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Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा Hindi 161 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं बलिचंचा रायहानी अणिंदा अपुरोहिया या वि होत्था। तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तामलिं बालतवस्सिं ओहिणा आभोएंति, आभोएत्ता अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासि– एवं खलु देवानुप्पिया! बलिचंचा रायहानी अणिंदा अपुरोहिया, अम्हे य णं देवानुप्पिया! इंदाहीणा इंदाहिट्ठिया इंदाहीणकज्जा, अयं च णं देवानुप्पिया! तामली बालतवस्सी तामलित्तीए नगरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसिभागे नियत्तणियमंडलं आलिहित्ता संलेहणाज्झूसणाज्झूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगमणं निवण्णे, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं तामलिं

Translated Sutra: उस काल उस समय में बलिचंचा राजधानी इन्द्रविहीन और पुरोहित से विहीन थी। उन बलिचंचा राजधानी निवासी बहुत – से असुरकुमार देवों और देवियों ने तामली बालतपस्वी को अवधिज्ञान से देखा। देखकर उन्होंने एक दूसरे को बुलाया, और कहा – देवानुप्रियो ! बलिचंचा राजधानी इन्द्र से विहीन और पुरोहित से भी रहित है। हे देवानुप्रियो
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-२ चमरोत्पात Hindi 170 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था जाव परिसा पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिंदे असुरराया चमरचंचाए रायहानीए, सभाए सुहम्माए, चमरंसि सीहासनंसि, चउसट्ठीए सामानियसाहसहिं जाव नट्टविहिं उवदंसेत्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे असुरकुमारा देवा परिवसंति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। एवं जाव अहेसत्तमाए पुढवीए, सोहम्मस्स कप्पस्स अहे जाव अत्थि णं भंते! ईसिप्पब्भाराए पुढवीए अहे असुर-कुमारा देवा परिवसंति? नो इणट्ठे

Translated Sutra: उस काल, उस समय में राजगृह नामका नगर था। यावत्‌ भगवान वहाँ पधारे और परीषद्‌ पर्युपासना करने लगी। उस काल, उस समय में चौंसठ हजार सामानिक देवों से परिवृत्त और चमरचंचा नामक राजधानी में, सुधर्मासभा में चमर नामक सिंहासन पर बैठे असुरेन्द्र असुरराज चमर ने (राजगृह में विराजमान भगवान को अवधिज्ञान से देखा); यावत्‌ नाट्यविधि
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-२ चमरोत्पात Hindi 172 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चमरे णं भंते! असुरिंदेणं असुररण्णा सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे? पत्ते? अभिसमन्नागए? एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूदीवे दीवे भारहे वासे विंज्झगिरिपायमूले बेभेले नामं सन्निवेसे होत्था–वण्णओ। तत्थ णं बेभेले सन्निवेसे पूरणे नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे दित्ते जाव बहुजणस्स अपरिभूए या वि होत्था। तए णं तस्स पूरणस्स गाहावइस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अत्थि ता मे पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! असुरेन्द्र असुरराज चमर को वह दिव्य देवऋद्धि और यावत्‌ वह सब, किस प्रकार उपलब्ध हुई, प्राप्त हुई और अभिसमन्वागत हुई ? हे गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारत वर्ष (क्षेत्र) में, विन्ध्याचल की तलहटी में ‘बेभेल’ नामक सन्निवेश था। वहाँ ‘पूरण’ नामक एक गृहपति रहता था। वह आढ्य और दीप्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-२ चमरोत्पात Hindi 173 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–नो खलु पभू चमरे असुरिंदे असुरराया, नो खलु समत्थे चमरे असुरिंदे असुरराया, नो खलु विसए चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो अप्पणो निस्साए उड्ढं उप्पइत्ता जाव सोहम्मो कप्पो, नन्नत्थ अरहंते वा, अरहंतचेइयाणि वा, अनगारे वा भाविअप्पाणो नीसाए उड्ढं उप्पयइ जाव सोहम्मो कप्पो, तं महादुक्खं खलु तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं अणगाराण य अच्चासायणाए त्ति कट्टु ओहिं पउंजइ, ममं ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता हा! हा! अहो! हतो अहमंसि त्ति कट्टु ताए उक्किट्ठाए जाव दिव्वाए देवगईए वज्जस्स वीहिं

Translated Sutra: उसी समय देवेन्द्र शक्र को इस प्रकार का आध्यात्मिक यावत्‌ मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि असुरेन्द्र असुरराज चमर इतनी शक्ति वाला नहीं है, न असुरेन्द्र असुरराज चमर इतना समर्थ है, और न ही असुरेन्द्र असुरराज चमर का इतना विषय है कि वह अरिहंत भगवंतों, अर्हन्त भगवान के चैत्यों अथवा भावितात्मा अनगार का आश्रय लिए बिना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-३ क्रिया Hindi 183 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–कम्हा णं भंते! लवणसमुद्दे चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु अतिरेगे वड्ढइ वा? हायइ वा? लवणसमुद्दवत्तव्वया नेयव्वा जाव लोयट्ठिई, लोयाणुभावे। सेवं भंते! सेवं भंते? त्ति जाव विहरति।

Translated Sutra: गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन – नमस्कार करके पूछा – भगवन्‌ ! लवणसमुद्र; चतुर्दशी, अष्टमी, अमावास्या और पूर्णमासी; इन चार तिथियों में क्यों अधिक बढ़ता या घटता है ? हे गौतम ! जीवाभिगमसूत्र में लवणसमुद्र के सम्बन्ध में जैसा कहा है, वैसा यावत्‌ ‘लोकस्थिति’ से ‘लोकानुभाव’ शब्द तक कहना चाहिए। ‘हे
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-१ सूर्य Hindi 219 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिणमागच्छंति, जच्चेव जंबुद्दीवस्स वत्तव्वया भणिया सच्चेव सव्वा अपरिसेसिया लवणसमुद्दस्स वि भाणियव्वा, नवरं–अभिलावो इमो जाणियव्वो। जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ, तं चेव जाव तदा णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं राई भवति। एएणं अभिलावेणं नेयव्वं जाव जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं नेवत्थि ओसप्पिणी, नेवत्थि उस्सप्पिणी अवट्ठिएणं तत्थ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लवणसमुद्र में सूर्य ईशानकोण में उदय होकर क्या अग्निकोण में जाते हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम! जम्बूद्वीप में सूर्यों के समान यहाँ लवणसमुद्रगत सूर्यों के सम्बन्ध में भी कहना। विशेष बात यह है कि इस वक्तव्यता में पाठ का उच्चारण इस प्रकार करना। भगवन्‌ ! जब लवणसमुद्र के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है, इत्यादि
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-२ वायु Hindi 220 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी–अत्थि णं भंते! ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति? हंता अत्थि। अत्थि णं भंते! पुरत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति? हंता अत्थि। एवं पच्चत्थिमे णं, दाहिणे णं, उत्तरे णं, उत्तर-पुरत्थिमे णं, दाहिणपच्चत्थिमे णं, दाहिण-पुरत्थिमे णं उत्तर-पच्चत्थिमेणं। जया णं भंते! पुरत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति, तया णं पच्चत्थिमे ण वि ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति; जया णं पच्चत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति, तया णं पुरत्थिमे ण वि? हंता

