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Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ सामायिक

Hindi 1 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र]

Translated Sutra: अरिहंत को नमस्कार हो, सिद्ध को नमस्कार हो, आचार्य को नमस्कार हो, उपाध्याय को नमस्कार हो, लोक में रहे सर्व साधु को नमस्कार हो, इस पाँच (परमेष्ठि) को किया गया नमस्कार सर्व पाप का नाशक है। सर्व मंगल में प्रथम (उत्कृष्ट) मंगल है। अरिहंत शब्द के लिए तीन पाठ हैं। अरहंत, अरिहंत और अरूहंत। यहाँ अरहंत शब्द का अर्थ है – जो
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 17 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि पडिक्कमिउं पगामसिज्जाए निगामसिज्जाए संथारा उव्वट्टणाए परियट्टणाए आउंटण-पसारणाए छप्पइयसंघट्टणाए कूइए कक्कराइए छीए जंभाइए आमोसे ससरक्खामोसे आउल-माउलाए सोअणवत्तियाए इत्थीविप्परिआसियाए दिट्ठिविप्परिआसिआए मणविप्परिआ-सिआए पाणभोयणविप्परिआसिआए जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: मैं प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ। (लेकिन किसका ?) दिन के प्रकामशय्या गहरी नींद लेने से (यहाँ प्रकाम यानि गहरा या संथारा उत्तरपट्टा से या तीन कपड़े से ज्यादा उपकरण का इस्तमाल करने से, शय्या यानि निद्रा या संथारीया आदि) हररोज ऐसी नींद लेने से, संथारा में बगल बदलने से और पुनः वही बगल बदलने से, शरीर के अवयव सिकुड़ने से
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 19 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि चाउक्कालं सज्झायस्स अकरणयाए उभओकालं भंडोवगरणस्स अप्पडिलेहणाए दुप्पडिलेहणाए अप्पमज्जणाए दुप्पमज्जणाए अइक्कमे वइक्कमे अइयारे अणायारे जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। (लेकिन किसका ?) दिन और रात के पहले और अन्तिम दो प्रहर ऐसे चार काल स्वाध्याय न करने के समान अतिचार का, दिन की पहली – अन्तिम पोरिसी रूप उभयकाल से पात्र – उपकरण आदि की प्रतिलेखना (दृष्टि के द्वारा देखना) न की या अविधि से की, सर्वथा प्रमार्जना न की या अविधि से प्रमार्जना की और फिर अतिक्रम – व्यतिक्रम,
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 22 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि पंचहिं किरियाहिं काइयाए अहिगरणियाए पाउसियाए पारितावणियाए पाणाइवायकिरियाए।

Translated Sutra: कायिकी, अधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी, प्राणातिपातिकी उन पाँच में से किसी क्रिया या प्रवृत्ति करने से, शब्द – रूप, गंध, रस, स्पर्श उन पाँच कामगुण से, प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह उन पाँच के विरमण यानि न रूकने से, इर्या, भाषा, एषणा, वस्त्र, पात्र लेना, रखना, मल, मूत्र, कफ, मैल, नाक का मैल को निर्जीव
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 27 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेत्तीसाए आसायणाहिं।

Translated Sutra: तैंतीस प्रकार की आशातना जो यहाँ सूत्र में ही बताई गई है उसके द्वारा लगे अतिचार, अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, साध्वी का अवर्णवाद से अबहुमान करने से, श्रावक – श्राविका की निंदा आदि से, देव – देवी के लिए कुछ भी बोलने से, आलोक – परलोक के लिए असत्‌ प्ररूपणा से, केवली प्रणित श्रुत या चारित्र धर्म की आशातना के द्वारा,
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 31 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं अनुत्तरं केवलियं पडिपुन्नं नेआउयं संसुद्धं सल्लगत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं निज्जाणमग्गं निव्वाणमग्गं अवितहमविसंधि सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति।

Translated Sutra: यह निर्ग्रन्थ प्रवचन (जिन आगम या श्रुत) सज्जन को हितकारक, श्रेष्ठ, अद्वितीय, परिपूर्ण, न्याययुक्त, सर्वथा शुद्ध, शल्य को काट डालनेवाला सिद्धि के मार्ग समान, मोक्ष के मुक्तात्माओं के स्थान के और सकल कर्मक्षय समान, निर्वाण के मार्ग समान हैं। सत्य है, पूजायुक्त है, नाशरहित यानि शाश्वत, सर्व दुःख सर्वथा क्षीण हुए
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 33 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जं संभरामि जं च न संभरामि, जं पडिक्कमामि जं च न पडिक्कमामि, तस्स सव्वस्स देवसियस्स अइयारस्स पडिक्कमामि समणोहं संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय-पावकम्मो अनियाणो दिट्ठिसंपन्नो मायामोस-विवज्जओ।

