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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 245 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जं किंचुवक्कमं जाणे, आउक्खेमस्स अप्पनो । तस्सेव अंतरद्धाए, खिप्पं सिक्खेज्ज पंडिए ॥

Translated Sutra: यदि अपनी आयु के क्षेम में जरा – सा भी उपक्रम जान पड़े तो उस संलेखना काल के मध्य में ही पण्डित भिक्षु शीघ्र पण्डितमरण को अपना ले।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 246 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गामे वा अदुवा रण्णे, थंडिलं पडिलेहिया । अप्पपाणं तु विण्णाय, तणाइं संथरे मुनी ॥

Translated Sutra: (संलेखन – साधक) ग्राम या वन में जाकर स्थण्डिलभूमि का प्रतिलेखन करे, उसे जीव – जन्तुरहित स्थान जानकर मुनि (वहीं) घास बिछा ले।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 247 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अणाहारो तुअट्टेज्जा, पुट्ठो तत्थहियासए । नातिवेलं उवचरे, माणुस्सेहिं वि पुट्ठओ ॥

Translated Sutra: वह वहीं निराहार हो कर लेट जाए। उस समय परीषहों और उपसर्गों से आक्रान्त होने पर सहन करे। मनुष्यकृत उपसर्गों से आक्रान्त होने पर भी मर्यादा का उल्लंघन न करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 248 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संसप्पगा य जे पाणा, जे य उड्ढमहेचरा । भुंजंति मंस-सोणियं, ण छणे ण पमज्जए ॥

Translated Sutra: जो रेंगने वाले प्राणी हैं, या जो आकाश में उड़ने वाले हैं, या जो बिलों में रहते हैं, वे कदाचित्‌ अनशनधारी मुनि के शरीर का माँस नोचे और रक्त पीए तो मुनि न तो उन्हें मारे और न ही रजोहरणादि से प्रमार्जन करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 249 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पाणा देहं विहिंसंति, ठाणाओ य विउब्भमे । ‘आसवेहिं विवित्तेहिं’ तिप्पमाणेऽहियासए ॥

Translated Sutra: (वह मुनि ऐसा चिन्तन करे) ये प्राणी मेरे शरीर का विघात कर रहे हैं, (मेरे ज्ञानादि आत्मगुणों का नहीं, वह उस स्थान से उठकर अन्यत्र न जाए।) आस्रवों से पृथक्‌ हो जाने के कारण तृप्ति अनुभव करता हुआ (उन उपसर्गों को) सहन करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 250 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गंथेहिं विवित्तेहिं, आउ-कालस्स पारए । पग्गहियतरग चेयं, दवियस्स वियाणतो ॥

Translated Sutra: उस संलेखना – साधक की ग्रन्थियाँ खुल जाती हैं, आयुष्य के काल का पारगाम हो जाता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 251 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अयं से अवरे धम्मे, नायपुत्तेण साहिए । आयवज्जं पडीयारं, विजहिज्जा तिहा तिहा ॥

Translated Sutra: ज्ञात – पुत्र ने भक्तप्रत्याख्यान से भिन्न इंगितमरण अनशन का यह आचार – धर्म बताया है। इसमें किसी भी अंगोपांग के व्यापार का, किसी दूसरे के सहारे का मन, वचन और काया से तथा कृत – कारित – अनुमोदित रूप से त्याग करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 252 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हरिएसु ण णिवज्जेज्जा, थंडिलं ‘मुनिआ सए’ विउसिज्ज अणाहारो, पुट्ठो तत्थहियासए ॥

Translated Sutra: वह हरियाली पर शयन न करे, स्थण्डिल को देखकर वहाँ सोए। वह निराहार उपधि का व्युत्सर्ग करके परीषहों तथा उपसर्गों से स्पृष्ट होने पर उन्हें सहन करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 253 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इंदिएहिं गिलायंते, समियं साहरे मुनी । तहावि से अगरिहे, अचले जे समाहिए ॥

Translated Sutra: आहारादि का परित्यागी मुनि इन्द्रियों से ग्लान होने पर समित होकर हाथ – पैर आदि सिकोड़े। जो अचल है तथा समाहित है, वह परिमित भूमि में शरीर – चेष्टा करता हुआ भी निन्दा का पात्र नहीं होता।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 254 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अभिक्कमे पडिक्कमे, संकुचए पसारए । काय-साहारणट्ठाए, एत्थ वावि अचेयणे ॥