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ (श्री गौतमस्वामी ने) इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! क्या ईषत्पुरोवात (ओस आदि से कुछ स्निग्ध, या गीली हवा), पथ्यवात (वनस्पति आदि के लिए हितकर वायु), मन्दवात (धीमे – धीमे चलने वाली हवा), तथा महावात, प्रचण्ड तूफानी वायु बहती है ? हाँ, गौतम ! पूर्वोक्त वायु (हवाएं) बहती हैं। भगवन्‌ ! पूर्व दिशा से ईषत्पुरोवात,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-२ वायु Hindi 222 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं पन्नत्ते? एयं नेयव्वं जाव लोगट्ठिई, लोगाणुभावे। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति भगवं गोयमे जाव विहरइ।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लवणसमुद्र का चक्रवाल – विष्कम्भ कितना कहा गया है ? गौतम ! (लवणसमुद्र के सम्बन्ध में सारा वर्णन) पहले कहे अनुसार जान लेना चाहिए, यावत्‌ लोकस्थिति लोकानुभाव तक कहना चाहिए। हे भगवन्‌! यह इसी प्रकार है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 291 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] किमियं भंते! तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? किं पुढवी तमुक्काए त्ति पव्वच्चति? आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? गोयमा! नो पुढवि तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति, आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति। से केणट्ठेणं? गोयमा! पुढविकाए णं अत्थेगइए सुभे देसं पकासेइ, अत्थेगइए देसं नो पकासेइ। से तेणट्ठेणं। तमुक्काए णं भंते! कहिं समुट्ठिए? कहिं संनिट्ठिए? गोयमा! जंबूदीवस्स दीवस्स बहिया तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे वीईवइत्ता, अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साणि ओगाहित्ता उवरिल्लाओ जलंताओ एगपएसियाए सेढीए–एत्थ णं तमुक्काए समुट्ठिए। सत्तरस-एक्कवीसे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ‘तमस्काय’ किसे कहा जाता है ? क्या ‘तमस्काय’ पृथ्वी को कहते हैं या पानी को ? गौतम ! पृथ्वी तमस्काय नहीं कहलाती, किन्तु पानी ‘तमस्काय’ कहलाता है। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! कोई पृथ्वीकाय ऐसा शुभ है, जो देश को प्रकाशित करता है और कोई पृथ्वीकाय ऐसा है, जो देश को प्रकाशित नहीं करता इस कारण से पृथ्वी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-८ पृथ्वी Hindi 316 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे किं उस्सिओदए? पत्थडोदए? खुभियजले? अक्खुभियजले? गोयमा! लवणे णं समुद्दे उस्सिओदए, नो पत्थडोदए, खुभियजले, नो अखुभियजले। जहा णं भंते! लवणसमुद्दे उस्सिओदए, नो पत्थडोदए; खुभियजले, नो अखुभियजले; तहा णं बाहिरगा समुद्दा किं उस्सिओदगा? पत्थडोदगा? खुभियजला? अखुभियजला? गोयमा! बाहिरगा समुद्दा नो उस्सिओदगा, पत्थडोदगा; नो खुभियजला, अखुभियजला पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडत्ताए चिट्ठंति। अत्थि णं भंते! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहया संसेयंति? संमुच्छंति? वासं वासंति? हंता अत्थि। जहा णं भंते! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहया संसेयंति, संमुच्छंति,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या लवणसमुद्र, उछलते हुए जल वाला है, सम जल वाला है, क्षुब्ध जल वाला है अथवा अक्षुब्ध जल वाला है ? गौतम ! लवणसमुद्र उच्छितोदक है, किन्तु प्रस्तृतोदक नहीं है; वह क्षुब्ध जल वाला है, किन्तु अक्षुब्ध जल वाला नहीं है। यहाँ से प्रारम्भ करके जीवाभिगम सूत्र अनुसार यावत्‌ इस कारण से, हे गौतम ! बाहर के (द्वीप – ) समुद्र
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-७ अणगार Hindi 364 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे इमे भंते! असण्णिणो पाणा, तं जहा–पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया, छट्ठा य एगतिया तसा–एए णं अंधा, मूढा, तमपविट्ठा, तमपडल-मोहजाल-पडिच्छन्ना अकामनिकरणं वेदनं वेदेंतीति वत्तव्वं सिया? हंता गोयमा! जे इमे असण्णिणो पाणा जाव वेदनं वेदेंतीति वत्तव्वं सिया। अत्थि णं भंते! पभू वि अकामनिकरणं वेदनं वेदेंति? हंता अत्थि। कहन्नं भंते! पभू वि अकामनिकरणं वेदनं वेदेंति? गोयमा! जे णं नो पभू विणा पदीवेणं अंधकारंसि रूवाइं पासित्तए, जे णं नो पभू पुरओ रूवाइं अनिज्झाइत्ता णं पासित्तए, जे णं नो पभू मग्गओ रूवाइं अनवयक्खित्ता णं पासित्तए, जे णं नो पभू पासओ रूवाइं अनवलोएत्ता णं पासित्तए, जे णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ये जो असंज्ञी प्राणी हैं, यथा – पृथ्वीकायिक यावत्‌ वनस्पतिकायिक ये पाँच तथा छठे कईं त्रस – कायिक जीव हैं, जो अन्ध हैं, मूढ़ हैं, तामस में प्रविष्ट की तरह हैं, (ज्ञानावरणरूप) तमःपटल और (मोहनीयरूप) मोहजाल से आच्छादित हैं, वे अकामनिकरण (अज्ञान रूप में) वेदना वेदते हैं, क्या ऐसा कहा जा सकता है ? हाँ, गौतम ! जो ये
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 391 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! नाणे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे नाणे पन्नत्ते, तं जहा–आभिनिबोहियनाणे, सुयनाणे, ओहिनाणे, मनपज्जवनाणे, केवलनाणे। से किं तं आभिनिबोहियनाणे? आभिनिबोहियनाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–ओग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा। एवं जहा रायप्पसेणइज्जे नाणाणं भेदो तहेव इह भाणियव्वो जाव सेत्तं केवलनाणे। अन्नाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–मइअन्नाणे, सुयअन्नाणे, विभंगनाणे। से किं तं मइअन्नाणे? मइअन्नाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–ओग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा। से किं तं ओग्गहे? ओग्गहे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–अत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य। एवं जहेव आभिनिबोहियनाणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! पाँच प्रकार का – आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान। भगवन्‌ ! आभिनिबोधिकज्ञान कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का। अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा। राजप्रश्नीयसूत्र में ज्ञानों के भेद के कथनानुसार ‘यह है वह केवल – ज्ञान’; यहाँ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 395 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आभिनिबोहियनाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वदव्वाइं जाणइ-पासइ। खेत्तओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वं खेत्तं जाणइ-पासइ। कालओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वं कालं जाणइ-पासइ। भावओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वे भावे जाणइ-पासइ। सुयनाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वदव्वाइं जाणइ-पासइ। खेत्तओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वखेत्तं जाणइ-पासइ। कालओ णं सुयनाणी उवउत्ते