Translated Sutra: (सभी दोष की शुद्धि के लिए कहा है) जो कुछ थोड़ा सा भी मेरी स्मृतिमें है, छद्मस्थपन से स्मृतिमें नहीं है, ज्ञात वस्तु का प्रतिक्रमण किया और सूक्ष्म का प्रतिक्रमण न किया उस अनुसार जो अतिचार लगा हो वो सभी दिन सम्बन्धी अतिचार का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। इस प्रकार अशुभ प्रवृत्ति का त्याग करके मैं तप – संयम रत साधु हूँ।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Hindi 58 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो उवट्ठिओमि अब्भिंतरपक्खियं खामेउं इच्छं खामेमि अब्भिंतर पक्खियं पन्नरस्सण्हं दिवसाणं पन्नरसण्हं राईणं जंकिंचि अपत्तियं परपत्तियं भत्ते पाणे विनए वेयावच्चे आलावे संलावे उच्चासणे समासणे अंतरभासाए उवरिभासाए जंकिंचि मज्झ विनयपरिहीणं सुहुमं वा बायरं वा तुब्भे जाणह अहं न जाणामि तस्स मिच्छामि दुक्कडम्‌।

Translated Sutra: हे क्षमाश्रमण ! मैं इच्छा रखता हूँ। (क्या ईच्छा रखता है वो बताते हैं) पाक्षिक के भीतर हुए अतिचार की क्षमा माँगने के लिए उसके सम्बन्धी निवेदन करने के लिए उपस्थित हुआ हूँ। (गुरु कहते हैं खमाओ तब शिष्य बोले) ‘‘ईच्छं’’। मैं पाक्षिक के भीतर हुए अतिचार को खमाता हूँ। पंद्रह दिन और पंद्रह रात में, आहार – पानी में, विनय
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 64 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थूलगपाणाइवायं समणोवासओ पच्चक्खाइ से पाणाइवाए दुविहे पन्नत्तं तं जहा–संकप्पओ अ आरंभओ अ तत्थ समणोवासओ संकप्पओ जावज्जीवाए पच्चक्खाइ नो आरंभओ थूलगपाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– बंधे वहे छविच्छेए अइभारे भत्तपाणवुच्छेए।

Translated Sutra: श्रावक स्थूल प्राणातिपात का पच्चक्खाण (त्याग) करे। वो प्राणातिपात दो तरह से बताया है। वो इस प्रकार – संकल्प से और आरम्भ से। श्रावक को संकल्प हत्या का जावज्जीव के लिए पच्चक्खाण (त्याग) करे लेकिन आरम्भ हत्या का त्याग न करे। स्थूल प्राणातिपात विरमण के इस पाँच अतिचार समझना वो इस प्रकार – वध, बंध, छविच्छेद, अतिभार
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 65 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थूलगमुसावायं समणोवासओ पच्चक्खाइ से य मुसावाए पंचविहे पन्नत्ते तं जहा–कन्नालीए गवालीए भोमालीए नासावहारे कूडसक्खिज्जे, थूलगमुसावायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– सहस्सब्भक्खाणे रहस्सब्भक्खाणे सदारमंतभेए मोसुवएसे कूडलेहकरणे।

Translated Sutra: श्रावक स्थूल मृषावाद का पच्चक्खाण (त्याग) करे। वो मृषावाद पाँच तरीके से बताया है। कन्या सम्बन्धी झूठ, गो (चार पाँववाले) सम्बन्धी झूठ, भूमि सम्बन्धी झूठ, न्यासापहार यानि थापण पाना, झूठी गँवाही देना, स्थूल मृषावाद से विरमित श्रमणोपासक यह पाँच अतिचार जानना। वो इस प्रकार – सहसा अभ्याख्यान, रहस्य उद्‌घाटन, स्वपत्नी
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 66 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थूलगअदत्तादानं समणोवासओ पच्चक्खाइ से अदिन्नादाणे दुविहे पन्नत्ते तं जहा–सचित्तादत्तादाने अचित्तादत्तादाने अ, थूलादत्तादानवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– तेनाहडे तक्करपओगे विरुद्धज्जाइंक्कमणे कूडतुल-कूडमाणे तप्पडिरूवगववहारे।

Translated Sutra: श्रमणोपासक स्थूल अदत्तादान का पच्चक्खाण करे यानि त्याग करे। वो अदत्तादान दो तरह से बताया है वो इस प्रकार – सचित्त और अचित्त। स्थूल अदत्तादान से विरमित श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानना। चोर या चोरी से लाए हुए माल – सामान का अनुमोदन, तस्कर प्रयोग, विरुद्ध राज्यातिक्रम झूठे तोल – नाप करना।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 70 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उवभोगपरिभोगवए दुविहे पन्नत्ते तं जहा–भोअणओ कम्मओ अ, भोअणओ समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– सचित्ताहारे सचित्तपडिबद्धाहारे अप्पउलिओसहिभक्खणया तुच्छोसहिभक्खणया दुप्पउलि- ओसहिभक्खणया।

