 152 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं सिक्खा-समावन्ने गिहवासे वि सुव्वए । मुच्चई छवि-पव्वाओ गच्छे जक्ख-सलोगयं ॥

Translated Sutra: એ પ્રમાણે ધર્મશિક્ષાથી સંપન્ન સુવ્રતી ગૃહવાસમાં રહેતો હોવા છતાં પોતાનું ઔદારિક શરીર છોડીને દેવલોકમાં જાય છે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Gujarati 153 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह जे संवुडे भिक्खू दोण्हं अन्नयरे सिया । सव्वदुक्खप्पहीणे वा देवे वावि महड्ढिए ॥

Translated Sutra: જે સંવૃત્ત ભિક્ષુ છે, તેની બેમાંથી એક સ્થિતિ હોય – કાં તો સર્વ દુઃખોથી મુક્ત થાય અથવા મહાન ઋદ્ધિવાળો દેવ થાય છે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Gujarati 154 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उत्तराइं विमोहाइं जुइमंतानुपुव्वसो । समाइण्णाइं जक्खेहिं आवासाइं जसंसिणो ॥

Translated Sutra: દેવતાના આવાસો અનુક્રમે ઉર્ધ્વ, મોહરહિત, દ્યુતિમાન, દેવોથી પરિવ્યાપ્ત હોય છે. તેમાં રહેનારા દેવો યશસ્વી, દીર્ઘાયુ, ઋદ્ધિમાન, દીપ્તિમાન, ઇચ્છારૂપધારી, અભિનવ ઉત્પન્ન સમાન ભવ્ય કાંતિવાળા અને સૂર્ય સમાન અત્યંત તેજસ્વી હોય છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૫૪, ૧૫૫
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Gujarati 156 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ताणि ठाणाणि गच्छंति सिक्खित्ता संजमं तवं । भिक्खाए वा गिहत्थे वा जे संति परिनिव्वुडा ॥

Translated Sutra: ભિક્ષુ હોય કે ગૃહસ્થ હોય, જે હિંસાદિથી નિવૃત્ત થાય છે, તે સંયમ અને તપના અભ્યાસથી ઉક્ત દેવલોકમાં જાય છે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Gujarati 165 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गवासं मणिकुंडलं पसवो दासपोरुसं । सव्वमेयं चइत्ताणं कामरूवी भविस्ससि ॥

Translated Sutra: ગાય, ઘોડા, મણિ, કુંડલ, પશુ, દાસ, પુરુષ એ બધાનો ત્યાગ કરનાર સાધક પરલોકમાં કામરૂપી દેવ થશે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Gujarati 168 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आयाणं नरयं दिस्स नायएज्ज तणामवि । दोगुंछी अप्पणो पाए दिन्नं भुंजेज्ज भोयणं ॥

Translated Sutra: અદત્તાદાન નરક છે, એમ જાણીને ન અપાયેલ તણખલુ પણ ન લે. અસંયમ પ્રતિ જુગુપ્સા રાખનાર મુનિ પોતાના પાત્રમાં દેવાયેલુ ભોજન જ કરે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ औरभ्रीय

Gujarati 190 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं मानुस्सगा कामा देवकामाण अंतिए । सहस्सगुणिया भुज्जो आउं कामा य दिव्विया ॥

Translated Sutra: એ પ્રમાણે દેવતાના કામભોગોની તુલનામાં મનુષ્યના કામભોગો નગણ્ય છે. મનુષ્યની અપેક્ષાએ દેવતાનું આયુ અને કામભોગો હજાર ગુણા છે.
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