Translated Sutra: वह शरीर – संधारणार्थ गमन और आगमन करे, सिकोड़े और पसारे। इसमें भी अचेतन की तरह रहे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 256 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ‘आसीणे णेलिसं’ मरणं, इंदियाणि समीरए । कोलावासं समासज्ज, वितहं पाउरेसए ॥

Translated Sutra: इस अद्वितीय मरण की साधना में लीन मुनि अपनी इन्द्रियों को सम्यक्‌ रूप से संचालित करे। घुन – दीमक वाले काष्ठ – स्तम्भ या पट्टे का सहारा न लेकर घुन आदि रहित व निश्छिद्र काष्ठ – स्तम्भ या पट्टे का अन्वेषण करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 257 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जओ वज्जं समुप्पज्जे, ण तत्थ अवलंबए । ततो उक्कसे अप्पाणं, सव्वे फासेहियासए ॥

Translated Sutra: जिससे वज्रवत्‌ कर्म उत्पन्न हो, ऐसी वस्तु का सहारा न ले। उससे या दुर्ध्यान से अपने आपको हटा ले और उपस्थित सभी दुःखस्पर्शों को सहन करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 259 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अयं से उत्तमे धम्मे, पुव्वट्ठाणस्स पग्गहे । अचिरं पडिलेहित्ता, विहरे चिट्ठ माहणे ॥

Translated Sutra: यह उत्तम धर्म है। यह पूर्व स्थानद्वय से प्रकृष्टतर ग्रह वाला है। साधक स्थण्डिलस्थान का सम्यक्‌ निरीक्षण करके वहाँ स्थिर होकर रहे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 260 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अचित्तं तु समासज्ज, ठावए तत्थ अप्पगं । वोसिरे सव्वसो कायं, न मे देहे परीसहा ॥

Translated Sutra: अचित्त को प्राप्त करके वहाँ अपने आपको स्थापित कर दे। शरीर का सब प्रकार से व्युत्सर्ग कर दे। परीषह उपस्थित होने पर ऐसी भावना करे – ‘‘यह शरीर ही मेरा नहीं है, तब परीषह (जनित दुःख मुझे कैसे होंगे ?)
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 262 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भेउरेसु न रज्जेज्जा, कामेसु बहुतरेसु ति । इच्छा-लोभं ण सेवेज्जा, सुहुमं वण्णं सपेहिया ॥

Translated Sutra: शब्द आदि काम विनाशशील हैं, वे प्रचुरतर मात्रा में हो तो भी भिक्षु उनमें रक्त न हो। ध्रुव वर्ण का सम्यक्‌ विचार करके भिक्षु ईच्छा का भी सेवन न करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 263 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सासएहिं णिमंतेज्जा, ‘दिव्वं मायं’ ण सद्दहे । तं पडिबुज्झ माहणे, सव्वं नूमं विधूणिया ॥

Translated Sutra: आयुपर्यन्त शाश्वत रहने वाले वैभवों या कामभोगों के लिए कोई भिक्षु को निमंत्रित करे तो वह उसे (माया – जाल) समझे। दैवी माया पर भी श्रद्धा न करे। वह साधु उस समस्त माया को भलीभाँति जानकर उसका परि – त्याग करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 264 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वट्ठेहिं अमुच्छिए, आउकालस्स पारए । तितिक्खं परमं नच्चा, विमोहण्णतरं हितं ॥

Translated Sutra: सभी प्रकार के विषयों में अनासक्त और मृत्युकाल का पारगामी वह मुनि तितिक्षा को सर्वश्रेष्ठ जानकर हितकर विमोक्ष त्रिविध विमोक्ष में से किसी एक विमोक्ष का आश्रय ले। ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 265 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहासुयं वदिस्सामि, जहा से समणे भगवं उट्ठाय । संखाए तंसि हेमंते, अहुणा पव्वइए रीयत्था ॥

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने दीक्षा लेकर जैसे विहारचर्या की, उस विषय में जैसा मैंने सूना है, वैसा मैं तुम्हें बताऊंगा। भगवान ने दीक्षा का अवसर जानकर हेमन्त ऋतु में प्रव्रजित हुए और तत्काल विहार कर गए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 266 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नो चेविमेण वत्थेण, पिहिस्सामि तंसि हेमंते । से पारए आवकहाए, एयं खु अणुधम्मियं तस्स ॥