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आभिनिबोधिकज्ञान का विषय कितना व्यापक है ? गौतम ! संक्षेप में चार प्रकार का है। यथा – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से आभिनिबोधिकज्ञानी आदेश (सामान्य) से सर्वद्रव्यों को जानता और देखता है, क्षेत्र से सामान्य से सभी क्षेत्र को जानता और देखता है, इसी प्रकार काल से भी और भाव से भी जानना। भगवन्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 464 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जमाली खत्तियकुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ बहुसालाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महयाभडचडगर पहकरवंदपरिक्खित्ते, जेणेव खत्तियकुंडग्गामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता खत्तियकुंडग्गामं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गेहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं

Translated Sutra: श्रमण भगवान् महावीर के पास से धमृ सुन कर और उसे हृदयंगम करके हर्षित और सन्तुष्ट क्षत्रियकुमार जमालि यावत् उठा और खड़े होकर उसने श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की यावत् वन्दन – नमन किया और कहा – ‘‘भगवन् ! मैं र्निग्रन्थ – प्रवचन पर श्रद्धा करता हूं। भगवन् ! मैं निर्ग्रन्थ – प्रवचन पर प्रतीत
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 465 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! खत्तियकुंडग्गामं नयरं सब्भिंतरबाहिरियं आसिय-सम्मज्जिओवलित्तं जहा ओववाइए जाव सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, करेत्ता य कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ते वि तहेव पच्चप्पिणंति। तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! जमालिस्स खत्तियकुमारस्स महत्थं महग्घ महरिहं विपुलं निक्खमणाभिसेयं उवट्ठवेह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव जाव उवट्ठवेंति। तए

Translated Sutra: तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा – शीघ्र ही क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के अन्दर और बाहर पानी का छिड़काव करो, झाड़ कर जमीन की सफाई करके उसे लिपाओ, इत्यादि औपपातिक सूत्र अनुसार यावत् कार्य करके उन कौटुम्बिक पुरुषों ने आज्ञा वापस सौंपी। क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने दुबारा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-९ शिवराजर्षि Hindi 508 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चे छट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयगं गिण्हइ, गिण्हित्ता दाहिणगं दिसं पोक्खेइ, दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं, सेसं तं चेव जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ। तए णं से सिवे रायरिसी तच्चं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं से सिवे रायरिसि तच्चे छट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव

Translated Sutra: फिर मधु, घी और चावलों का अग्नि में हवन किया और चरु (बलिपात्र) में बलिद्रव्य लेकर बलिवैश्वदेव को अर्पण किया और तब अतिथि की पूजा की और उसके बाद शिवराजर्षि ने स्वयं आहार किया। तत्पश्चात्‌ उन शिवराजर्षि ने दूसरी बेला अंगीकार किया और दूसरे बेले के पारणे के दिन शिवराजर्षि आतापनाभूमि से नीचे ऊतरे, वल्कल के वस्त्र
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-१० लोक Hindi 510 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कतिविहे णं भंते! लोए पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे लोए पन्नत्ते, तं जहा–दव्वलोए, खेत्तलोए, काललोए, भावलोए। खेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–अहेलोयखेत्तलोए, तिरियलोयखेत्तलोए, उड्ढलोयखेत्तलोए। अहेलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–रयणप्पभापुढविअहेलोयखेत्तलोए जाव अहेसत्तमापुढवि-अहेलोयखेत्तलोए। तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! असंखेज्जविहे पन्नत्ते, तं जहा–जंबुद्दीवे दीवे तिरियलोयखेत्तलोए जाव सयंभूरमणसमुद्दे तिरियलोयखेत्तलोए। उड्ढलोयखेत्तलोए

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! लोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का है। यथा – द्रव्यलोक, क्षेत्रलोक, काललोक और भावलोक। भगवन्‌ ! क्षेत्रलोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का। यथा – अधोलोक – क्षेत्रलोक, तिर्यग्लोक – क्षेत्रलोक और ऊर्ध्वलोक – क्षेत्रलोक। भगवन्‌ ! अधोलोक – क्षेत्रलोक कितने प्रकार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-१० लोक Hindi 511 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लोए णं भंते! केमहालए पन्नत्ते? गोयमा! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव-समुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव एगं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, तिन्नि जोयणसयसहस्साइं सोलससहस्साइं दोन्निय सत्तावीसे जोयणसए तिन्नि य कोसे अट्ठावीसं च धनुसयं तेरस अंगुलाइं अद्धंगुलगं च किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं। तेणं कालेणं तेणं समएणं छ देवा महिड्ढीया जाव महासोक्खा जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वए मंदरचलियं सव्वओ समंता संपरि-क्खित्ताणं चिट्ठेज्जा। अहे णं चत्तारि दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ चत्तारि बलिपिंडे गहाय जंबुद्दीवस्स दीवस्स चउसु वि दिसासु बहियाभिमुहीओ ठिच्चा ते चत्तारि बलिपिंडे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लोक कितना बड़ा कहा गया है ? गौतम ! यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप, समस्त द्वीप – समुद्रों के मध्य में है; यावत्‌ इसकी परिधि तीन लाख, सोलह हजार, दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। किसी काल और किसी समय महर्द्धिक यावत्‌ महासुख – सम्पन्न छह देव, मन्दर पर्वत पर मन्दर की चूलिका
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-५ अतिपात Hindi 543 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! पाणाइवायवेरमणे, जाव परिग्गहवेरमणे, कोहविवेगे जाव मिच्छादंसणसल्लविवेगे–एस णं कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते? गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे पन्नत्ते। अह भंते! उप्पत्तिया, वेणइया, कम्मया, पारिणामिया–एस णं कतिवण्णा जाव कतिफासा पन्नत्ता? गोयमा! अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पन्नत्ता। अह भंते! ओग्गहे, ईहा, अवाए, धारणा–एस णं कतिवण्णा जाव कतिफासा पन्नत्ता? गोयमा! अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पन्नत्ता। अह भंते! उट्ठाणे, कम्मे, बले, वीरिए, पुरिसक्कार-परक्कमे–एस णं कतिवण्णे जाव कति फासे पन्नत्ते? गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे पन्नत्ते। सत्तमे णं भंते! ओवासंतरे कतिवण्णे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्राणातिपात – विरमण यावत्‌ परिग्रह – विरमण तथा क्रोधविवेक यावत्‌ मिथ्यादर्शनशल्यविवेक, इन सबमें कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श कहे हैं ? गौतम ! (ये सभी) वर्णरहित, गन्धरहित, रसरहित और स्पर्शरहित कहे हैं। भगवन्‌ ! औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी बुद्धि कितने वर्ण, गन्ध, रस
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-६ उपपात Hindi 586 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो चमरचंचे नामं आवासे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे–एवं जहा बितियसए सभाउद्देसए वत्तव्वया सच्चेव अपरिसेसा नेयव्वा। तीसे णं चमरचंचाए रायहानीए दाहिणपच्चत्थिमे णं छक्कोडिसए पणपन्नं च कोडीओ पणतीसं च सय सहस्साइं पन्नासं च सहस्साइं अरुणोदगसमुद्दं तिरियं वीइवइत्ता, एत्थ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो चमरचंचे नामं आवासे पन्नत्ते–चउरासीइं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, दो जोयणसयसहस्सा पन्नट्ठिं च सहस्साइं छच्च बत्तीसे जोयणसए किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर क्या उस ‘चमरचंच’ आवास में निवास करके रहता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! फिर किस कारण से चमरेन्द्र का आवास ‘चमरचंच’ आवास कहलाता है ? गौतम ! यहाँ मनुष्यलोक में औपकारिक लयन, उद्यान में बनाये हुए घर, नगर – प्रदेश – गृह, अथवा नगर – निर्गम गृह – जिसमें पानी के फव्वारे लगे
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-९ अनगारवैक्रिय Hindi 594 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–से जहानामए केइ पुरिसे केयाघडियं गहाय गच्छेज्जा, एवामेव अनगारे वि भावियप्पा केयाघडियाकिच्चहत्थगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? हंता उप्पएज्जा। अनगारे णं भंते! भावियप्पा केवतियाइं पभू केयाघडियाकिच्चहत्थगयाइं रूवाइं विउव्वित्तए? गोयमा! से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव अनगारे वि भावि-अप्पा वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ जाव पभू णं गोयमा! अनगारे णं भाविअप्पा केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं इत्थिरूवेहिं आइण्णं वितिकिण्णं उवत्थडं संथडं फुडं अवगाढावगाढं करेत्तए। एस णं

