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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 49 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तमतिमिरपडल विद्धंसणस्स सुरगणनरिंदमहियस्स ।
सीमाधरस्स वंदे पप्फोडियमोहजालस्स ॥ Translated Sutra: अज्ञान समान अंधेरे के समूह को नष्ट करनेवाले, देव और नरेन्द्र के समूह से पूजनीय और मोहनीय कर्म के सर्व बन्धन को तोड़ देनेवाले ऐसे मर्यादावंत यानि आगम युक्त श्रुतधर्म को मैं वंदन करता हूँ। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 50 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जाईजरामरण सोग पणासणस्स, कल्लाणपुक्खल विसालसुहावहस्स ।
को देवदानवनरिंदगणच्चिअस्स, धम्मस्ससारमुवलब्भकरे पमायं ॥ Translated Sutra: जन्म, बुढ़ापा, मरण और शोक समान सांसारिक दुःख को नष्ट करनेवाले, ज्यादा कल्याण और विशाल सुख देनेवाले, देव – दानव और राजा के समूह से पूजनीय श्रुतधर्म का सार जानने के बाद कौन धर्म आराधना में प्रमाद कर सकता है ? | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ सामायिक |
Hindi | 1 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] Translated Sutra: अरिहंत को नमस्कार हो, सिद्ध को नमस्कार हो, आचार्य को नमस्कार हो, उपाध्याय को नमस्कार हो, लोक में रहे सर्व साधु को नमस्कार हो, इस पाँच (परमेष्ठि) को किया गया नमस्कार सर्व पाप का नाशक है। सर्व मंगल में प्रथम (उत्कृष्ट) मंगल है। अरिहंत शब्द के लिए तीन पाठ हैं। अरहंत, अरिहंत और अरूहंत। यहाँ अरहंत शब्द का अर्थ है – जो | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ वंदन |
Hindi | 10 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए,
अणुजाणह मे मिउग्गहं निसीहि
अहोकायं काय-संफासं
खमणिज्जो मे किलामो, अप्पकिलंताणं बहुसुभेण भे दिवसो वइक्कंतो
जत्ता भे जवणिज्जं च भे,
खामेमि खमासमणो देवसियं वइक्कमं आवस्सियाए पडिक्कमामि खमासमणाणं देवसियाए आसायणाए तित्तीसन्नयराए
जं किंचि मिच्छाए मणदुक्कडाए वयदुक्कडाए कायदुक्कडाए कोहाए माणाए मायाए लोभाए सव्वकालियाए सव्वमिच्छोवयाराए सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे अइयारो कओ
तस्स खमासमणो पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: (शिष्य कहता है) हे क्षमा (आदि दशविध धर्मयुक्त) श्रमण, (हे गुरुदेव !) आपको मैं इन्द्रिय और मन की विषय विकार के उपघात रहित निर्विकारी और निष्पाप प्राणातिपात आदि पापकारी प्रवृत्ति रहित काया से वंदन करना चाहता हूँ। मुझे आपकी मर्यादित भूमि में (यानि साड़े तीन हाथ अवग्रह रूप – मर्यादा के भीतर) नजदीक आने की (प्रवेश करने | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 15 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे देवसिओ अइयारो कओ
काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो उम्मग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुज्झाओ दुव्विचिंतिओ अणायारो अणिच्छियव्वो असमणपाउग्गो
नाणे दंसणे चरित्ते सुए सामाइए तिण्हं गुत्तीणं चउण्हं कसायाणं पंचण्हं महव्वयाणं छण्हं जीवनिकायाणं सत्तण्हं पिंडेसणाणं अट्ठण्हं पवयणमाऊणं नवण्हं बंभचेरगुत्तीणं दसविहे समणधम्मे समणाणं जोगाणं
जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: मैं दिवस सम्बन्धी अतिचार का प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ, यह अतिचार सेवन काया से – मन से – वचन से (किया गया हो), उत्सूत्र भाषण – उन्मार्ग सेवन से (किया हो), अकल्प्य या अकरणीय (प्रवृत्ति से किया हो) दुर्ध्यान या दुष्ट चिन्तवन से (किया हो) अनाचार सेवन से, अनीच्छनीय श्रमण को अनुचित (प्रवृत्ति से किया हो।) ज्ञान, दर्शन, चारित्र, | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 17 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि पडिक्कमिउं पगामसिज्जाए निगामसिज्जाए संथारा उव्वट्टणाए परियट्टणाए आउंटण-पसारणाए छप्पइयसंघट्टणाए कूइए कक्कराइए छीए जंभाइए आमोसे ससरक्खामोसे आउल-माउलाए सोअणवत्तियाए इत्थीविप्परिआसियाए दिट्ठिविप्परिआसिआए मणविप्परिआ-सिआए पाणभोयणविप्परिआसिआए
जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: मैं प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ। (लेकिन किसका ?) दिन के प्रकामशय्या गहरी नींद लेने से (यहाँ प्रकाम यानि गहरा या संथारा उत्तरपट्टा से या तीन कपड़े से ज्यादा उपकरण का इस्तमाल करने से, शय्या यानि निद्रा या संथारीया आदि) हररोज ऐसी नींद लेने से, संथारा में बगल बदलने से और पुनः वही बगल बदलने से, शरीर के अवयव सिकुड़ने से | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 18 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि गोचरचरिआए भिक्खायरिआए उग्घाडकवाडउग्घाडणाए साणा-वच्छा-दारसंघट्टणाए मंडी-पाहुडियाए बलि-पाहुडियाए ठवणा-पाहुडियाए संकिए सहसागारे
अणेसणाए [पाणेसणाए] पाणभोयणाए बीयभोयणाए हरियभोयणाए पच्छाकम्मियाए पुरेकम्मियाए अदिट्ठहडाए दगसंसट्ठहडाए रयसंसट्ठहडाए परिसाडणियाए पारिट्ठावणियाए ओहासणभिक्खाए जं उग्गमेणं उप्पायणेसणाए
अपरिसुद्धं परिग्गहियं परिभुत्तं वा जं न परिट्ठवियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। (किसका ?) भिक्षा के लिए गोचरी घूमने में, लगे हुए अतिचार का (किस तरह से?) सांकल लगाए हुए या सामान्य से बन्ध किए दरवाजे – जाली आदि खोलने से कूत्ते – बछड़े या छोटे बच्चे का (केवल तिर्यंच का) संघट्टा – स्पर्श करने से, किसी बरतन आदि में अलग नीकालकर दिया गया आहार लेने से, अन्य धर्मी मूल भाजन में से | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 19 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि चाउक्कालं सज्झायस्स अकरणयाए उभओकालं भंडोवगरणस्स
अप्पडिलेहणाए दुप्पडिलेहणाए अप्पमज्जणाए दुप्पमज्जणाए
अइक्कमे वइक्कमे अइयारे अणायारे
जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। (लेकिन किसका ?) दिन और रात के पहले और अन्तिम दो प्रहर ऐसे चार काल स्वाध्याय न करने के समान अतिचार का, दिन की पहली – अन्तिम पोरिसी रूप उभयकाल से पात्र – उपकरण आदि की प्रतिलेखना (दृष्टि के द्वारा देखना) न की या अविधि से की, सर्वथा प्रमार्जना न की या अविधि से प्रमार्जना की और फिर अतिक्रम – व्यतिक्रम, | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 25 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चउद्दसहिं भूयगामेहिं, पन्नरसहिं