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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1275 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अत्ताणं वि गोवेउं ढिणि-ढिणिंते य हिंडिउं।
नग्गुग्घाडे किलेसेणं, जा समज्जंति परिहणं॥ Translated Sutra: दूसरे न देखे इस तरह खुद को छिपाकर ढिणीं ढिणीं आवाज करके चले, नग्न खूले शरीरवाला क्लेश का अहेसास करते हुए चले जिससे पहनने के कपड़े न मिले, वो भी पुराने, फटे, छिद्रवाले महा मुश्किल से पाए हो वो फटे हुए ओढ़ने के वस्त्र आज सी लूँगा – कल सी लूँगा ऐसा करके वैसे ही फटे हुए कपड़े पहने और इस्तमाल करे। तो भी हे गौतम ! साफ प्रकट | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1276 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जर-जुन्न-फुट्ट-सयच्छिद्दं लद्धं कह कह वि ओड्ढणं।
जा अज्ज कल्लिं कारिमोफट्टं ता तम वि परिहरणं॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२७५ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1277 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहा वि गोयमा बुज्झ फुड-वियड-परिफुडं।
एतेसिं चेव मज्झाओ अनंतरं भणियाण कस्स॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२७५ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1278 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लोगं लोगाचारं च चेच्चा सयण-कियं ता।
भोगावभोगं दाणं च, भोत्तूणं कदसणाह॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२७५ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1279 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धाविउं गुप्पिउं सुइरं, खिज्जिऊण अहन्निसं।
कागिणिं कागिणी-काउं अद्धं पायं विसोवगं॥ Translated Sutra: दौड़ादौड़ी करके छिपाकर बचाकर लम्बे अरसे तक रात दिन गुस्सा होकर, कागणी – अल्पप्रमाण धन इकट्ठा किया हो कागणी का अर्धभाग, चौथा हिस्सा, बीसवाँ हिस्सा भेजा। किसी तरह के कहीं से लम्बे अरसे से लाख या करोड़ प्रमाण धन इकट्ठा किया। जहाँ एक ईच्छा पूर्ण हुई कि तुरन्त दूसरी खड़ी होती है। लेकिन दूसरे मनोरथ पूर्ण नहीं होते। सूत्र | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1280 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कत्थइ कहिंचि कालेणं, लक्खं कोडिं च मेलिउं।
जइ एगिच्छा मई पुण्णा बीया नो संपज्जए॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२७९ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1324 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दिप्पंत-कुवलय-कल्हारं कुमुय-सयवत्त-वणप्फई।