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! जैसे कोई पुरुष रस्सी से बंधी हुई घटिका लेकर चलता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी रस्सी से बंधी हुई घटिका स्वयं हाथ में लेकर ऊंचे आकाश में उड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! उड़ सकता है। भगवन्‌ ! भावितात्मा अनगार रस्सी से बंधी हुई घटिका हाथ में ग्रहण करने रूप कितने रूपों की विकुर्वणा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 658 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विमलवाहने णं भंते! राया सुमंगलेणं अनगारेणं सहये जाव भासरासीकए समाणे कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! विमलवाहने णं राया सुमंगलेणं अनगारेणं सहये जाव भासरासीकए समाणे अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति। से णं ततो अनंतरं उव्वट्टित्ता मच्छेसु उववज्जिहिति। तत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति। से णं तओनंतरं उव्वट्टित्ता दोच्चं पि मच्छेसु उववज्जिहिति। तत्थ णं वि सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा छट्ठाए तमाए पुढवीए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सुमंगल अनगार द्वारा अश्व, रथ और सारथि – सहित भस्म किया हुआ विमलवाहन राजा कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! वह अधःसप्तम पृथ्वी में, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नरकों में नैरयिकरूप से उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत्‌ उद्वर्त्त कर मत्स्यों में उत्पन्न होगा। वहाँ भी शस्त्र के द्वारा वध होने पर दाहज्वर की पीड़ा से काल
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-६ स्वप्न Hindi 680 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं हयपंतिं वा गयपंतिं वा नरपंतिं वा किन्नरपंतिं वा किंपुरिसपंतिं वा महोरग-पंतिं वा गंधव्वपंतिं वा वसभपंतिं वा पासमाणे पासति, द्रुहमाणे द्रुहति, द्रूढमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं दामिणिं पाईणपडिणायतं दुहओ समुद्दे पुट्ठं पासमाणे पासति, संवेल्लेमाणे संवेल्लेइ, संवेल्लियमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं रज्जुं पाईणपडिणायतं

Translated Sutra: कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में एक महान्‌ अश्वपंक्ति, गजपंक्ति अथवा यावत्‌ वृषभ – पंक्ति का अवलोकन करता हुआ देखे, और उस पर चढ़ने का प्रयत्न करता हुआ चढ़े तथा अपने आपको उस पर चढ़ा हुआ माने ऐसा स्वप्न देखकर तुरन्त जागृत हो तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत्‌ सभी दुःखों का अन्त करता है। कोई स्त्री या पुरुष
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-७ केवली Hindi 744 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुण सिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहा–कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी गाहावई। तए णं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सण्णिसण्णाणं अय-मेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्ग-लत्थिकायं। तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अजीवकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं,

Translated Sutra: उस काल उस समय राजगृह नामक नगर था। (वर्णन)। वहाँ गुणशील नामक उद्यान था। (वर्णन)। यावत्‌ वहाँ एक पृथ्वीशिलापट्टक था। उस गुणशील उद्यान के समीप बहुत – से अन्यतीर्थिक रहते थे, यथा – कालोदायी, शैलोदायी इत्यादि समग्र वर्णन सातवें शतक के अन्यतीर्थिक उद्देशक के अनुसार, यावत्‌ – ‘यह कैसे माना जा सकता है?’ यहाँ तक समझना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-७ केवली Hindi 747 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवे णं भंते! महिड्ढिए जाव महेसक्खे पभू लवणसमुद्दं अनुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छित्तए? हंता पभू। देवे णं भंते! महिड्ढिए जाव महेसक्खे पभू धायइसंडं दीवं अनुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छित्तए? हंता पभू। एवं जाव रुयगवरं दीवं अनुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छित्तए? हंता पभू। तेण परं वीईवएज्जा, नो चेव णं अनुपरियट्टेज्जा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! महर्द्धिक यावत्‌ महासुखसम्पन्न देव लवणसमुद्र के चारों ओर चक्कर लगाकर शीघ्र आने में समर्थ हैं ? हाँ, गौतम ! समर्थ हैं। भगवन्‌ ! महर्द्धिक यावत्‌ महासुखी देव धातकीखण्ड द्वीप के चारों ओर चक्कर लगाकर शीघ्र आने में समर्थ हैं ? हाँ, गौतम ! वे समर्थ हैं। भगवन्‌ ! क्या इसी प्रकार वे देव रुचकवर द्वीप तक चारों ओर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३४ एकेन्द्रिय

शतक-शतक-१

उद्देशक-२ थी ११ Hindi 1035 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! अनंतरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा अनंतरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया, दुयाभेदो जहा एगिंदियसएसु जाव बादरवणस्सइकाइया य। कहि णं भंते! अनंतरोववन्नगाणं बादरपुढविक्काइयाणं ठाणा पन्नत्ता? गोयमा! सट्ठाणेणं अट्ठसु पुढवीसु, तं जहा–रयणप्पभाए जहा ठाणपदे जाव दीवेसु समुद्देसु, एत्थ णं अनंतरोववन्नगाणं बादरपुढविकाइयाणं ठाणा पन्नत्ता, उववाएणं सव्वलोए, समुग्घाएणं सव्वलोए, सट्ठाणेणं लोगस्स असंखेज्जइभागे। अनंतरोववन्नगसुहुमपुढविक्काइया एगविहा अविसेसमणाणत्ता सव्वलोए परियावन्ना पन्नत्ता समणाउसो! एवं एएणं कमेणं सव्वे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वीकायिक यावत्‌ वनस्पतिकायिक। फिर प्रत्येक के दो – दो भेद एकेन्द्रिय शतक के अनुसार वनस्पतिकायिक पर्यन्त कहना। भगवन्‌ ! अनन्तरोपपन्नक बादर पृथ्वीकायिक जीवों के स्थान कहाँ कहे हैं ? गौतम ! वे स्वस्थान की अपेक्षा आठ पृथ्वीयों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

उपसंहार

Hindi 1081 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तव-नियम-विनयवेलो जयति सया नाणविमलविपुलजलो। हेउसयविउलवेगो संघसमुद्दो गुणविसालो॥