Translated Sutra: ‘मैं हेमन्त ऋतु में वस्त्र से शरीर को नहीं ढकूँगा।’ वे इस प्रतिज्ञा का जीवनपर्यन्त पालन करने वाले और संसार या परीषहों के पारगामी बन गए थे। यह उनकी अनुधर्मिता ही थी।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 267 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चत्तारि साहिए मासे, बहवे पाण-जाइया आगम्म । अभिरुज्झ कायं विहरिंसु, आरुसियाणं तत्थ हिंसिंसु ॥

Translated Sutra: भौंरे आदि बहुत – से प्राणिगत आकर उनके शरीर पर चढ़ जाते और मँडराते रहते। वे रुष्ट होकर नाचने लगते यह क्रम चार मास से अधिक समय तक चलता रहा।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 268 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संवच्छरं साहियं मासं, जं ण रिक्कासि वत्थगं भगवं । अचेलए ततो चाई, तं वोसज्ज वत्थमणगारे ॥

Translated Sutra: भगवान ने तेरह महीनों तक वस्त्र का त्याग नहीं किया। फिर अनगार और त्यागी भगवान महावीर उस वस्त्र का परित्याग करके अचेलक हो गए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 270 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सयणेहिं वितिमिस्सेहिं, इत्थीओ तत्थ से परिण्णाय । सागारियं न सेवे, इति से सयं पवेसिया झाति ॥

Translated Sutra: गृहस्थ और अन्यतीर्थिक साधु से संकुल स्थान में ठहरे हुए भगवान को देखकर, कामाकुल स्त्रियाँ वहाँ आकर प्रार्थना करती, किन्तु कर्मबन्ध का कारण जानकर सागारिक सेवन नहीं करते थे। अपनी अन्तरात्मा में प्रवेश कर ध्यान में लीन रहते।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 271 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे के इमे अगारत्था, मीसीभावं पहाय से झाति । पुट्ठो वि नाभिभासिंसु, गच्छति नाइवत्तई अंजू ॥

Translated Sutra: कभी गृहस्थोंसे युक्त स्थानमें भी वे उनमें घुलते – मिलते नहीं थे। वे उनका संसर्ग त्याग करके धर्मध्यानमें मग्न रहते। वे किसी के पूछने पर भी नहीं बोलते थे। अन्यत्र चले जाते, किन्तु अपने ध्यान का अतिक्रमण नहीं करते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 273 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] फरुसाइं दुत्तितिक्खाइं, अतिअच्च मुनी परक्कममाणे । आघाय णट्ट गीताइं, दंडजुद्धाइं मुट्ठिजुद्धाइं ॥

Translated Sutra: अत्यन्त दुःसह्य, तीखे वचनों की परवाह न करते हुए उन्हें सहन करने का पराक्रम करते थे। वे आख्या – यिका, नृत्य, गीत, युद्ध आदि में रस नहीं लेते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 274 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गढिए मिहो-कहासु, समयंमि नायसुए विसोगे अदक्खू । एताइं सो उरालाइं, गच्छइ नायपुत्ते असरणाए ॥

Translated Sutra: परस्पर कामोत्तेजक बातों में आसक्त लोगों को ज्ञातपुत्र भगवान महावीर हर्षशोक से रहित होकर देखते थे। वे इन दुर्दमनीय को स्मरण न करते हुए विचरते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 275 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अविसाहिए दुवे वासे, सीतोदं अभोच्चा णिक्खंते । एगत्तगए पिहियच्चे, से अहिण्णायदंसणे संते ॥

Translated Sutra: (माता – पिता के स्वर्गवास के बाद) भगवान ने दो वर्ष से कुछ अधिक समय तक गृहवास में रहते हुए भी सचित्त जल का उपभोग नहीं किया। वे एकत्वभावना से ओतप्रोत रहते थे, उन्होंने क्रोध – ज्वाला को शान्त कर लिया था, वे सम्यग्ज्ञान – दर्शन को हस्तगत कर चूके थे और शान्तचित्त हो गए थे। फिर अभिनिष्क्रमण किया।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 276 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुढविं च आउकायं, तेउकायंवाउकायं च । पणगाइं बीय-हरियाइं, तसकायं च सव्वसो नच्चा ॥