कुरुलिंते हंस-कारंडे चक्कवाए सुणेइ या॥ Translated Sutra: और फिर विकसित शोभायमान नील और श्वेत कमल शतपत्रवाले चन्द्र विकासी कमल आदि तरोताजा वनस्पति, मधुर शब्द बोलते हंस और कारंड़ जाति के पंछी चक्रवाक् आदि को सुनता था। साँतवींस वंश परम्परा में भी किसी ने न देखा हुआ उस तरह के अद्भूत तेजस्वी चन्द्रमंड़ल को देखकर पलभर चिन्तवन करने लगा क्या यही स्वर्ग होगा ? तो अब आनन्द | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Hindi | 1527 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ॐ नमो चउवीसाए तित्थंकराणं, ॐ नमो तित्थस्स, ॐ नमो सुयदेवयाए भगवईए, ॐ नमो सुयकेव-लीणं ॐ नमो सव्वसाहूणं ॐ नमो [सव्वसिद्धाणं] ॐ नमो भगवओ अरहओ सिज्झउ मे भगवई महइ महाविज्जा व् इ इ र् ए म ह् अ अ व् इ इ र् ए, ज य द् इ इ र् ए स् ए न व् इ इ र् ए वद्ध म् अ अ ण् अ व् इ इ र् ए ज य् अ इ त् ए अ प् अ र् अ अ ज् इ ए स् व् अ अ ह् अ अ
[वीरे महावीरे जयवीरे सेणवीरे वद्धमाणवीरे जयइ ते अपराजिए स्वाहा]
उपचारो चउत्थभत्तेणं सहिज्जइ एसा विज्जा सव्वगओ ण् इ त्थ् अ अ र ग प् अ अ र ग् अ ओ होइ उवट्ठ् अ अ व ण् अ अ गणस्स वा अ ण् उ ण् ण् आ ए एसा सत्तवारा परिजवेयव्वा [नित्थारगो पारगो होइ]
जे णं कप्पसमत्तीए Translated Sutra: इस सूत्र में ‘‘वर्धमान विद्या’’ दी है। इसलिए उसकी हिन्दी – छाया नहीं दी। जिज्ञासु लोग हमारा आगम सुत्ताणि – भाग – ३९ महानिसीह सूत्र पृष्ठ – १४२ – १४३ देखे। ‘महानिसीह’ सूत्र ४५०४ श्लोक प्रमाण अभी मिलता हैं। सूत्र – १५२७, १५२८ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Hindi | 1528 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चत्तारि सहस्साइं पंचसयाओ तहेव चत्तारि।
सिलोगा वि य महानिसीहम्मि पाएण॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५२७ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ शल्यउद्धरण |
Gujarati | 27 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे णं सल्लिय-हिययस्स एगस्सी बहू-भवंतरे।
सव्वंगोवंग-संधीओ पसल्लंती पुणो पुणो॥ Translated Sutra: એક વખત શલ્ય હૃદયીને બીજા અનેક ભવોમાં સર્વે અંગો અને ઉપાંગો વારંવાર શલ્ય વેદના – વાળા થાય છે. તે શલ્ય બે પ્રકારનું કહેલું છે – સૂક્ષ્મ, બાદર. તે બંનેના પણ ત્રણ – ત્રણ પ્રકારો છે – ઘોર, ઉગ્ર, ઉગ્રતર, ઘોર માયા ચાર ભેદે છે. જે ઘોર ઉગ્ર માનયુક્ત હોય તેમજ માયા, લોભ, ક્રોધયુક્ત પણ હોય. એમ જ ઉગ્ર અને ઉગ્રતરના પણ ચાર ભેદો સમજવા. | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ शल्यउद्धरण |
Gujarati | 28 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] से य दुविहे समक्खाए सल्ले सुहुमे य बायरे।
एक्केक्के तिविहे नेए घोरुग्गुग्गतरे तहा॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ शल्यउद्धरण |
Gujarati | 29 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] घोरं चउव्विहा माया, घोरुग्गं मान-संजुया।
माया लोभो य कोहो य घोरुग्गुग्गतरं मुने॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ शल्यउद्धरण |
Gujarati | 30 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुहुम-बायर-भेएणं सप्पभेयं पिमं मुनी।
अइरा समुद्धरे खिप्पं, ससल्ले नो वसे खणं॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 488 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (१०) तत्थ जे ते अपसत्थ-नाण-कुसीले ते एगूणतीसइविहे दट्ठव्वे, तं जहा–