Translated Sutra: उपभोग – परिभोग व्रत दो प्रकार से – भोजनविषयक परिमाण और कर्मादानविषयक परिमाण, भोजन सम्बन्धी परिमाण करनेवाले श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए। अचित्त आहार करे, सचित्त प्रतिबद्ध आहार करे, अपक्व दुष्पक्व आहार करे, तुच्छ वनस्पति का भक्षण करे। कर्मादान सम्बन्धी नियम करनेवाले को यह पंद्रह कर्मादान जानने
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 81 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थं पुण समणोवासगधम्मे पंचाणुव्वयाइं तिन्नि गुणव्वयाइं आवकहियाइं चत्तारि सिक्खा-वयाइं इत्तरियाइं एयस्स पुणो समणोवासगधम्मस्स मूलवत्थु सम्मत्तं तं जहा– तं निसग्गेण वा अभिगमेणं वा पंच अइयारविसुद्धं अणुव्वय-गुणव्वयाइं च अभिग्गा अन्नेवि पडिमादओ विसेसकरणजोगा। अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाझूसणाराहणया इमीसे समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– इहलोगासंसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, काम-भोगासंसप्पओगे।

Translated Sutra: इस प्रकार श्रमणोपासक धर्म में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और यावत्कथिक या इत्वरकथिक यानि चिरकाल या अल्पकाल के चार शिक्षाव्रत बताए हैं। इन सबसे पहले श्रमणोपासक धर्म में मूल वस्तु सम्यक्त्व है। वो निसर्ग से और अभिमान से दो प्रकार से है। पाँच अतिचार रहित विशुद्ध अणुव्रत और गुणव्रत की प्रतिज्ञा के सिवा दूसरी
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 82 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उग्गए सूरे नमुक्कारसहियं पच्चक्खाइ चउव्विहं पि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणा-भोगेणं सहसागारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: सूर्य नीकलने से आरम्भ होकर नमस्कार सहित अशन, पान, खादिम, स्वादिम से पच्चक्खाण करते हैं। सिवा कि अनाभोग, सहसाकार से (नियम का) त्याग करे।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 83 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उग्गए सूरे पोरिसिं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: सूर्योदय से पोरिसी (यानि एक प्रहर पर्यन्त) चार तरह का – अशन, पान, खादिम, स्वादिम का पच्चक्खाण करते हैं। सिवा कि अनाभोग, सहसाकार, प्रच्छन्नकाल से, दिशा – मोह से, साधु वचन से, सर्व समाधि के हेतुरूप आगार से (पच्चक्खाण) छोड़े।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 84 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सूरे उग्गए पुरिमड्ढं पच्चक्खाइं चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: सूर्य ऊपर आए तब तक पुरिमड्ढ (सूर्य मध्याह्न में आए तब तक) अशन आदि चार आहार का पच्चक्खाण ( – नियम) करता है। सिवाय कि अनाभोग, सहसाकार, काल की प्रच्छन्नता, दिशामोह, साधुवचन, महत्तरवजह या सर्व समाधि के हेतुरूप आगार से नियम छोड़ दे।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 85 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगासणं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं सागारियागारेणं, आउंटणपसारणेणं गुरुअब्भुट्ठाणेणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहि वत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: एकासणा का पच्चक्खाण करता है। (एक बार के अलावा) अशन आदि चार आहार का त्याग करता है। सिवा कि अनाभोग, सहसाकार, सागारिक कारण से, आकुंचन प्रसारण से, गुरु अभ्युत्थान पारिष्ठापनिका कारण से, महत्‌ कारण से या सर्व समाधि के हेतु रूप आगार से (पच्चक्खाण) छोड़ दे।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 86 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगट्ठाणं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं सागारियागारेणं आउंटणपसारेणं गुरुअब्भुट्ठाणेणं पारिट्ठावणियागारेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: एकलठाणा का पच्चक्खाण करता है (बाकी का अर्थ सूत्र – ८५ अनुसार केवल उसमें ‘महत्तर कारण’ न आए)
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 87 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयंबिलं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं लेवालेवेणं उक्खित्तविवेगेणं गिहत्थसंसट्ठेणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: आयंबिल का पच्चक्खाण करता है। (उसमें आयंबिल के लिए एकबार बैठने के अलावा) अशन आदि चार आहार का त्याग करता है। सिवा कि अनाभोग से, सहसाकार से, लेपालेप से, उत्क्षिप्त विवेक से, गृहस्थ संसृष्ट से, पारिष्ठापन कारण से, महत्तर कारण से या सर्व समाधि के लिए (पच्चक्खाण) छोड़ दे।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 88 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सूरे उग्गए अभत्तट्ठं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं- असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: सूर्य उगने तक भोजन न करने का पच्चक्खाण करता है (अशन आदि चार आहार का त्याग करता है।) सिवा कि अनाभोग सहसाकार, पारिष्ठापनिका और महत्तर कारण से, सर्व समाधि के लिए (पच्चक्खाण) छोड़ दे।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 89 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दिवसचरिमं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं- असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसा-गारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइं।