Translated Sutra: गुणों से विशाल संघरूपी समुद्र सदैव विजयी होता है, जो ज्ञानरूपी विमल और विपुल जल से परिपूर्ण है, जिसकी तप, नियम और विनयरूपी वेला है और जो सैकड़ों हेतुओं – रूप प्रबल वेग वाला है।
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक Gujarati 112 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइआओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं कयंगला नामं नगरी होत्था–वण्णओ। तीसे णं कयंगलाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए छत्तपलासए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तए णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिने केवली जेणेव कयंगला नगरी जेणेव छत्तपलासए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ जाव समोसरणं। परिसा निग्गच्छइ। तीसे णं कयंगलाए नयरीए अदूरसामंते सावत्थी नामं नयरी होत्था–वण्णओ। तत्थ

Translated Sutra: (૧) તે કાળે તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીર રાજગૃહી નગર પાસે આવેલ ગુણશીલ ચૈત્યથી નીકળ્યા. નીકળીને બહાર જનપદમાં વિહાર કર્યો. તે કાળે તે સમયે કૃતંગલા નામે નગરી હતી. ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર નગરીનું વર્ણન જાણવું. તે કૃતંગલા નગરીની બહાર ઈશાન ખૂણામાં છત્રપલાશક નામે ચૈત્ય હતું. ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર ઉદ્યાનનું વર્ણન જાણવું. ત્યારે
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-८ चमरचंचा Gujarati 140 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीईवइत्ता अरणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसयसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तिगिंछिकूडे नामं उप्पायपव्वए पन्नत्ते–सत्तरस-एक्कवीसे जोयणसए उड्ढं उच्चत्तेणं चत्तारितीसे जोयणसए कोसं च उव्वेहेणं मूले दसबावीसे जोयणसए विक्खंभेणं, मज्झे चत्तारि चउवीसे जोयणसए विक्खंभेणं, उवरिं सत्ततेवीसे जोयणसए विक्खंभेणं मूले तिन्नि जोयणसहस्साइं, दोन्निय बत्तीसुत्तरे

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! અસુરેન્દ્ર અસુરકુમારરાજ ચમરની સુધર્માસભા ક્યાં છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના મેરુ પર્વતની દક્ષિણે તીર્છા અસંખ્ય દ્વીપ સમુદ્રો ગયા પછી અરુણવરદ્વીપના વેદિકાના બાહ્ય છેડાથી અરુણોદય સમુદ્રમાં ૪૨,૦૦૦ યોજન ગયા પછી આ અસુરેન્દ્ર અસુરકુમાર રાજ ચમરનો તિગિચ્છિકકૂટ નામે ઉત્પાતપર્વત છે. તે ૧૭૨૧ યોજન ઊંચો
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-९ समयक्षेत्र Gujarati 141 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] किमिदं भंते! समयखेत्ते त्ति पवुच्चति? गोयमा! अड्ढाइज्जा दीवा, दो य समुद्दा, एस णं एवइए समयखेत्तेति पवुच्चति। तत्थ णं अयं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव-समुद्दाणं सव्वब्भंतरे। एवं जीवाभिगमवत्तव्वया नेयव्वा जाव अब्भिंतर-पुक्खरद्धं जोइसविहूणं।

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! ક્યા ક્ષેત્રને સમયક્ષેત્ર કહે છે ? ગૌતમ ! અઢી દ્વીપ અને બે સમુદ્ર એટલું એ સમયક્ષેત્ર કહેવાય. તેમાં આ જંબૂદ્વીપ છે તે બધા દ્વીપ – સમુદ્રોની વચ્ચોવચ્ચ છે. એ પ્રમાણે બધુ જીવાભિગમ સૂત્ર મુજબ કહેવું યાવત્‌ અભ્યંતર – પુષ્કરાર્ધદ્વીપ. પણ તેમાં જ્યોતિષ્કની હકીકત ન કહેવી.
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा Gujarati 152 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं मोया नामं नयरी होत्था–वण्णओ। तीसे णं मोयाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे नंदने नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा निग्गच्छइ, पडिगया परिसा। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स दोच्चे अंतेवासी अग्गिभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासि– चमरे णं भंते! असुरिंदे असुरराया केमहिड्ढीए? केमहज्जुतीए? केमहाबले? केमहायसे? केमहासोक्खे? केमहानुभागे? केवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए? गोयमा! चमरे णं असुरिंदे असुरराया महिड्ढीए, महज्जुतीए, महाबले, महायसे, महासोक्खे, महानुभागे!

Translated Sutra: તે કાળે તે સમયે મોકા નામે નગરી હતી. નગરીનું વર્ણન ઉવાવાઈ સૂત્ર અનુસાર જાણવું. તે મોકા નગરી બહાર ઈશાનકોણમાં નંદન નામે ચૈત્ય હતું (વર્ણન કરવું) તે કાળે તે સમયે શ્રમણ ભગવાન મહાવીર સ્વામી સમોસર્યા(પધાર્યા), પર્ષદા ધર્મશ્રવણ માટે નીકળી, ધર્મ સાંભળી પર્ષદા પાછી ફરી. તે કાળે તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના બીજા શિષ્ય
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा Gujarati 153 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो सामानियदेवा एमहिड्ढीया जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुररन्नो तावत्तीसया देवा केमहिड्ढीया? तावत्तीसया जहा सामाणिया तहा नेयव्वा। लोयपाला तहेव, नवरं–संखेज्जा दीव-समुद्दा भाणियव्वा। जइ णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो लोगपाला देवा एमहिड्ढीया जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररन्नो अग्गमहिसीओ देवीओ केमहिड्ढियाओ जाव केवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए? गोयमा! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररन्नो अग्गमहिसीओ देवीओ महिड्ढियाओ जाव महानु-भागाओ। ताओ णं तत्थ साणं-साणं भवणाणं,

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૫૩. ભગવન્‌ ! જો અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમર એવી મોટી ઋદ્ધિવાળો યાવત્‌ એવી વિકુર્વણાવાળો છે, તો ભગવન્‌ ! અસુરેન્દ્ર ચમરના સામાનિક દેવોની કેવી મોટી ઋદ્ધિ યાવત્‌ વિકુર્વણા શક્તિ છે ? ગૌતમ ! અસુરેન્દ્ર ચમરના સામાનિક દેવો મહર્દ્ધિક યાવત્‌ મહાનુભાગ છે, તેઓ ત્યાં પોત – પોતાના ભવનો ઉપર – સામાનિકો ઉપર – પટ્ટરાણી
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा Gujarati 155 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से तच्चे गोयमे वायुभूति अनगारे दोच्चे णं गोयमेणं अग्गिभूतिणा अनगारेणं सद्धिं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–जइ णं भंते! चमरे असुरिंदे असुरराया एमहिड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, बली णं भंते! वइरोयणिंदे वइरोयणराया केमहिड्ढीए? जाव केवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए? गोयमा! बली णं वइरोयणिंदे वइरोयणराया महिड्ढीए जाव महानुभागे। जहा चमरस्स तहा बलिस्स वि नेयव्वं, नवरं–सातिरेगं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं भाणियव्वं, सेसं तं चेव निरवसेसं नेयव्वं, नवरं–नाणत्तं जाणियव्वं भवणेहिं सामाणिएहि य। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति तच्चे