सावज्ज-वाय-विज्जा-मंत-तंत-पउंजण-कुसीले १,
विज्जा-मंत-तंताहिज्जण-कुसीले २,
वत्थु-विज्जा पउंजणाहिज्जण-कुसीले ३-४,
गह-रिक्ख-चार-जोइस -सत्थ-पउंजणाहिज्जण-कुसीले ५-६,
निमित्त-लक्खण-पउंजणाहिज्जण कुसीले ७-८,
सउण-लक्खण-पउंजणाहिज्जण-कुसीले ९-१०,
हत्थि-सिक्खा-पउंजणाहिज्जण-कुसीले ११-१२,
धणुव्वेय-पउंजणाहिज्जण-कुसीले १३-१४,
गंधव्ववेय-पउंजणाहिज्जण-कुसीले १५-१६,
पुरिस-इत्थी-लक्खण-पउंजणज्झावण-कुसीले १७-१८,
काम-सत्थ-पउंजणाहिज्जण-कुसीले १९-२०,
कुहुगिंद जाल-सत्थ-पउंजणाहिज्जण-कुसीले २१-२२,
आलेक्ख-विज्जाहिज्जण-कुसीले Translated Sutra: તેમાં અપ્રશસ્ત જ્ઞાનકુશીલ ૨૯ પ્રકારે જાણવા – ૧. સાવદ્યવાદ વિષયક મંત્ર – તંત્રના પ્રયોગ કરવારૂપ કુશીલ. ૨. વિદ્યા મંત્ર – તંત્ર ભણવા – ભણાવવા તે વસ્તુવિદ્યા કુશીલ. ૩. ગ્રહણ, નક્ષત્ર – ચાર જ્યોતિષ શાસ્ત્ર જોવા, કહેવા, ભણાવવા રૂપ લક્ષણ કુશીલ. ૪. નિમિત્ત કહેવા, શરીરના લક્ષણો જોવા, તેના શાસ્ત્રો ભણાવવા રૂપ લક્ષણ કુશીલ, ૫. | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Gujarati | 1324 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दिप्पंत-कुवलय-कल्हारं कुमुय-सयवत्त-वणप्फई।
कुरुलिंते हंस-कारंडे चक्कवाए सुणेइ या॥ Translated Sutra: વળી વિકસીત, શોભાયમાન, નીલકમળ – શ્વેતકમળ આદિ તાજી વનસ્પતિ, મધુર શબ્દ બોલતા હંસો, કારંડ પક્ષીઓ, ચક્રવાકો આદિને સાંભળતો હતો. સાતમી વંશ પરંપરામાં પણ કદી ન જોયેલ એવા અદ્ભૂત તેજસ્વી ચંદ્ર મંગલને જોઈને ક્ષણવારમાં ચિંતવવા લાગ્યો કે શું આ સ્વર્ગ હશે ? તો હવે આનંદ આપનારા આ દૃશ્યને મારા બંધુને બતાવું. એમ વિચારી પાછો | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-१ | Gujarati | 226 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] निम्मूलुद्धिय-सल्लेणं सव्व-भावेण गोयमा
झाणे पविसित्तु सम्मेयं पच्चक्खं पासियव्वयं॥ Translated Sutra: ગૌતમ ! સર્વ ભાવ સહિત નિર્મૂલ શલ્યોદ્ધાર કરીને સમ્યક્ પ્રકારે આ પ્રત્યક્ષ વિચારવું કે આ જગતમાં જે સંજ્ઞી, અસંજ્ઞી, ભવ્ય કે અભવ્ય હોય, પણ સુખાર્થી કોઈપણ આત્મા તીર્છી, ઉર્ધ્વ, અહીં – તહીં એમ દશે દિશામાં અટન કરે છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૨૨૬, ૨૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-२ | Gujarati | 271 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] ता मह किलेसमुत्तिणं सुहियं से अत्ताणयं।
मन्नंतो पमुइओ हिट्ठो सत्थचित्तो वि चिट्ठई॥ Translated Sutra: અશરણ તે જીવને કલેશ ન આપી સુખી કર્યો, તેથી અતિ હર્ષ પામે. સ્વસ્થચિત્ત થઈ વિચારે કે જો એક જીવને અભયદાન આપ્યું. હવે હું નિવૃત્તિ પામ્યો. ખણવાથી ઉત્પન્ન થનાર પાપકર્મના દુઃખનો પણ મેં નાશ કર્યો. ખણવાથી અને તે જીવની વિરાધનાથી હું મેળે ન જાણી શકત કે હું રૌદ્રધ્યાનમાં જાત કે આર્તધ્યાનમાં? તે બંને ધ્યાનથી એ દુઃખનો વર્ગ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-२ | Gujarati | 272 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] चिंतइ किल निव्वुओमि अहं निद्दलियं दुक्खं पि मे।