Translated Sutra: दिन के अन्त में अशन आदि चार प्रकार के आहार का पच्चक्खाण करता है। सिवा कि अनाभोग सहसाकार, महत्तर कारण, सर्व समाधि के हेतु से छोड़ दे।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 90 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भवचरिमं पच्चक्खाइ, अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्ति- आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: भवचरिम यानि जीवन का अन्त दिखते ही (अशन आदि चार आहार का पच्चक्खाण करता है।) (शेष पूर्व सूत्र ८९ अनुसार जानना।)
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 91 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अभिग्गहं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं- असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: अभिग्रह पूर्वक अशनादि चार आहार का पच्चक्खाण करता है। (शेष पूर्व सूत्र ८९ अनुसार जानना।)
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 92 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निव्विगइयं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं- असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं लेवालेवेणं गिहत्थसंसट्ठेणं उक्खित्तविवेगेणं पडुच्चमक्खिएणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: विगई का पच्चक्खाण करता है। सिवा कि अनाभोग सहसाकार, लेपालेप, गृहस्थ संसृष्ट, उत्क्षिप्त विवेक, प्रतीत्यम्रक्षित, परिष्ठापन, महत्तर, सर्व समाधि हेतु। इतने कारण से पच्चक्खाण छोड़ दे।
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ सामायिक

Gujarati 2 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] करेमि भंते सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।

Translated Sutra: હે ભદંત ! હું સામાયિક સ્વીકાર કરું છું. જાવજ્જીવને માટે સર્વે સાવદ્ય યોગના પચ્ચક્‌ખાણ કરું છું. (કેવી રીતે?) ત્રિવિધ, ત્રિવિધ વડે (અર્થાત્‌) મન, વચન, કાયા વડે હું (તે) કરું નહીં, કરાવું નહીં, કરનારને અનુમોદું નહીં. હે ભદંત ! હું તેને પ્રતિક્રમું છું, નિંદું છું, ગર્હુ છું. (મારા તે ભૂતકાલીન પર્યાયરૂપ) આત્માને વોસિરાવું
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 31 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं अनुत्तरं केवलियं पडिपुन्नं नेआउयं संसुद्धं सल्लगत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं निज्जाणमग्गं निव्वाणमग्गं अवितहमविसंधि सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति।

Translated Sutra: આ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય, અનુત્તર, કૈવલિક, પ્રતિપૂર્ણ, નૈયાયિક, સંશુદ્ધ, શલ્યકર્ત્તક, સિદ્ધિનો માર્ગ, મુક્તિનો માર્ગ, નિર્વાણનો માર્ગ, નિર્યાણનો માર્ગ, અવિતથ, અવિસંધિ, સર્વ દુઃખનો પ્રક્ષીણ માર્ગ છે. આમાં સ્થિત જીવો સિદ્ધ થાય છે, બોધ પામે છે, મુક્ત થાય છે, પરિનિર્વાણ પામે છે અને સર્વે દુઃખોનો અંત કરે છે.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Gujarati 48 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुक्खरवरदीवड्ढे धायइसंडे य जंबुद्दीवे य । भरहेरवय विदेहे धम्माइगरे नमंसामि ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૮. અર્દ્ધ પુષ્કરવરદ્વીપ, ધાતકીખંડ અને જંબૂદ્વીપ (એ અઢીદ્વીપ)માં આવેલ ભરત, ઐરવત અને વિદેહ ક્ષેત્રમાં રહેલા શ્રુત ધર્મના આદિ કરોને હું નમસ્કાર કરું છું. સૂત્ર– ૪૯. અજ્ઞાનરૂપી અંધકારના સમૂહનો નાશ કરનાર, દેવ અને નરેન્દ્રોના સમૂહથી પૂજાયેલ, મોહની જાળને તોડી નાંખનારા, મર્યાદાધરને વંદુ છું. સૂત્ર– ૫૦. જન્મ
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 64 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थूलगपाणाइवायं समणोवासओ पच्चक्खाइ से पाणाइवाए दुविहे पन्नत्तं तं जहा–संकप्पओ अ आरंभओ अ तत्थ समणोवासओ संकप्पओ जावज्जीवाए पच्चक्खाइ नो आरंभओ थूलगपाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– बंधे वहे छविच्छेए अइभारे भत्तपाणवुच्छेए।

Translated Sutra:
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 65 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थूलगमुसावायं समणोवासओ पच्चक्खाइ से य मुसावाए पंचविहे पन्नत्ते तं जहा–कन्नालीए गवालीए भोमालीए नासावहारे कूडसक्खिज्जे, थूलगमुसावायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– सहस्सब्भक्खाणे रहस्सब्भक्खाणे सदारमंतभेए मोसुवएसे कूडलेहकरणे।