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૫૩
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा Gujarati 161 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं बलिचंचा रायहानी अणिंदा अपुरोहिया या वि होत्था। तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तामलिं बालतवस्सिं ओहिणा आभोएंति, आभोएत्ता अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासि– एवं खलु देवानुप्पिया! बलिचंचा रायहानी अणिंदा अपुरोहिया, अम्हे य णं देवानुप्पिया! इंदाहीणा इंदाहिट्ठिया इंदाहीणकज्जा, अयं च णं देवानुप्पिया! तामली बालतवस्सी तामलित्तीए नगरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसिभागे नियत्तणियमंडलं आलिहित्ता संलेहणाज्झूसणाज्झूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगमणं निवण्णे, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं तामलिं

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૬૧. ત્યારે તે બલિચંચા રાજધાનીમાં રહેનારા ઘણા અસુરકુમાર દેવ – દેવીઓએ તામલિ બાલતપસ્વીને અવધિ વડે જોયો. પછી પરસ્પર બોલાવીને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે દેવાનુપ્રિયો ! બલિચંચા રાજધાની ઇન્દ્ર, પુરોહિત રહિત છે હે દેવાનુપ્રિયો ! આપણે ઇન્દ્રાધીન અને ઇન્દ્રાધિષ્ઠિત છીએ. ઇન્દ્રના તાબે કાર્ય કરીએ છીએ. હે દેવાનુપ્રિયો
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-२ चमरोत्पात Gujarati 170 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था जाव परिसा पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिंदे असुरराया चमरचंचाए रायहानीए, सभाए सुहम्माए, चमरंसि सीहासनंसि, चउसट्ठीए सामानियसाहसहिं जाव नट्टविहिं उवदंसेत्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे असुरकुमारा देवा परिवसंति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। एवं जाव अहेसत्तमाए पुढवीए, सोहम्मस्स कप्पस्स अहे जाव अत्थि णं भंते! ईसिप्पब्भाराए पुढवीए अहे असुर-कुमारा देवा परिवसंति? नो इणट्ठे

Translated Sutra: તે કાળે તે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતું. ભગવંત મહાવીર પધાર્યા યાવત્‌ પર્ષદા પર્યુપાસે છે. તે કાળે તે સમયે અસુરેન્દ્ર, અસુરરાજ ચમર ચમરચંચા રાજધાનીમાં, સુધર્માસભામાં ચમર નામે સિંહાસન ઉપર બેઠેલો, ૬૪,૦૦૦ સામાનિક દેવોથી વીંટળાયેલો ચમરેન્દ્ર ભગવંતના વંદનાર્થે આવ્યો યાવત્‌ ભગવંતને નૃત્યવિધિ દેખાડીને જે દિશામાંથી
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शतक-३

उद्देशक-२ चमरोत्पात Gujarati 172 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चमरे णं भंते! असुरिंदेणं असुररण्णा सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे? पत्ते? अभिसमन्नागए? एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूदीवे दीवे भारहे वासे विंज्झगिरिपायमूले बेभेले नामं सन्निवेसे होत्था–वण्णओ। तत्थ णं बेभेले सन्निवेसे पूरणे नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे दित्ते जाव बहुजणस्स अपरिभूए या वि होत्था। तए णं तस्स पूरणस्स गाहावइस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अत्थि ता मे पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं

Translated Sutra: અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમરે તે દિવ્ય દેવઋદ્ધિ યાવત્‌ ક્યાં લબ્ધ – પ્રાપ્ત – અભિસન્મુખ કરી ? ગૌતમ ! તે કાળે તે સમયે આ જ જંબૂદ્વીપમાં ભરતક્ષેત્રમાં વિંધ્યગિરિની તળેટીમાં બેભેલ નામે સંનિવેશ હતું. તેનું વર્ણન ઉવાવાઈ સૂત્રાનુસાર ચંપાનગરી મુજબ જાણવું. તે બેભેલ સંનિવેશે પૂરણ નામે ગૃહસ્થ રહેતો હતો, તે આઢ્ય, દિપ્ત યાવત્‌
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शतक-३

उद्देशक-२ चमरोत्पात Gujarati 173 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–नो खलु पभू चमरे असुरिंदे असुरराया, नो खलु समत्थे चमरे असुरिंदे असुरराया, नो खलु विसए चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो अप्पणो निस्साए उड्ढं उप्पइत्ता जाव सोहम्मो कप्पो, नन्नत्थ अरहंते वा, अरहंतचेइयाणि वा, अनगारे वा भाविअप्पाणो नीसाए उड्ढं उप्पयइ जाव सोहम्मो कप्पो, तं महादुक्खं खलु तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं अणगाराण य अच्चासायणाए त्ति कट्टु ओहिं पउंजइ, ममं ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता हा! हा! अहो! हतो अहमंसि त्ति कट्टु ताए उक्किट्ठाए जाव दिव्वाए देवगईए वज्जस्स वीहिं

Translated Sutra: ત્યારે તે દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રને આ પ્રકારનો યાવત્‌ સંકલ્પ ઉત્પન્ન થયો. અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમર સમર્થ નથી. આટલો શક્તિવાળો નથી આટલો તેનો વિષય પણ નથી કે પોતાના બળથી યાવત્‌ સૌધર્મકલ્પ સુધી ઊંચે આવે. જો તેણે અરિહંત, અરિહંતચૈત્ય કે ભાવિતાત્મા અનગારનો આશરો લીધો હોય, તો તે ઊંચે યાવત્‌ સૌધર્મકલ્પે આવી શકે. જો તેમ
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शतक-३

उद्देशक-३ क्रिया Gujarati 183 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–कम्हा णं भंते! लवणसमुद्दे चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु अतिरेगे वड्ढइ वा? हायइ वा? लवणसमुद्दवत्तव्वया नेयव्वा जाव लोयट्ठिई, लोयाणुभावे। सेवं भंते! सेवं भंते? त्ति जाव विहरति।

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! એમ કહી ગૌતમસ્વામી શ્રમણ ભગવંત મહાવીરને વાંદી – નમીને આમ કહ્યું – ભગવન્‌ ! લવણ સમુદ્રની વેળા(પાણી) ચૌદશ, આઠમ, પૂનમ અને અમાસે વધારે કેમ વધે છે કે ઘટે છે ? જીવાભિગમમાં જેમ લવણસમુદ્ર વક્તવ્યતા છે તે લોક – સ્થિતિ સુધી અહીં જાણવી. જ્યાં સુધી લવણસમુદ્ર જંબૂદ્વીપને ન ડૂબાડે કે લોકાનુભાવથી એકોદકં ન કરે ત્યાં
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शतक-५

उद्देशक-१ सूर्य Gujarati 219 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिणमागच्छंति, जच्चेव जंबुद्दीवस्स वत्तव्वया भणिया सच्चेव सव्वा अपरिसेसिया लवणसमुद्दस्स वि भाणियव्वा, नवरं–अभिलावो इमो जाणियव्वो। जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ, तं चेव जाव तदा णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं राई भवति। एएणं अभिलावेणं नेयव्वं जाव जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं नेवत्थि ओसप्पिणी, नेवत्थि उस्सप्पिणी अवट्ठिएणं तत्थ

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! લવણસમુદ્રમાં સૂર્ય ઈશાન ખૂણામાં ઊગીને અગ્નિ ખૂણામાં અસ્ત થાય છે? ઇત્યાદિ. ગૌતમ ! જેમ જંબૂદ્વીપનાં સૂર્યના સંબંધમાં કહ્યું તેમ બધું જ કથાન લવણ સમુદ્રનાં સૂર્યના સંબંધમાં પણ કહેવું. વિશેષ એ કે – આ વક્તવ્યતામાં જંબૂદ્વીપ શબ્દને સ્થાને લવણ સમુદ્ર શબ્દ કહેવો. તે આલાવો આમ કહેવો – ભગવન્‌ ! લવણસમુદ્રના દક્ષિણાર્ધમાં
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शतक-५