कंडुयणादीहिं सयमेव न मुने एवं जहा मए॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૭૧ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-२ | Gujarati | 273 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] रोद्दज्झाणगएण इहं अट्टज्झाणे तहेव य।
संवग्गइत्ता उ तं दुक्खं अनंतानंतगुणं कडं॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૭૧ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-२ | Gujarati | 274 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] जं चानुसमयमनवरयं जहा राई तहा दिनं।
दुहमेवानुभवमाणस्स वीसामो नो भवेज्जमो॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૭૧ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-२ | Gujarati | 275 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] खणं पि नरय-तिरिएसु सागरोवम-संखया।
रस-रस-विलिज्जए हिययं जं वा इच्छं ताण वि॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૭૧ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-२ | Gujarati | 278 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अन्ने वि उ गुरुयरे दुक्खे सव्वेसिं संसारिणं।
सामन्ने गोयमा ता किं तस्स तेनोदए गए॥ Translated Sutra: બીજા પણ મહાઘોર દુઃખ સર્વે સંસારીને હોય છે. ગૌતમ ! કેટલાક દુઃખ અહીં વર્ણવવા ? જન્માંતરમાં માત્ર એટલું જ બોલ્યો હોય કે – હણો, મારો – તેટલા વચમાત્રનો વિપાક કહું છું. સૂત્ર સંદર્ભ– ૨૭૮, ૨૭૯ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-२ | Gujarati | 279 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] हण मर जं अन्नजम्मेसुं वाया वि उ केइ भाणिरे।
तमवीह जं फलं देज्जा पावं कम्मं पवुज्झयं॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૭૮ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Gujarati | 325 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अज्झवसाय-विसेसं तं पडुच्चा केई तारिसं।
पोग्गल-परियट्टलक्खेसुं बोहिं कह कह वि पावए॥ Translated Sutra: પરિણામ વિશેષને આશ્રીને કોઈક આત્મા લાખો પુદ્ગલ પરાવર્તનના અતિ લાંબા કાળ પછી મહામુશ્કેલીથી બોધિ પામે. આવું અતિ દુર્લભ, સર્વ દુઃખક્ષય કર બોધિરત્ન પામીને જે કોઈ પ્રમાદ કરે તે ફરી તેવી પૂર્વે જણાવેલી તે તે યોનિમાં તે જ ક્રમે, તે જ માર્ગે, તેવા દુઃખ પામે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૩૨૫–૩૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Gujarati | 387 | Sutra | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ जहा णं नो इत्थीणं निज्झाएज्जा। नो नमालवेज्जा। नो णं तीए सद्धिं परिवसेज्जा। नो णं अद्धाणं पडिवज्जेज्जा
(२) गोयमा सव्व-प्पयारेहि णं सव्वित्थीयं अच्चत्थं मउक्कडत्ताए रागेणं संधुक्किज्जमाणी
कामग्गिए संपलित्ता सहावओ चेव विसएहिं बाहिज्जइ।
(३) तओ सव्व-पयारेहिं णं सव्वत्थियं अच्चत्थं मउक्कडत्ताए रागेणं संधु-क्किज्जमाणी कामग्गीए संपलित्ता सहावओ चेव विसएहिं बाहिज्जमाणी, अनुसमयं सव्व-दिसि-विदिसासुं णं सव्वत्थ विसए पत्थेज्जा