परमाहम्मिएहिं, सोलसहिं गाहासोलसएहिं, सत्तरसविहे असंजमे, अट्ठारसविहे अबंभे, एगूणवीसाए नायज्झयणेहिं, वीसाए असमाहिट्ठाणेहिं। Translated Sutra: इहलोक – परलोक आदि सात भय स्थान के कारण से, जातिमद – कुलमद आदि आँठ मद का सेवन करने से, वसति – शुद्धि आदि ब्रह्मचर्य की नौ वाड़ का पालन न करने से, क्षमा आदि दशविध धर्म का पालन न करने से, श्रावक की ग्यारह प्रतिमा में अश्रद्धा करने से, बारह तरह की भिक्षु प्रतिमा धारण न करने से या उसके विषय में अश्रद्धा करने से, अर्थाय – | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 26 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगवीसाए-सबलेहिं, बावीसाए-परीसहेहिं, तेवीसाए-सुयगडज्झयणेहिं, चउवीसाए-देवेहिं, पंचवीसाए-भावणाहिं, छव्वीसाए-दसाकप्पववहाराणं उद्देसणकालेहिं, सत्तावीसाए-अणगारगुणेहिं अट्ठावीसइविहे-आयारपकप्पेहिं, एगुणतीसाए-पावसुयपसंगेहिं तीसाए-मोहणीयट्ठाणेहिं एगतीसाए -सिद्धाइगुणेहिं, बत्तीसाए-जोगसंगहेहिं। Translated Sutra: देखो सूत्र २५ | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 27 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेत्तीसाए आसायणाहिं। Translated Sutra: तैंतीस प्रकार की आशातना जो यहाँ सूत्र में ही बताई गई है उसके द्वारा लगे अतिचार, अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, साध्वी का अवर्णवाद से अबहुमान करने से, श्रावक – श्राविका की निंदा आदि से, देव – देवी के लिए कुछ भी बोलने से, आलोक – परलोक के लिए असत् प्ररूपणा से, केवली प्रणित श्रुत या चारित्र धर्म की आशातना के द्वारा, | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 28 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अरिहंताणं आसायणाए सिद्धाणं आसायणाए आयरियाणं आसायणाए उवज्झायाणं आसायणाए
साहूणं आसायणाए साहुणीणं आसायणाए सावयाणं आसायणाए सावियाणं आसायणाए
देवाणं आसायणाए देवीणं आसायणाए
इहलोगस्स आसायणाए परलोगस्स आसायणाए
केवलिपन्नत्तस्सधम्मस्स आसायणाए
सदेवमणुयासुरस्सलोगस्स आसायणाए
सव्वपाणभूयजीव-सत्ताणं आसायणाए
कालस्स आसायणाए
सुयस्स आसायणाए सुयदेवयाए आसायणाए
वायणायरियस्स आसायणाए। Translated Sutra: देखो सूत्र २७ | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 30 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नमो चउव्वीसाए तित्थगराणं उसभादिमहावीरपज्जवसाणाणं। Translated Sutra: ऋषभदेव से महावीर स्वामी तक चौबीस तीर्थंकर परमात्मा को मेरा नमस्कार। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Hindi | 33 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जं संभरामि जं च न संभरामि, जं पडिक्कमामि जं च न पडिक्कमामि,
तस्स सव्वस्स देवसियस्स अइयारस्स पडिक्कमामि
समणोहं संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय-पावकम्मो अनियाणो दिट्ठिसंपन्नो मायामोस-विवज्जओ। Translated Sutra: (सभी दोष की शुद्धि के लिए कहा है) जो कुछ थोड़ा सा भी मेरी स्मृतिमें है, छद्मस्थपन से स्मृतिमें नहीं है, ज्ञात वस्तु का प्रतिक्रमण किया और सूक्ष्म का प्रतिक्रमण न किया उस अनुसार जो अतिचार लगा हो वो सभी दिन सम्बन्धी अतिचार का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। इस प्रकार अशुभ प्रवृत्ति का त्याग करके मैं तप – संयम रत साधु हूँ। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 38 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि ठाइउं काउस्सग्गं