उद्देशक-२ वायु Gujarati 220 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी–अत्थि णं भंते! ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति? हंता अत्थि। अत्थि णं भंते! पुरत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति? हंता अत्थि। एवं पच्चत्थिमे णं, दाहिणे णं, उत्तरे णं, उत्तर-पुरत्थिमे णं, दाहिणपच्चत्थिमे णं, दाहिण-पुरत्थिमे णं उत्तर-पच्चत्थिमेणं। जया णं भंते! पुरत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति, तया णं पच्चत्थिमे ण वि ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति; जया णं पच्चत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति, तया णं पुरत्थिमे ण वि? हंता

Translated Sutra: રાજગૃહનગરે યાવત્‌ ગૌતમસ્વામીએ આ પ્રમાણે કહ્યું – ભગવન્‌ ! શું ઇષત્‌ પુરોવાત, પથ્યવાત, મંદવાત, મહાવાત વાયુ વાય છે ? હા, ગૌતમ ! તે બધા વાયુ વાય છે. ભગવન્‌ ! પૂર્વમાં ઇષત્‌પુરોવાત, પથ્યવાત, મંદવાત, મહાવાત છે ? હા, ગૌતમ ! તેમ છે. એ રીતે પશ્ચિમ, દક્ષિણ, ઉત્તર, ઈશાન, અગ્નિ, નૈઋત્ય, વાયવ્યમાં પણ જાણવું. ભગવન્‌ ! જ્યારે પૂર્વમાં
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शतक-५

उद्देशक-२ वायु Gujarati 222 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं पन्नत्ते? एयं नेयव्वं जाव लोगट्ठिई, लोगाणुभावे। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति भगवं गोयमे जाव विहरइ।

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! લવણસમુદ્રનો ચક્રવાલ વિષ્કંભ (ચારે તરફની પહોળાઈ)કેટલો કહ્યો છે ? લવણ સમુદ્રનું સંપૂર્ણ વર્ણન લોકસ્થિતિ, લોકાનુભાવ સુધી જીવાભિગમ સૂત્ર અનુસાર જાણવું. ભગવન્‌ ! તે એમ જ છે, એમ જ છે કહી ગૌતમ સ્વામી યાવત્‌ વિચરે છે.
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शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Gujarati 291 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] किमियं भंते! तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? किं पुढवी तमुक्काए त्ति पव्वच्चति? आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? गोयमा! नो पुढवि तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति, आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति। से केणट्ठेणं? गोयमा! पुढविकाए णं अत्थेगइए सुभे देसं पकासेइ, अत्थेगइए देसं नो पकासेइ। से तेणट्ठेणं। तमुक्काए णं भंते! कहिं समुट्ठिए? कहिं संनिट्ठिए? गोयमा! जंबूदीवस्स दीवस्स बहिया तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे वीईवइत्ता, अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साणि ओगाहित्ता उवरिल्लाओ जलंताओ एगपएसियाए सेढीए–एत्थ णं तमुक्काए समुट्ठिए। सत्तरस-एक्कवीसे

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! આ તમસ્કાય શું છે ? શું પૃથ્વી કે પ્રાણી તમસ્કાય કહેવાય ? ગૌતમ ! પૃથ્વી તમસ્કાય ન કહેવાય, પણ પાણી ‘તમસ્કાય’ કહેવાય. ભગવન્‌ ! એમ શામાટે કહ્યું ? ગૌતમ ! કેટલોક પૃથ્વીકાય શુભ છે, તે અમુક ક્ષેત્રને પ્રકાશિત કરે છે, કેટલોક પૃથ્વીકાય એવો છે કે જે ક્ષેત્રના એક ભાગને પ્રકાશિત નથી કરતો, તેથી એમ કહ્યું. ભગવન્‌ ! તમસ્કાયના
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शतक-६

उद्देशक-८ पृथ्वी Gujarati 316 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे किं उस्सिओदए? पत्थडोदए? खुभियजले? अक्खुभियजले? गोयमा! लवणे णं समुद्दे उस्सिओदए, नो पत्थडोदए, खुभियजले, नो अखुभियजले। जहा णं भंते! लवणसमुद्दे उस्सिओदए, नो पत्थडोदए; खुभियजले, नो अखुभियजले; तहा णं बाहिरगा समुद्दा किं उस्सिओदगा? पत्थडोदगा? खुभियजला? अखुभियजला? गोयमा! बाहिरगा समुद्दा नो उस्सिओदगा, पत्थडोदगा; नो खुभियजला, अखुभियजला पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडत्ताए चिट्ठंति। अत्थि णं भंते! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहया संसेयंति? संमुच्छंति? वासं वासंति? हंता अत्थि। जहा णं भंते! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहया संसेयंति, संमुच्छंति,

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! શું લવણસમુદ્ર ઉચ્છ્રિતોદક, પત્થડોદક, ક્ષુભિતજળ, અક્ષુભિતજળ છે ? ગૌતમ ! લવણસમુદ્ર ઉચ્છ્રિતોદક(ઉછળતા પાણીવાળો) છે, પત્થડોદક(સમતલ જળવાળો નહીં). ક્ષુભિતજળ છે, અક્ષુભિતજળ નથી. અહીંથી આરંભી જીવાજીવાભિગમ સૂત્રાનુસાર જાણવું યાવત્‌ તે હેતુથી... હે ગૌતમ ! બાહ્ય દ્વીપ સમુદ્રો પૂર્ણ, પૂર્ણ પ્રમાણવાળા, છલોછલ ભરેલા,
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शतक-१२

उद्देशक-५ अतिपात Gujarati 543 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! पाणाइवायवेरमणे, जाव परिग्गहवेरमणे, कोहविवेगे जाव मिच्छादंसणसल्लविवेगे–एस णं कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते? गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे पन्नत्ते। अह भंते! उप्पत्तिया, वेणइया, कम्मया, पारिणामिया–एस णं कतिवण्णा जाव कतिफासा पन्नत्ता? गोयमा! अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पन्नत्ता। अह भंते! ओग्गहे, ईहा, अवाए, धारणा–एस णं कतिवण्णा जाव कतिफासा पन्नत्ता? गोयमा! अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पन्नत्ता। अह भंते! उट्ठाणे, कम्मे, बले, वीरिए, पुरिसक्कार-परक्कमे–एस णं कतिवण्णे जाव कति फासे पन्नत्ते? गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे पन्नत्ते। सत्तमे णं भंते! ओवासंतरे कतिवण्णे

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૪૨
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शतक-७