(४) जावं णं सव्वत्थ-विसए पत्थेज्जा, ताव णं सव्व-पयारेहिं णं सव्वत्थ सव्वहा पुरिसं संकप्पिज्जा,
(५) जाव णं Translated Sutra: ભગવન્ ! આપ કેમ કહો છો કે સ્ત્રીના અંગોપાંગ તરફ નજર ન કરવી, તેની સાથે વાતો ન કરવી, વસવાટ ન કરવો, માર્ગમાં એકલા ન ચાલવું ? ગૌતમ ! સર્વ સ્ત્રી સર્વ પ્રકારે અતિ ઉત્કટ મદ અને વિષયાભિલાષના રાગથી ઉત્તેજિત બનેલી હોય છે. સ્વભાવથી તેણીનો કામાગ્નિ નિરંતર સળગતો રહે છે. વિષયો પ્રતિ તેણીનું ચંચળ ચિત્ત દોડે છે. હૃદયમાં કામાગ્નિ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 621 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं कयरे ते दंसण-कुसीले गोयमा दंसण-कुसीले दुविहे नेए–आगमओ नो आगमओ य। तत्थ आगमो सम्मद्दंसणं,
१ संकंते, २ कंखंते, ३ विदुगुंछंते, ४ दिट्ठीमोहं गच्छंते अणोववूहए, ५ परिवडिय-धम्मसद्धे सामन्नमुज्झिउ-कामाणं अथिरीकरणेणं, ७ साहम्मियाणं अवच्छल्लत्तणेणं, ८ अप्पभावनाए एतेहिं अट्ठहिं पि थाणंतरेहिं कुसीले नेए। Translated Sutra: ભગવન્ ! દર્શન કુશીલ કેટલા ભેદ હોય છે ? ગૌતમ ! બે ભેદે ૧. આગમથી, ૨. નોઆગમથી. તેમાં આગમથી સમ્યગ દર્શનમાં શંકા કરે, અન્યમતની અભિલાષા કરે, સાધુ – સાધ્વીના મેલા વસ્ત્રો અને શરીર જોઈને દુર્ગંધ કરે, ઘૃણા કરે, ધર્મકરણનું ફળ મળશે કે નહીં તેમ શંકા કરે. સમ્યક્ત્વાદિ ગુણવંતની પ્રશંસા ન કરે. ધર્મની શ્રદ્ધા ચાલી જાય, સાધુપણું | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 622 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो आगमओ य दंसण-कुसीले अनेगहा, तं जहा–१ चक्खु-कुसीले २ घाण-कुसीले, ३ सवण-कुसीले, ४ जिब्भा-कुसीले, ५ सरीर-कुसीले तत्थ चक्खुकुसीले तिविहे नेए, तं जहा–
१ पसत्थ-चक्खु-कुसीले, ...२ पसत्थापसत्थ-चक्खु-कुसीले, ...३ अपसत्थ-चक्खुकुसीले
३ तत्थ–जे केइ-पसत्थं उसभादि-तित्थयर-बिंब-पुरओ चक्खु-गोयर-ट्ठियं तमेव पासेमाणे अन्नं किं पि मनसा अपसत्थमज्झवसे, से णं पसत्थ-चक्खु-कुसीले। तहा जे पसत्थापसत्थ-चक्खु-कुसीले।
तित्थयर-बिंब हियएणं अच्छीहिं-किं पि पेहेज्जा से णं पसत्थापसत्थ चक्खु-कुसीले। तहा पसत्थापसत्थाइं दव्वाइं कागबग-ढेंक-तित्तिर-मयूराइं सुकंत-दित्तित्थियं वा दट्ठूणं तयहुत्तं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૨૧ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 627 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पिंडस्स जा विसोही ४७ समितीओ ५ भावना १२ तवो दुविहो।
पडिमा १२ अभिग्गहा वि य उत्तरगुण मो वियाणाहि॥ Translated Sutra: ઉત્તરગુણોને વિશે પીંડની જે વિશુદ્ધ સમિતિ, ભાવના, બે પ્રકારે તપ, પ્રતિમા ધારણ કરવી, અભિગ્રહો ગ્રહણ કરવા, આ બધા ઉત્તરગુણો જાણવા. તેમાં પીંડ વિશુદ્ધિ ૧૬ – ઉદ્ગમ દોષો, ૧૬ – ઉત્પાદન દોષો, ૧૦ – એષણા દોષો અને સંયોજનાદિ ૫ – દોષો. તેમાં ઉત્પાદન દોષો આ છે – આધાકર્મ, ઔદ્દેશિક, પૂતિકર્મ, મિશ્રજાત, સ્થાપના, પ્રાભૂતિકા, પ્રાદુષ્કરણ, | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 628 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ पिंडविसोहि– Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 629 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सोलस उग्गम दोसा १६ सोलस उप्पायणा य दोसा उ १६।