Translated Sutra: पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, निगोद – शैवाल आदि, बीज और नाना प्रकार की हरी वनस्पति एवं त्रसकाय – इन्हें सब प्रकार से जानकर। ‘ये अस्तित्ववान्‌ है’ यह देखकर ‘ये चेतनावान्‌ है’ यह जानकर उनके स्वरूप को भलीभाँति अवगत करके वे उनके आरम्भ का परित्याग करके विहार करते थे। सूत्र – २७६, २७७
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 279 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भगवं च ‘एवं मन्नेसिं’, सोवहिए हु लुप्पती बाले । कम्मं च सव्वसो नच्चा, तं पडियाइक्खे पावगं भगवं ॥

Translated Sutra: भगवान ने यह भलीभाँति जान – मान लिया था कि द्रव्य – भाव – उपधि से युक्त अज्ञानी जीव अवश्य ही क्लेश का अनुभव करता है। अतः कर्मबन्धन सर्वांग रूप से जानकर कर्म के उपादानरूप पाप का प्रत्याख्यान कर दिया था
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 280 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुविहं समिच्च मेहावी, किरियमक्खायणेलिसिं नाणी । आयाण-सोयमतिवाय-सोयं, जोगं च सव्वसो नच्चा ॥

Translated Sutra: ज्ञानी और मेधावी भगवान ने दो प्रकार के कर्मों को भलीभाँति जानकर तथा आदान स्रोत, अतिपात स्रोत और योग को सब प्रकार से समझकर दूसरों से विलक्षण (निर्दोष) क्रिया का प्रतिपादन किया है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 281 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अइवातियं अणाउट्टे, सयमण्णेसिं अकरणयाए । जस्सित्थिओ परिण्णाया, सव्वकम्मावहाओ से अदक्खू ॥

Translated Sutra: भगवान ने स्वयं पाप – दोष रहित निर्दोष अनाकुट्टि का आश्रय लेकर दूसरों को हिंसा न करने की (प्रेरणा दी)। जिन्हें स्त्रियाँ परिज्ञात हैं, उन भगवान महावीर ने देख लिया था कि ’ कामभोग समस्त पापकर्मों के उपादान कारण हैं’
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 282 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहाकडं न से सेवे, सव्वसो कम्मुणा ‘य अदक्खू’ । जं किंचि पावगं भगवं, तं अकुव्वं वियडं भुंजित्था ॥

Translated Sutra: भगवान ने देखा कि आधाकर्म आदि दोषयुक्त आहार ग्रहण सब तरह से कर्मबन्ध का कारण है, इसलिए उन्होंने आधाकर्मादि दोषयुक्त आहार का सेवन नहीं किया। वे प्रासुक आहार ग्रहण करते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 283 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नो सेवती य परवत्थं, परपाए वि से ण भुंजित्था । परिवज्जियाण ओमाणं, गच्छति संखडिं असरणाए ॥

Translated Sutra: दूसरे के वस्त्र का सेवन नहीं करते थे, दूसरे के पात्र में भी भोजन नहीं करते थे। वे अपमान की परवाह न करके किसी की शरण लिए बिना पाकशाला में भिक्षा के लिए जाते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 284 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मायण्णे असण-पाणस्स, नाणुगिद्धे रसेसु अपडिण्णे । अच्छिंपि नो पमज्जिया, नो वि य कंडूयये मुनी गायं ॥

Translated Sutra: भगवान अशन – पान की मात्रा को जानते थे, वे रसों में आसक्त नहीं थे, वे (भोजन – सम्बन्धी) प्रतिज्ञा भी नहीं करते थे, मुनिन्द्र महावीर आँखमें रजकण आदि पड़ जाने पर भी उसका प्रमार्जन नहीं करते थे और न शरीर को खुजलाते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 286 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिसिरंसि अद्धपडिवन्ने, तं वोसज्ज वत्थमणगारे । पसारित्तु बाहुं परक्कमे, नो अवलंबियाण कंधंसि ॥

Translated Sutra: भगवान उस वस्त्र का भी व्युत्सर्ग कर चूके थे। अतः शिशिर ऋतु में वे दोनों बाँहें फैलाकर चलते थे, उन्हें कन्धों पर रखकर खड़े नहीं होते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 287 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एस विही अणुक्कंतो, माहणेण मईमया । ‘अपडिण्णेण वीरेण, कासवेण महेसिणा’ ॥