Translated Sutra: શ્રાવકો સ્થૂલ મૃષાવાદનું પચ્ચક્‌ખાણ કરે. તે મૃષાવાદ પાંચ ભેદે કહેલ છે, તે આ પ્રમાણે – કન્યાલીક, ગવાલિક, ભૌમાલિક, ન્યાસાપહાર, કૂટસાક્ષિક. સ્થૂલમૃષાવાદ વિરમણ કરેલ શ્રાવકોને આ પાંચ અતિચારો છે, તે જાણવા જોઈએ – સહસાભ્યાખ્યાન, રહસ્યાભ્યાખ્યાન, સ્વદારા મંત્રભેદ, મૃષા ઉપદેશ અને ખોટા લેખ કરવા.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 66 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थूलगअदत्तादानं समणोवासओ पच्चक्खाइ से अदिन्नादाणे दुविहे पन्नत्ते तं जहा–सचित्तादत्तादाने अचित्तादत्तादाने अ, थूलादत्तादानवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– तेनाहडे तक्करपओगे विरुद्धज्जाइंक्कमणे कूडतुल-कूडमाणे तप्पडिरूवगववहारे।

Translated Sutra: શ્રમણોપાસકે સ્થૂળ અદત્તાદાનનું પચ્ચક્‌ખાણ કરવું. તે અદત્તાદાન બે ભેદે કહેલ છે, તે આ પ્રમાણે – સચિત્ત અદત્તાદાન અને અચિત્ત અદત્તાદાન. સ્થૂળ અદત્તાદાનથી વિરમેલ શ્રાવકને આ પાંચ અતિચારો જાણવા જોઈએ, તે આ પ્રમાણે – સ્તેનાહૃત, તસ્કર પ્રયોગ, વિરુદ્ધ રાજ્યાતિક્રમ, કૂડતુલ કૂડમાન અને તત્પ્રતિરૂપક વ્યવહાર.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 67 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परदारगमणं समणोवासओ पच्चक्खाइ सदारसंतोसं वा पडिवज्जइ से य परदारगमणे दुविहे पन्नत्ते तं जहा–ओरालियपरदारगमणे वेउव्वियपरदारगमणे सदारसंतोस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– अपरिगहियागमणे इत्तरियपरिगहियागमणे अनंगकीडा परवीवाहकरणे कामभोगतिव्वाभिलासे

Translated Sutra: શ્રમણોપાસકે પરદારાગમનના પચ્ચક્‌ખાણ કરવા અથવા સ્વપત્નીમાં સંતોષ રાખવો. (તે ચોથું વ્રત). તે પરદારાગમન બે ભેદે છે, તે આ પ્રમાણે – (૧) ઔદારિક પરદારાગમન, (૨) વૈક્રિય પરદારાગમન. સ્વદારા સંતોષ વ્રત લેનાર શ્રમણોપાસકે આ પાંચ અતિચાર જાણવા જોઈએ. તે આ પ્રમાણે – (૧) અપરિગૃહિતા ગમન, (૨) ઇત્વરિક પરિગૃહિતાગમન, (૩) અનંગક્રીડા, (૪)
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 68 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अपरिमियपरिग्गहं समणोवासओ पच्चक्खाइ इच्छापरिणामं उवसंपज्जइ से परिग्गहे दुविहे पन्नत्ते तं जहा–सचित्तपरिग्गहे अचित्तपरिग्गहे य इच्छापरिमाणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– धणधन्नपमाणाइक्कमे खित्तवत्थुपमाणाइक्कमे हिरन्नसुवन्नपमाणाइक्कमे दुपयचउप्पय-पमाणाइक्कमे कुवियपमाणाइक्कमे।

Translated Sutra: શ્રમણોપાસક અપરિમિત પરિગ્રહના પચ્ચક્‌ખાણ કરે. ઇચ્છાનું પરિમાણ સ્વીકાર કરે, એ પાંચમું અણુવ્રત. તે પરિગ્રહ બે ભેદે છે. તે આ પ્રમાણે – સચિત્તનો પરિગ્રહ અને અચિત્તનો પરિગ્રહ. ઇચ્છા પરિમાણ કરેલા શ્રાવકને આ પાંચ અતિચાર જાણવા જોઈએ પરંતુ તે દોષોનું આચરણ ન કરવુંજોઈએ. તે આ પ્રમાણે – ૧) ધન – ધાન્ય પ્રમાણાતિક્રમ, ૨) ક્ષેત્ર
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अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 70 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उवभोगपरिभोगवए दुविहे पन्नत्ते तं जहा–भोअणओ कम्मओ अ, भोअणओ समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– सचित्ताहारे सचित्तपडिबद्धाहारे अप्पउलिओसहिभक्खणया तुच्छोसहिभक्खणया दुप्पउलि- ओसहिभक्खणया।