दस दसणाए दोसा। संजोयण-माइ पंचेव॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 630 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ उग्गम-दोसा– Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 631 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आहाकम्मुद्देसिय-पूईकम्मे य मीसजाए य।
ठवणा पाहुडियाए पाओयर-कीय-पामिच्चे॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 632 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] परियट्टिए अभिहडे उब्भिन्ने मालोहडे इ य।
अच्छेज्जे अनिसट्ठे अज्झोयरए य सोलसमे॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Gujarati | 816 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कयरे णं ते पंच सए एक्क विवज्जिए साहूणं जेहिं च णं तारिस गुणोववेयस्स महानुभागस्स गुरुणो आणं अइक्कमिउं नाराहियं गोयमा णं इमाए चेव उसभ चउवीसिगाए अतीताए तेवीसइमाए चउवीसिगाए जाव णं परिनिव्वुडे चउवीसइमे अरहा ताव णं अइक्कंतेणं केवइएणं कालेणं गुणनिप्फन्ने कम्मसेल मुसुमूरणे महायसे, महासत्ते, महानुभागे, सुगहिय नामधेज्जे, वइरे नाम गच्छाहिवई भूए।
तस्स णं पंचसयं गच्छं निग्गंथीहिं विना, निग्गंथीहिं समं दो सहस्से य अहेसि। ता गोयमा ताओ निग्गंथीओ अच्चंत परलोग भीरुयाओ सुविसुद्ध निम्मलंतकरणाओ, खंताओ, दंताओ, मुत्ताओ, जिइंदियाओ, अच्चंत भणिरीओ निय सरीरस्सा वि य छक्काय Translated Sutra: ભગવન્ ! તે ૪૯૯ સાધુઓ જેઓએ તેવા ગુણયુક્ત મહાનુભાવ ગુરુ મહારાજની આજ્ઞા ઉલ્લંઘીને આરાધક ન બન્યા તે કોણ હતા ? ગૌતમ! ઋષભદેવ પરમાત્માની પૂર્વે થયેલ ત્રેવીશ ચોવીશી અને તે ચોવીશીના ચોવીશમાં તીર્થંકર નિર્માણ પામ્યા પછી કેટલોક કાળ ગુણથી ઉત્પન્ન થયેલ કર્મરૂપી પર્વતનો ચૂરો કરનાર મહાયશા, મહાસત્વી, મહાનુભાવ, સવારમાં | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Gujarati | 827 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कयरे णं से–बहुरूवे वुच्चइ जे णं ओसन्न विहारीणं ओसन्ने, उज्जयविहारीणं उज्जयविहारी, निद्धम्म सबलाणं निद्धम्म सबले बहुरूवी रंगगए चारणे इव नडे Translated Sutra: ભગવન્ ! તે બહુરૂપો કોન કહેવાય ? જે શિથિલ આચારી હોય તેવો ઓસન્ન કે કઠણ આચાર પાળતો ઉદ્યત વિહારી બની તેવો નાટક કરે. ધર્મરહિત કે ચારિત્રમાં દૂષણ લગાડનાર હોય તેવો નાટક ભૂમિમાં વિવિધ વેશ ધારણ કરે તેના જેવો ચારણ કે નાટકીયો થાય. રામ – લક્ષ્મણ કે રાવણ થાય, વિકરાળ કાન આગળ દાંત નીકળેલો – વૃદ્ધાવસ્થા યુક્ત ગાત્રવાળો, નિસ્તેજ, | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Gujarati | 828 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खणेण, रामे खणेण, लक्खणे खणेण, दसगीव रावणे खणेण, टप्पर कन्न।
दंतुर जरा जुन्न गत्ते पंडर केस बहु पवंच भरिए विदूसगे॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Gujarati | 829 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खणेणं तिरियं च जाती वानर हणुमंत केसरी।