Translated Sutra: ज्ञानवान महामाहन महावीर ने इस विधि के अनुरूप आचरण किया। उपदेश दिया। अतः मुमुक्षुजन इसका अनुमोदन करते हैं। ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-२ शय्या Hindi 288 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चरियासणाइं सेज्जाओ, एगतियाओ जाओ बुइयाओ । आइक्ख ताइं सयणासणाइं, जाइं सेवित्था से महावीरो ॥

Translated Sutra: ‘भन्ते ! चर्या के साथ – साथ आपने कुछ आसन और वासस्थान बताए थे, अतः मुझे आप उन शयनासन को बताएं, जिनका सेवन भगवान ने किया था।’
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-२ शय्या Hindi 289 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आवेसण ‘सभा-पवासु’, पणियसालासु एगदा वासो । अदुवा पलियट्ठाणेसु, पलालपुंजेसु गदा वासो ॥

Translated Sutra: भगवान कभी सूने खण्डहरों में, कभी सभाओं, प्याऊओं, पण्य – शालाओं में निवास करते थे। अथवा कभी लुहार, सुथार, सुनार आदि के कर्मस्थानों में और पलालपुँज के मंच के नीचे उनका निवास होता था।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-२ शय्या Hindi 291 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एतेहिं मुनी सयणेहिं, समणे आसी पत्तेरस वासे । राइं दिवं पि जयमाणे, अप्पमत्ते समाहिए झाति ॥

Translated Sutra: त्रिजगत्‌वेत्ता मुनीश्वर इन वासस्थानोंमें साधना काल के बारह वर्ष, छह महीने, पन्द्रह दिनों में शान्त और सम्यक्त्वयुक्त मन से रहे। वे रात – दिन प्रत्येक प्रवृत्ति में यतनाशील रहते थे तथा अप्रमत्त और समाहित अवस्था में ध्यान करते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-२ शय्या Hindi 294 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सयणेहिं तस्सुवसग्गा, भीमा आसी अनेगरूवा य । संसप्पगाय जे पाणा, अदुवा जे पक्खिनो उवचरंति ॥

Translated Sutra: उन आवास में भगवान को अनेक प्रकार के भयंकर उपसर्ग आते थे। कभी साँप और नेवला आदि प्राणी काट खाते, कभी गिद्ध आकर माँस नोचते। कभी उन्हें चोर या पारदारिक आकर तंग करते, अथवा कभी ग्रामरक्षक उन्हें कष्ट देते, कभी कामासक्त स्त्रियाँ और कभी पुरुष उपसर्ग देते थे। सूत्र – २९४, २९५
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-२ शय्या Hindi 296 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इहलोइयाइं परलोइयाइं, भीमाइं अनेगरूवाइं । अवि सुब्भि-दुब्भि-गंधाइं, सद्दाइं अनेगरूवाइं ॥

Translated Sutra: भगवान ने इहलौकिक और पारलौकिक नाना प्रकार के भयंकर उपसर्ग सहन किये। वे अनेक प्रकार के सुगन्ध और दुर्गन्ध में तथा प्रिय और अप्रिय शब्दों में हर्ष – शोक रहित मध्यस्थ रहे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-२ शय्या Hindi 297 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहियासए सया समिए, फासाइं विरूवरूवाइं । अरइं रइं अभिभूय, रीयई माहणे अबहुवाई ॥

Translated Sutra: उन्होंने सदा समिति युक्त होकर अनेक प्रकार के स्पर्शों को सहन किया। वे अरति और रति को शांत कर देते थे। वे महामाहन महावीर बहुत ही कम बोलते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-२ शय्या Hindi 298 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] स जणेहिं तत्थ पुच्छिंसु, एगचरा वि एगदा राओ । अव्वाहिए कसाइत्था, पेहमाणे समाहिं अपडिण्णे ॥