Translated Sutra: ઉપભોગ – પરિભોગવ્રત બે ભેદે કહેલ છે. તે આ – ભોજન વિષયક અને કર્માદાન વિષયક. ભોજન સંબંધી પરિમાણ કરનાર શ્રાવકે આ પાંચ અતિચાર જાણવા જોઈએ – સચિત્તાહાર, સચિત્તપ્રતિબદ્ધાહાર, અપક્વ ઔષધિ ભક્ષણ, તુચ્છૌષધિ ભક્ષણ, દુષ્પક્વ ઔષધિ ભક્ષણ.
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अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 81 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थं पुण समणोवासगधम्मे पंचाणुव्वयाइं तिन्नि गुणव्वयाइं आवकहियाइं चत्तारि सिक्खा-वयाइं इत्तरियाइं एयस्स पुणो समणोवासगधम्मस्स मूलवत्थु सम्मत्तं तं जहा– तं निसग्गेण वा अभिगमेणं वा पंच अइयारविसुद्धं अणुव्वय-गुणव्वयाइं च अभिग्गा अन्नेवि पडिमादओ विसेसकरणजोगा। अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाझूसणाराहणया इमीसे समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– इहलोगासंसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, काम-भोगासंसप्पओगे।

Translated Sutra: આ પ્રમાણે શ્રાવકધર્મમાં પાંચ અણુવ્રત, ત્રણ ગુણવ્રત અને યાવત્કથિત કે ઇત્વરકથિત અર્થાત ચિરકાળ કે અલ્પકાળ માટે ચાર શિક્ષાવ્રત કહ્યા છે. આ બધાની પૂર્વે શ્રાવકધર્મની મૂલ વસ્તુ સમ્યક્‌ત્વ છે તે આ – તે નિસર્ગથી કે અભિગમથી બે ભેદે અથવા પાંચ અતિચાર રહિત વિશુદ્ધ અણુવ્રત અને ગુણવ્રતની પ્રતિજ્ઞા સિવાય બીજી પણ પ્રતિમા
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 82 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उग्गए सूरे नमुक्कारसहियं पच्चक्खाइ चउव्विहं पि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणा-भोगेणं सहसागारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: સૂર્ય ઊગવાથી આરંભીને નમસ્કાર સહિત અશન, પાન, ખાદિમ, સ્વાદિમ એ ચારે આહારના પચ્ચક્‌ખાણ કરે છે. અન્નત્થ – સિવાય કે અનાભોગ કે સહસાકારથી (આ બે આગાર છોડીને હું અશન આદિનો) ત્યાગ કરું છું.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 83 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उग्गए सूरे पोरिसिं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: સૂર્ય ઊગ્યા પછી પોરીસી (અર્થાત્‌ એક પ્રહાર પર્યન્ત) ચાર ભેદે અશન, પાન, ખાદિમ, સ્વાદિમનું પચ્ચક્‌ખાણ કરે છે. અન્નત્થ અર્થાત અનાભોગ, સહસાકાર, પ્રચ્છન્નકાળ, દિશામોહ, સાધુવચનથી, સર્વસમાધિ નિમિત્તે આ છ કારણો સિવાય. હું અશનાદિ ચારેનો ત્યાગ કરું છું.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 84 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सूरे उग्गए पुरिमड्ढं पच्चक्खाइं चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: સૂર્ય ઉગ્યા પછી ઊંચો આવે ત્યાં સુધી પુરિમડ્ઢ (મધ્યાહ્ન થાય ત્યારે) અશન આદિ ચાર આહારનું પચ્ચક્‌ખાણ કરે છે. અન્નત્થ – અનાભોગ, સહસાકાર, કાળની પ્રચ્છન્નતા, દિશામોહ, સાધુવચન, મહત્તરકારણ કે સર્વસમાધિના હેતુરૂપ આગાર સિવાય. આ અશનાદિ ચારેનો ત્યાગ કરું છું.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 86 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगट्ठाणं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं सागारियागारेणं आउंटणपसारेणं गुरुअब्भुट्ठाणेणं पारिट्ठावणियागारेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: વર્ણન સૂત્ર સંદર્ભ: (એકાસણાના સૂત્રમાં સૂત્રકાર મહર્ષિ ‘એક્કાસણમિત્યાદિ’ એમ સૂત્ર જણાવે છે. આ ઇત્યાદિ શબ્દથી આ સાત પ્રત્યાખ્યાનો બીજા આવી જશે – ) અનુવાદ: સૂત્ર– ૮૬. એકલઠાણાનું પચ્ચક્ખાણ કરે છે. સૂત્ર– ૮૭. આયંબિલનું પચ્ચક્‌ખાણ કરે છે. સૂત્ર– ૮૮. ઉપવાસનું પચ્ચક્‌ખાણ કરે છે. સૂત્ર– ૮૯. દિવસને અંતે અશનાદિ ચારે
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-२ पृथ्वीकाय Hindi 17 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णातं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं ‘विरूवरूवेहिं सत्थेहिं’ पुढवि-कम्म-समारंभेणं पुढवि-सत्थं समारंभेमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसइ। से बेमि–अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे। अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे, अप्पेगे गुप्फमब्भे, अप्पेगे गुप्फमच्छे, अप्पेगे जंघमब्भे, अप्पेगे जंघमच्छे, अप्पेगे जाणुमब्भे, अप्पेगे जाणुमच्छे, अप्पेगे ऊरुमब्भे, अप्पेगे ऊरुमच्छे, अप्पेगे कडिमब्भे, अप्पेगे कडिमच्छे,