जहा णं एस गोयमा तहा णं से बहुरूवे॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Gujarati | 830 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं गोयमा जे णं असई कयाई केई चुक्क खलिएणं पव्वावेज्जा, से णं दूरद्धाण ववहिए करेज्जा, से णं सन्निहिए नो धरेज्जा, से णं आयरेणं नो आलवेज्जा, से णं भंडमत्तोवगरणेण आयरेणं नो पडिलाहावेज्जा, से णं तस्स गंथसत्थं नो उद्दिसेज्जा, से णं तस्स गंतसत्थं नो अणुजाणेज्जा, से णं तस्स सद्धिं गुज्झ रहस्सं वा अगुज्झ रहस्सं वा नो मंतेज्जा। एवं गोयमा जे केई एय दोस विप्पमुक्के, से णं पव्वावेज्जा।
तहा णं गोयमा मिच्छ देसुप्पन्नं अनारियं नो पव्वावेज्जा। एवं वेसासुयं नो पव्वावेज्जा। एवं गणिगं नो पव्वावेज्जा। एवं चक्खुविगलं, एवं विगप्पिय करचरणं, एवं छिन्न कन्न नासोट्ठं, एवं कुट्ठवाहीए Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Gujarati | 1025 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भयवं कस्सालोएज्जा, पच्छित्तं को वदेज्ज वा।
कस्स व पच्छित्तं देज्जा, आलोयावेज्ज वा कहं॥ Translated Sutra: ભગવન્ ! આલોચના કોની પાસે કરવી ? પ્રાયશ્ચિત્ત કોણ આપી શકે ? પ્રાયશ્ચિત્ત કોને આપી શકાય? ગૌતમ ! સો યોજન દૂર જઈને પણ કેવળી પાસે શુદ્ધ ભાવથી આલોચના કરી શકાય. કેવળજ્ઞાનીના અભાવમાં ચાર જ્ઞાની પાસે, તેના અભાવમાં અવધિજ્ઞાની પાસે, તેના અભાવમાં મતિ – શ્રુત જ્ઞાની પાસે, જેના જ્ઞાન અતિશય વધુ નિર્મળ હોય, ચડિયાતા હોય તેમની | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Gujarati | 1143 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (१३) चिंतमाणीए चेव उप्पन्नं केवलं णाणं कया य देवेहिं केवलिमहिमा।
(१४) केवलिणा वि नर सुरासुराणं पणासियं संसय तम पडलं अज्जियाणं च।
(१५) तओ भत्तिब्भरनिब्भराए पणामपुव्वं पुट्ठो केवली रज्जाए जहा भयवं किमट्ठमहं एमहंताणं महा वाहि वेयणाणं भायणं संवुत्ता
(१६) ताहे गोयमा सजल जलहर सुरदुंदुहि निग्घोस मणोहारि गंभीर सरेणं भणियं केव-लिणा जहा–सुणसु दुक्करकारिए। जं तुज्झ सरीर विहडण कारणं ति।
(१७) तए रत्त पित्त दूसिए अब्भंतरओ सरीरगे सिणिद्धाहारमाकंठाए कोलियग मीसं परिभुत्तं
(१८) अन्नं च एत्थ गच्छे एत्तिए सए साहु साहुणीणं, तहा वि जावइएणं अच्छीणि पक्खालि-ज्जंति तावइयं पि बाहिर Translated Sutra: એમ વિચારતા તે સાધ્વીજીને કેવળજ્ઞાન થયું. તે સમયે દેવોએ કેવળજ્ઞાન મહોત્સવ કર્યો. તે કેવલી સાધ્વીએ મનુષ્ય, દેવ, અસુરોના તથા સાધ્વીઓના સંશયરૂપ અંધકાર પડલને દૂર કર્યો. ત્યારપછી ભક્તિથી ભરપૂર હૃદયવાળી રજ્જા આર્યાએ પ્રણામ કરીને પૂછ્યું – હે ભગવન્ ! કયા કારણે મને આટલો મોટો મહાવેદનાવાળો વ્યાધિ ઉત્પન્ન થયો ? હે | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Gujarati | 1227 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ य गोयम मनुयत्ते नारय-दुक्खानुसरिसिए।