Translated Sutra: कुछ लोग आकर पूछते – ‘तुम कौन हो ? यहाँ क्यों खड़े हो ?’ कभी अकेले घूमने वाले लोग रात में आकर पूछते – तब भगवान कुछ नहीं बोलते, इससे रुष्ट होकर दुर्व्यवहार करते, फिर भी भगवान समाधि में लीन रहते, परन्तु प्रतिशोध लेने का विचार भी नहीं उठता।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-२ शय्या Hindi 299 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अयमंतरंसि को एत्थ, अहमंसि त्ति भिक्खू आहट्टु । अयमुत्तमे से धम्मे, तुसिणीए स कसाइए झाति ॥

Translated Sutra: अन्तर में स्थित भगवान से पूछा – ‘अन्दर कौन है ?’ भगवान ने कहा – ‘मैं भिक्षु हूँ।’ यदि वे क्रोधान्ध होते तब भगवान वहाँ से चले जाते। यह उनका उत्तम धर्म है। वे मौन रहकर ध्यान में लीन रहते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-२ शय्या Hindi 300 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जं सिप्पेगे पवेयंति, सिसिरे मारुए पवायंते । तंसिप्पेगे अनगारा, हिमवाए णिवायमेसंति ॥

Translated Sutra: शिशिरऋतु में ठण्डी हवा चलने पर कईं लोग काँपने लगते, उस ऋतु में हिमपात होने पर कुछ अनगार भी निर्वातस्थान ढूँढ़ते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-२ शय्या Hindi 301 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संघाडिओ पविसिस्सामो, एहा य समादहमाणा । पिहिया वा सक्खामो, अतिदुक्खं हिमग-संफासा ॥

Translated Sutra: हिमजन्य शीत – स्पर्श अत्यन्त दुःखदायी है, यह सोचकर कोई साधु संकल्प करते थे कि चादरों में घूस जाएंगे या काष्ठ जलाकर किवाड़ों को बन्द करके इस ठंड को सह सकेंगे, ऐसा भी कुछ साधु सोचते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-२ शय्या Hindi 302 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तंसि भगवं अपडिण्णे, अहे वियडे अहियासए दविए । निक्खम्म एगदा राओ, चाएइ भगवं समियाए ॥

Translated Sutra: किन्तु उस शिशिर ऋतु में भी भगवान ऐसा संकल्प नहीं करते। कभी – कभी रात्रि में भगवान उस मंडप से बाहर चले जाते, मुहूर्त्तभर ठहर फिर मंडप में आते। उस प्रकार भगवान शीतादि परीषह समभाव से सहन करने में समर्थ थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-२ शय्या Hindi 303 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एस विही अणुक्कंतो, माहणेण मईमया । ‘अपडिण्णेण वीरेण, कासवेण महेसिणा’ ॥

Translated Sutra: मतिमान महामाहन महावीर ने इस विधि का आचरण किया जिस प्रकार अप्रतिबद्धविहारी भगवान ने बहुत बार इस विधि का पालन किया, उसी प्रकार अन्य साधु भी आत्म – विकासार्थ इस विधि का आचरण करते हैं – ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 304 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तणफासे सीयफासे य, तेउफासे य दंस-मसगे य । अहियासए सया समिए, फासाइं विरूवरूवाइं ॥

Translated Sutra: भगवान घास का कठोर स्पर्श, शीत स्पर्श, गर्मी का स्पर्श, डाँस और मच्छरों का दंश; इन नाना प्रकार के दुःखद स्पर्शों को सदा सम्यक्‌ प्रकार से सहते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 305 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह दुच्चर-लाढमचारी, वज्जभूमिं च सुब्भ भूमिं च । पंतं सेज्जं सेविंसु, आसणगाणि चेव पंताइं ॥

Translated Sutra: दुर्गम लाढ़ देश के वज्रभूमि और सुम्ह भूमि नामक प्रदेश में उन्होंने बहुत ही तुच्छ वासस्थानों और कठिन आसनों का सेवन किया था।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 306 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लोढेहिं तस्सुवसग्गा, बहवे जाणवया लूसिंसु । अह लूहदेसिए भत्ते, कुक्कुरा तत्थ हिंसिंसु णिवतिंसु ॥

Translated Sutra: लाढ़ देश के क्षेत्र में भगवान ने अनेक उपसर्ग सहे। वहाँ के बहुत से अनार्य लोग भगवान पर डण्डों आदि से प्रहार करते थे; भोजन भी प्रायः रूखा – सूखा ही मिलता था। वहाँ के शिकारी कुत्ते उन पर टूट पड़ते और काट खाते थे
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