Translated Sutra: वह (हिंसावृत्ति) उसके अहित के लिए होती है। उसकी अबोधि के लिए होती है। वह साधक हिंसा के उक्त दुष्परिणामों को अच्छी तरह समझता हुआ, संयम – साधना में तत्पर हो जाता है। कुछ मनुष्यों के या अनगार मुनियों के समीप धर्म सूनकर यह ज्ञात होता है कि, ‘यह जीव हिंसा ग्रन्थि है, यह मोह है, यह मृत्यु है और यही नरक है।’ (फिर भी) जो मनुष्य
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Hindi 42 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अड्ढं अहं तिरियं पाईणं ‘पासमाणे रूवाइं पासति’, ‘सुणमाणे सद्दाइं सुणेति’।

Translated Sutra: ऊंचे, नीचे, तीरछे, सामने देखने वाला रूपों को देखता है। सूनने वाला शब्दों को सूनता है। ऊंचे, नीचे, तीरछे, विद्यमान वस्तुओं में आसक्ति करने वाला, रूपों में मूर्च्छित होता है, शब्दों में मूर्च्छित होता है। यह (आसक्ति) ही संसार है। जो पुरुष यहाँ (विषयों में) अगुप्त है। इन्द्रिय एवं मन से असंयत है, वह आज्ञा – धर्म –
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Hindi 71 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] खणं जाणाहि पंडिए।

Translated Sutra: जो अवस्था (यौवन एवं शक्ति) अभी बीती नहीं है, उसे देखकर, हे पण्डित ! क्षण (समय) को/अवसर को जान।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-२ अद्रढता Hindi 73 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अरइं आउट्टे से मेहावी। खणंसि मुक्के।

Translated Sutra: जो अरति से निवृत्त होता है, वह बुद्धिमान है। वह बुद्धिमान विषय – तृष्णा से क्षणभर में ही मुक्त हो जाता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-२ अद्रढता Hindi 74 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अणाणाए पुट्ठा ‘वि एगे’ नियट्टंति। मंदा मोहेण पाउडा। ‘अपरिग्गहा भविस्सामो’ समुट्ठाए, लद्धे कामेहिगाहंति। अणाणाए मुनिनो पडिलेहंति। एत्थ मोहे पुनो पुनो सण्णा। नो हव्वाए नो पाराए।

Translated Sutra: अनाज्ञा में – (वीतराग विहित – विधि के विपरीत) आचरण करने वाले कोई – कोई संयम – जीवन में परीषह आने पर वापस गृहवासी भी बन जाते हैं। वे मंदबुद्धि – अज्ञानी मोह से आवृत्त रहते हैं। कुछ व्यक्ति – ‘हम अपरिग्रही होंगे’ – ऐसा संकल्प करके संयम धारण करते हैं, किन्तु जब काम – सेवन (इन्द्रिय विषयों के सेवन) का प्रसंग उपस्थित
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-२ अद्रढता Hindi 76 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विणइत्तु लोभं निक्खम्म, एस अकम्मे जाणति-पासति। पडिलेहाए नावकंखति। एस अनगारेत्ति पवुच्चति। अहो य राओ य परितप्पमाणे, कालाकालसमुट्ठाई, संजोगट्ठी अट्ठालोभी, आलुंपे सहसक्कारे, विनिविट्ठचित्ते एत्थ सत्थे पुणो-पुणो से आय-बले, से नाइ-बले, से मित्त-बले, से पेच्च-बले, से देव-बले, से राय-बले, से चोर-बले, से अतिहि-बले, से किवण-बले, से समण-बले। इच्चेतेहिं विरूवरूवेहिं कज्जेहिं दंड-समायाणं। सपेहाए भया कज्जति। पाव-मोक्खोत्ति मन्नमाणे। अदुवा आसंसाए।

Translated Sutra: जो लोभ से निवृत्त होकर प्रव्रज्या लेता है, वह अकर्म होकर (कर्मावरण से मुक्त होकर) सब कुछ जानता है, देखता है। जो प्रतिलेखना कर, विषय – कषायों आदि के परिणाम का विचार कर उनकी आकांक्षा नहीं करता, वह अनगार कहलाता है। (जो विषयों से निवृत्त नहीं होता) वह रात – दिन परितप्त रहता है। काल या अकाल में सतत प्रयत्न करता रहता
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 83 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उद्देसो पासगस्स नत्थि। बाले पुण णिहे कामसमणुण्णे असमियदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवट्टं अणुपरियट्टइ।

Translated Sutra: जो द्रष्टा है, (सत्यदर्शी है) उसके लिए उपदेश की आवश्यकता नहीं होती। अज्ञानी पुरुष, जो स्नेह के बंधन में बंधा है, काम – सेवन में अनुरक्त है, वह कभी दुःख का शमन नहीं कर पाता। वह दुःखी होकर दुःखों के आवर्त में बार – बार भटकता रहता है। ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-४ भोगासक्ति Hindi 86 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आसं च छंदं च विगिंच धीरे। तुमं चेव तं सल्लमाहट्टु। जेण सिया तेण णोसिया। इणमेव नावबुज्झंति, जेजना मोहपाउडा। थीभि लोए पव्वहिए। ते भो वयंति–एयाइं आयतणाइं। से दुक्खाए मोहाए माराए नरगाए नरग-तिरिक्खाए। उदाहु वीरे– अप्पमादो महामोहे। अलं कुसलस्स पमाएणं। संति-मरणं संपेहाए, भेउरधम्मं संपेहाए। नालं पास। अलं ते एएहिं।