उद्देशक-७ अणगार Gujarati 364 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे इमे भंते! असण्णिणो पाणा, तं जहा–पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया, छट्ठा य एगतिया तसा–एए णं अंधा, मूढा, तमपविट्ठा, तमपडल-मोहजाल-पडिच्छन्ना अकामनिकरणं वेदनं वेदेंतीति वत्तव्वं सिया? हंता गोयमा! जे इमे असण्णिणो पाणा जाव वेदनं वेदेंतीति वत्तव्वं सिया। अत्थि णं भंते! पभू वि अकामनिकरणं वेदनं वेदेंति? हंता अत्थि। कहन्नं भंते! पभू वि अकामनिकरणं वेदनं वेदेंति? गोयमा! जे णं नो पभू विणा पदीवेणं अंधकारंसि रूवाइं पासित्तए, जे णं नो पभू पुरओ रूवाइं अनिज्झाइत्ता णं पासित्तए, जे णं नो पभू मग्गओ रूवाइं अनवयक्खित्ता णं पासित्तए, जे णं नो पभू पासओ रूवाइं अनवलोएत्ता णं पासित्तए, जे णं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! જે આ અસંજ્ઞી પ્રાણી છે, જેમ કે – પૃથ્વીકાયિક યાવત્‌ વનસ્પતિકાયિક, છઠ્ઠા કોઈ ત્રસ જીવ, જે અંધ છે, મૂઢ છે – તમપ્રવિષ્ટ છે – તમઃપટલ અને મોહજાલથી આચ્છાદિત છે, તેઓ અકામનિકરણ(અજાણપણે કે અનિચ્છાએ) વેદના વેદે છે, એવું કહી શકાય ? હા, ગૌતમ ! એવું કહી શકાય. ભગવન્‌ ! શું તે સમર્થ હોવા છતાં અકામનિકરણ વેદના વેદે છે ? હા, ગૌતમ
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Gujarati 391 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! नाणे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे नाणे पन्नत्ते, तं जहा–आभिनिबोहियनाणे, सुयनाणे, ओहिनाणे, मनपज्जवनाणे, केवलनाणे। से किं तं आभिनिबोहियनाणे? आभिनिबोहियनाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–ओग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा। एवं जहा रायप्पसेणइज्जे नाणाणं भेदो तहेव इह भाणियव्वो जाव सेत्तं केवलनाणे। अन्नाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–मइअन्नाणे, सुयअन्नाणे, विभंगनाणे। से किं तं मइअन्नाणे? मइअन्नाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–ओग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा। से किं तं ओग्गहे? ओग्गहे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–अत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य। एवं जहेव आभिनिबोहियनाणं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! જ્ઞાન કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! પાંચ ભેદે – આભિનિબોધિક જ્ઞાન, શ્રુતજ્ઞાન, અવધિજ્ઞાન, મનઃપર્યવજ્ઞાન, કેવળ જ્ઞાન. ભગવન્‌ ! તે આભિનિબોધિક જ્ઞાન શું છે ? તે ચાર ભેદે છે – અવગ્રહ, ઈહા, અપાય, ધારણા. એ રીતે જેમ રાયપ્પસેણઈયમાં જ્ઞાનના ભેદો કહ્યા છે, તેમ અહીં પણ કહેવા. તે કેવલજ્ઞાન સુધી કથન કરવું. ભગવન્‌ ! અજ્ઞાન કેટલા
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Gujarati 395 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आभिनिबोहियनाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वदव्वाइं जाणइ-पासइ। खेत्तओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वं खेत्तं जाणइ-पासइ। कालओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वं कालं जाणइ-पासइ। भावओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वे भावे जाणइ-पासइ। सुयनाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वदव्वाइं जाणइ-पासइ। खेत्तओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वखेत्तं जाणइ-पासइ। कालओ णं सुयनाणी उवउत्ते

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૯૫. ભગવન્‌ ! આભિનિબોધિક જ્ઞાનનો વિષય કેટલો છે ? ગૌતમ ! સંક્ષેપથી ચાર પ્રકારે છે – દ્રવ્યથી, ક્ષેત્રથી, કાળથી, ભાવથી. દ્રવ્યથી આભિનિબોધિક જ્ઞાની અપેક્ષાથી સર્વ દ્રવ્યોને જાણે અને જુએ. ક્ષેત્રથી તે સર્વક્ષેત્રને જાણે અને જુએ. એ પ્રમાણે કાળથી અને ભાવથી પણ જાણવું. ભગવન્‌ ! શ્રુતજ્ઞાનનો વિષય કેટલો છે ? ગૌતમ
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-२ Gujarati 443 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे केवतिया चंदा पभासिंसु वा? पभासेंति वा? पभासिस्संति वा? एवं जहा जीवाभिगमे जाव ताराओ। धायइसंडे, कालोदे, पुक्खरवरे, अब्भंतपुक्खरद्धे, मनुस्सखेत्ते–एएसु सव्वेसु जहा जीवा-भिगमे जाव–एगससीपरिवारो, तारागणकोडिकोडीणं। पुक्खरोदे णं भंते! समुद्दे केवतिया चंदा पभासिंसु वा? पभासेंति वा? पभासिस्संति वा? एवं सव्वेसु दीव-समुद्देसु जोतिसियाणं भाणियव्वं जाव सयंभूरमणे जाव सोभिंसु वा, सोभिंति वा, सोभिस्संति वा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૪૦
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३ थी ३० अंतर्द्वीप Gujarati 444 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं एगूरुयमनुस्साणं एगूरुयदीवे नामं दीवे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुद्दं उत्तरपुरत्थिमे णं तिन्नि जोयणसयाइं ओगाहित्ता एत्थ णं दाहिणिल्लाणं एगुरुयमनुस्साणं एगूरुयदीवे नामं दीवे पन्नत्ते–तिन्नि जोयणसयाइं आयाम-विक्खंभेणं, नव एगूणवन्ने जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। दोण्ह वि पमाणं वण्णओ य। एवं एएणं कमेणं एवं जहा जीवाभिगमे जाव सुद्धदंतदीवे जाव

Translated Sutra: રાજગૃહનગરમાં યાવત્‌ ગૌતમસ્વામીએ આમ કહ્યું – ભગવન ! દક્ષિણ દિશાના એકોરુક મનુષ્યોનો એકોરુક દ્વીપ ક્યાં કહ્યો છે? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના મેરુ પર્વતની દક્ષિણે ચુલ્લ હિમવંત વર્ષધર પર્વતની પૂર્વ દિશાના ચરમાંતથી, લવણસમુદ્રમાં ઇશાન ખૂણામાં ૩૦૦ યોજન ગયા પછી તેની દક્ષિણ દિશાએ એકોરુક મનુષ્યોનો એકોરુક દ્વીપ નામનો
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३१ अशोच्चा Gujarati 449 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! किं उड्ढं होज्जा? अहे होज्जा? तिरियं होज्जा? गोयमा! उड्ढं वा होज्जा, अहे वा होज्जा, तिरियं वा होज्जा। उड्ढं होमाणे सद्दावइ-वियडावइ-गंधावइ-मालवंतपरियाएसु वट्ट-वेयड्ढपव्वएसु होज्जा, साहरणं पडुच्च सोमनसवने वा पंडगवने वा होज्जा। अहे होमाणे गड्डाए वा दरीए वा होज्जा, साहरणं पडुच्च पायाले वा भवने वा होज्जा। तिरियं होमाणे पन्नरससु कम्मभूमीसु होज्जा, साहरणं पडुच्च अड्ढाइज्जदीव-समुद्द तदेक्कदे-सभाए होज्जा। ते णं भंते! एगसमए णं केवतिया होज्जा? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं दस। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–असोच्चा णं केवलिस्स वा जाव

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૪૭
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