जो मे देवसिओ अइयारो कओ
काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो उप्पग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुज्झाओ दुव्विचिंतिओ अणायारो अणिच्छियव्वो असमणपाउग्गो
नाणे दंसणे चरित्ते सुए सामाइए तिण्हं गुत्तीणं चउण्हं कसायाणं पंचण्हं महव्वयाणं छण्हं जीवनिकायाणं सत्तण्हं पिंडसेणाणं अट्ठण्हं पवयणमाऊणं नवण्हं बंभचेरगुत्तीणं दसविहेसमणधम्मे समणाणं जोगाणं
जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: मैं कायोत्सर्ग में स्थिर होना चाहता हूँ। मैंने दिन के सम्बन्धी किसी भी अतिचार का सेवन किया हो। (यह अतिचार सेवन किस तरह से ? देखो सूत्र – १५) | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 51 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सिद्ध भो पयओ नमो जिणमए नंदी सया संजमे ।
देवं नाग सुवण्णकिन्नरगण स्सब्भूअ भावच्चिए ॥
लोगो जत्थ पइट्ठिओ जगमिणं तेलुक्कमच्चासुरं ।
धम्मो वड्ढउ सासओ विजयओ धम्मुत्तरं वड्ढउ ॥ Translated Sutra: हे मानव ! सिद्ध ऐसे जिनमत को मैं पुनः नमस्कार करता हूँ कि जो देव – नागकुमार – सुवर्णकुमार – किन्नर के समूह से सच्चे भाव से पूजनीय हैं। जिसमें तीन लोक के मानव सुर और असुरादिक स्वरूप के सहारे के समान संसार का वर्णन किया गया है ऐसे संयम पोषक और ज्ञान समृद्ध दर्शन के द्वारा प्रवृत्त होनेवाला शाश्वत धर्म की वृद्धि | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 54 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो देवाण वि देवो जं देवा पंजली नमंसंति ।
तं देवदेवमहियं सिरसा वंदे महावीरं ॥ Translated Sutra: जो देवों के भी देव हैं, जिनको देव अंजलिपूर्वक नमस्कार करते हैं। और जो इन्द्र से भी पूजे गए हैं ऐसे श्री महावीर प्रभु को मैं सिर झुकाकर वंदन करता हूँ। | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Hindi | 60 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो
पुव्विं चेइयाइं वंदित्ता नमंसित्ता
तुब्भण्हं पायमूलं विहरमाणेणं
जे केई बहु देवसिया साहुणो दिट्ठा समाणा वा वसमाणा वा गामाणुगामं दूइज्जमाणा वा राइणिया संपुच्छंति ओमराइणिया वंदंति अज्जया वंदंति अज्जियाओ वंदंति सावया वंदंति सावियाओ वंदंति
अहंपि निसल्लो निक्कसाओत्ति-कट्टु
सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि
–अहमवि वंदावेमि चेइयाइं। Translated Sutra: हे क्षमाश्रमण (पूज्य) ! मैं (आपको चैत्यवंदना एवं साधुवंदना) करवाने की ईच्छा रखता हूँ। विहार करने से पहले आपके साथ था तब मैं यह चैत्यवंदना – साधु वंदना श्रीसंघ के बदले में करता हूँ ऐसे अध्यवसाय के साथ श्री जिन प्रतिमा को वंदन नमस्कार करके और अन्यत्र विचरण करते हुए, दूसरे क्षेत्र में जो कोई काफी दिन के पर्यायवाले | |||||||||
Aavashyakasutra | आवश्यक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Hindi | 63 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ समणोवासओ पुव्वामेव मिच्छत्ताओ पडिक्कमइ सम्मत्तं उवसंपज्जइ