Translated Sutra: हे धीर पुरुष ! तू आशा और स्वच्छन्दता त्याग दे। उस भोगेच्छा रूप शल्य का सृजन तूने स्वयं ही किया है। जिस भोगसामग्री से तुझे सुख होता है उससे सुख नहीं भी होता है। जो मनुष्य मोहकी सघनतासे आवृत हैं, ढ़ंके हैं, वे इस तथ्य को कि पौद्‌गलिक साधनों से कभी सुख मिलता है, कभी नहीं, वे क्षण – भंगुर हैं, तथा वे ही शल्य नहीं जानते यह
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 90 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अदिस्समाणे कय-विक्कएसु। से न किणे, न किनावए, किणंतं न समणुजाणइ। से भिक्खू कालण्णे बलण्णे मायण्णे खेयण्णे खणयण्णे विणयण्णे समयण्णे भावण्णे, परिग्गहं अममायमाणे, कालेणुट्ठाइ, अपडिण्णे।

Translated Sutra: वह वस्तु के क्रय – विक्रय में संलग्न न हो। न स्वयं क्रय करे, न दूसरों से क्रय करवाए और न क्रय करने वाले का अनुमोदन करे। वह भिक्षु कालज्ञ है, बलज्ञ है, मात्रज्ञ है, क्षेत्रज्ञ है, क्षणज्ञ है, विनयज्ञ है, समयज्ञ है, भावज्ञ है। परिग्रह पर ममत्व नहीं रखने वाला, उचित समय पर उचित कार्य करने वाला अप्रतिज्ञ है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-६ अममत्त्व Hindi 108 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उद्देसो पासगस्स नत्थि। बाले पुण णिहे कामसमणुण्णे असमियदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवट्टं अणुपरियट्टइ।

Translated Sutra: द्रष्टा के लिए कोई उद्देश (अथवा उपदेश) नहीं है। बाल बार – बार विषयों में स्नेह करता है। काम – ईच्छा और विषयों को मनोज्ञ समझकर (सेवन करता है) इसीलिए वह दुःखों का शमन नहीं कर पाता। वह दुःखों से दुःखी बना हुआ दुःखों के चक्र में ही परिभ्रमण करता रहता है। ऐसा मैं कहता हूँ। अध्ययन – २ का मुनि दीपरत्नसागर कृत्‌ हिन्दी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-४ कषाय वमन Hindi 137 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगं विगिंचमाणे पुढो विगिंचइ, पुढो विगिंचमाणे एगं विगिंचइ। सड्ढी आणाए मेहावी। लोगं च आणाए अभिसमेच्चा अकुतोभयं। अत्थि सत्थं परेण परं, नत्थि असत्थं परेण परं।

Translated Sutra: एक को पृथक्‌ करने वाला, अन्य (कर्मों) को भी पृथक्‌ कर देता है, अन्य को पृथक्‌ करने वाला, एक को भी पृथक्‌ कर देता है। (वीतराग की) आज्ञा में श्रद्धा रखने वाला मेधावी होता है। साधक आज्ञा से लोक को जानकर (विषयों) का त्याग कर देता है, वह अकुतोभय हो जाता है। शस्त्र (असंयम) एक से एक बढ़कर तीक्ष्ण से तीक्ष्णतर होता है किन्तु
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-२ विरत मुनि Hindi 159 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आवंती केआवंती लोयंसि अणारंभजीवी, एतेसु चेव मनारंभजीवी। एत्थोवरए तं झोसमाणे ‘अयं संधी’ ति अदक्खु। जे ‘इमस्स विग्गहस्स अयं खणे त्ति मन्नेसी। एस मग्गे आरिएहिं पवेदिते। उट्ठिए नोपमायए। जाणित्तु दुक्खं पत्तयं सायं’। पुढोछंदा इह माणवा, पुढो दुक्खं पवेदितं। से अविहिंसमाणे अणवयमाणे, पुट्ठो फासे विप्पणोल्लए।

Translated Sutra: इस मनुष्य लोक में जितने भी अनारम्भजीवी हैं, वे (अनारम्भ – प्रवृत्त गृहस्थों) के बीच रहते हुए भी अना – रम्भजीवी हैं। इस सावद्य से उपरत अथवा आर्हत्‌शासन में स्थित अप्रमत्त मुनि खयह सन्धि हैं। – ऐसा देखकर उसे क्षीण करता हुआ (क्षणभर भी प्रमाद न करे)। ‘इस औदारिक शरीर का यह वर्तमान क्षण है,’ इस प्रकार जो क्षणान्वेषी
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