अनेगे रन्न-ऽरन्नेणं घोरे दुक्खेऽनुभोत्तुं णं॥ Translated Sutra: ગૌતમ! તે મનુષ્યમાં પણ નારકીના દુઃખ સમાન અનેક રડારોળ કરાવતા ઘોર દુઃખો અનુભવીને તે લક્ષ્મણાનો જીવ અતિ રૌદ્ર ધ્યાનમાં મરીને સાતમી નરક પૃથ્વીમાં ખાડાહડ નરકાવાસમાં ઉત્પન્ન થયો. ત્યાં તેવા મહાદુઃખો અનુભવીને ૩૩ – સાગરોપમ આયુ પૂર્ણ કરી વંધ્યા ગાયપણે ઉત્પન્ન થઈ. પારકા ખળા અને ખેતરમાં પરાણે પેસીને તેનું નુકસાન | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Gujarati | 1228 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सो लक्खणदेवी-जीवो सुरोद्द-ज्झाण-दोसओ।
मरिऊण सत्तमं पुढविं, उववन्नो खाडाहडे॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Gujarati | 1229 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ य तं तारिसं दुक्खं, तेत्तिसं सागरोवमए।
अणुभविऊणेह उववन्नो, वंझा गोणीत्तणेण य॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Gujarati | 1230 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खेत्त-खलयाइं चमढंती भंजंती य चरेंति या।
सा गोणी बहु-जणोहेहिं मिलिऊणागाह-पंक-वलए पवेसिया॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Gujarati | 1231 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ खुट्टि जलोयाहिं लुसिज्जंती तहेव य।
काग-मादिहिं लुप्पंती कोहाविट्ठा मरेऊणं॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Gujarati | 1232 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ताहे वि जल-घणे रन्ने मरुदेसे दिट्ठिविसो।
सप्पो होऊण पंचमगं, पुढविं पुनरवि गओ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૨૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Gujarati | 1270 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे पुन खरहर-फुट्टसिरे एग-जम्म सुहेसिणो।
तेसिं दुल्ललियाणं पि सुट्ठु वि नो हियइच्छियं॥ Translated Sutra: જેઓ વળી મસ્તક ફૂટી જાય તેવા મોટા અવાજ કરનારા આ જન્મના સુખાભિલાષી, દુર્લભ વસ્તુની ઇચ્છા કરનારા હોવા છતાં પણ મનોવાંછિત પદાર્થ સહેલાઈથી મેળવી શકતા નથી. હે ગૌતમ ! જેટલું માત્ર મધનુ બિંદુ છે, તેટલું માત્ર સુખ મરણાંત કષ્ટ સહન કરે તો પણ મેળવી શકતા નથી. તેમનું અજ્ઞાન કેટલું ગણવું ? અથવા હે ગૌતમ ! જેવા મનુષ્યો છે તે તું | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Gujarati | 1271 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गोयम महु-बिंदुस्सेव जावइयं तावइयं सुहं।
मरणंते वी न संपज्जे कयरं दुल्ललियत्तणं॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૭૦ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Gujarati | 1272 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अहवा गोयमा पच्चक्खं पेच्छ य जारिसयं नरा।
दुल्ललियं सुहमनुहवंति जं निसुणेज्जा न कोइ वि॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૭૦ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Gujarati | 1273 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] केइ करिंति मासेल्लिं, हालिय-गोवालत्तणं
दासत्तं तह पेसत्तं गोडत्तं सिप्पे बहू॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૭૦ |