नो से कप्पइ अज्जप्पभिई अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थिअदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिग्गहियाणि वा अरिहंतचेइयाणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा
पुव्वि अणालत्तएणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा
तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अनुप्पयाउं वा
नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तीकंतारेणं
से य सम्मत्ते पसत्थ-समत्त-मोहणिय-कम्माणुवेयणोवसमखयसमुत्थे पसमसंवेगाइलिंगे
सुहे आयपरिणामे पन्नत्ते सम्मत्तस्स समणोवासएणं
इमे पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं Translated Sutra: वहाँ (श्रमणोपासकों) – श्रावक पूर्वे यानि श्रावक बनने से पहले मिथ्यात्व छोड़ दे और सम्यक्त्व अंगीकार करे। उनको न कल्पे। (क्या न कल्पे वो बताते हैं) आजपर्यन्त अन्यतीर्थिक के देव, अन्य तीर्थिक की ग्रहण की हुई अरिहंत प्रतिमा को वंदन नमस्कार करना न कल्पे। पहले भले ही ग्रहण न की हो लेकिन अब वो (प्रतिमा) अन्यतीर्थिक | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ वंदन |
Gujarati | 10 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए,
अणुजाणह मे मिउग्गहं निसीहि
अहोकायं काय-संफासं
खमणिज्जो मे किलामो, अप्पकिलंताणं बहुसुभेण भे दिवसो वइक्कंतो
जत्ता भे जवणिज्जं च भे,
खामेमि खमासमणो देवसियं वइक्कमं आवस्सियाए पडिक्कमामि खमासमणाणं देवसियाए आसायणाए तित्तीसन्नयराए
जं किंचि मिच्छाए मणदुक्कडाए वयदुक्कडाए कायदुक्कडाए कोहाए माणाए मायाए लोभाए सव्वकालियाए सव्वमिच्छोवयाराए सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे अइयारो कओ
तस्स खमासमणो पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। Translated Sutra: શિષ્ય કહે છે – હે ક્ષમા (આદિ દશવિધ ધર્મથી યુક્ત) શ્રમણ ! આપને હું ઇન્દ્રિયો તથા મનની વિષયવિકારના ઉપઘાત રહિત, નિર્વિકારી અને નિષ્પાપ કાયા વડે વંદન કરવાને ઇચ્છું છું. મને આપની મર્યાદિત ભૂમિમાં પ્રવેશવાની અનુજ્ઞા આપો. નિસીહી (એમ કહી શિષ્ય અવગ્રહમાં પ્રવેશે.) અધોકાય એટલે આપના ચરણને હું મારી કાયા વડે સ્પર્શુ છું. | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Gujarati | 15 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे देवसिओ अइयारो कओ
काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो उम्मग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुज्झाओ दुव्विचिंतिओ अणायारो अणिच्छियव्वो असमणपाउग्गो
नाणे दंसणे चरित्ते सुए सामाइए तिण्हं गुत्तीणं चउण्हं कसायाणं पंचण्हं महव्वयाणं छण्हं जीवनिकायाणं सत्तण्हं पिंडेसणाणं अट्ठण्हं पवयणमाऊणं नवण्हं बंभचेरगुत्तीणं दसविहे समणधम्मे समणाणं जोगाणं
जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: હું દિવસ સંબંધી અતિચારોનું પ્રતિક્રમણ કરવાને ઇચ્છું છું. (આ અતિચાર સેવન) – કાયાથી, વચનથી, મનથી કરેલ હોય. ઉત્સૂત્રભાષણ કે ઉન્માર્ગ સેવનથી (હોય). અકલ્પ્ય કે અકરણીયથી (થયેલ હોય). દુર્ધ્યાન કે દુષ્ટ ચિંતવનથી (થયેલ હોય). અનાચારથી, અનિચ્છનીયથી, અશ્રમણપ્રાયોગ્યથી હોય. જ્ઞાન, દર્શન કે ચારિત્ર – શ્રુત અને સામાયિકમાં હોય. ત્રણ | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Gujarati | 17 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि पडिक्कमिउं पगामसिज्जाए निगामसिज्जाए संथारा उव्वट्टणाए परियट्टणाए आउंटण-पसारणाए छप्पइयसंघट्टणाए कूइए कक्कराइए छीए जंभाइए आमोसे ससरक्खामोसे आउल-माउलाए सोअणवत्तियाए इत्थीविप्परिआसियाए दिट्ठिविप्परिआसिआए मणविप्परिआ-सिआए पाणभोयणविप्परिआसिआए
जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: હું પ્રતિક્રમણ કરવાને ઇચ્છું છું. (શેનું?) પ્રકામ શય્યાથી, નિકામ શય્યાથી, સંથારામાં પડખા ફેરવવાથી, પુનઃ તે જ પડખે ફરવાથી, આકુંચન – પ્રસારણ કરવાથી, જૂ વગેરે જીવોના સંઘટ્ટનથી, ખાંસતા – કચકચ કરતા – છીંક કે બગાસું ખાતા (મુહપત્તિ ન રાખવાથી), આમર્ષથી, સરજસ્ક વસ્તુને સ્પર્શવાથી, આકુળ – વ્યાકુળતાથી, સ્વપ્ન નિમિત્તે, | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Gujarati | 19 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि चाउक्कालं सज्झायस्स अकरणयाए उभओकालं भंडोवगरणस्स
अप्पडिलेहणाए दुप्पडिलेहणाए अप्पमज्जणाए दुप्पमज्जणाए
अइक्कमे वइक्कमे अइयारे अणायारे
जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: હું પ્રતિક્રમણ કરું છું. (શેનું?) ચાર કાળ સ્વાધ્યાય ન કરવા. રૂપ અતિચારોનું, ઉભયકાળ ભાંડ અને ઉપકરણની પડિલેહણા ન કરી કે દુષ્ટ પડિલેહણા કરી, પ્રમાર્જના ન કરી કે દુષ્પ્રમાર્જના કરી, અતિક્રમ – વ્યતિક્રમ – અતિચાર કે અનાચારના સેવનરૂપ મેં જે કોઈ દૈવસિક અતિચાર કર્યો હોય, તેનું મિચ્છામિ દુક્કડમ્ – મારું દુષ્કૃત મિથ્યા | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Gujarati | 26 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगवीसाए-सबलेहिं, बावीसाए-परीसहेहिं, तेवीसाए-सुयगडज्झयणेहिं, चउवीसाए-देवेहिं, पंचवीसाए-भावणाहिं, छव्वीसाए-दसाकप्पववहाराणं उद्देसणकालेहिं, सत्तावीसाए-अणगारगुणेहिं अट्ठावीसइविहे-आयारपकप्पेहिं, एगुणतीसाए-पावसुयपसंगेहिं तीसाए-मोहणीयट्ठाणेहिं एगतीसाए -सिद्धाइगुणेहिं, बत्तीसाए-जोगसंगहेहिं। Translated Sutra: એકવીસ શબલદોષ, બાવીશ પરીષહો, તેવીશ સૂત્રકૃત્ આગમના કુલ અધ્યયનો, ચોવીશ દેવો, પચીશ ભાવના, છવીશ – દશાશ્રુતસ્કંધ બૃહત્ કલ્પ અને વ્યવહાર એ ત્રણેના મળીને ઉદ્દેશનકાળ, સત્તાવીશ પ્રકારે અણગારનું ચારિત્ર, અટ્ઠાવીશ ભેદે આચાર પ્રકલ્પ, ઓગણત્રીશ ભેદે પાપશ્રુતના પ્રસંગો વડે, ત્રીશ મોહનીય સ્થાનો વડે, એકત્રીશ સિદ્ધોના | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Gujarati | 28 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अरिहंताणं आसायणाए सिद्धाणं आसायणाए आयरियाणं आसायणाए उवज्झायाणं आसायणाए
साहूणं आसायणाए साहुणीणं आसायणाए सावयाणं आसायणाए सावियाणं आसायणाए
देवाणं आसायणाए देवीणं आसायणाए
इहलोगस्स आसायणाए परलोगस्स आसायणाए
केवलिपन्नत्तस्सधम्मस्स आसायणाए
सदेवमणुयासुरस्सलोगस्स आसायणाए
सव्वपाणभूयजीव-सत्ताणं आसायणाए
कालस्स आसायणाए
सुयस्स आसायणाए सुयदेवयाए आसायणाए
वायणायरियस्स आसायणाए। Translated Sutra: (૧) અરિહંતોની આશાતના, (૨) સિદ્ધોની આશાતના, (૩) આચાર્યની આશાતના, (૪) ઉપાધ્યાયની આશાતના, (૫) સાધુની આશાતના, (૬) સાધ્વીની આશાતના, (૭) શ્રાવકની આશાતના, (૮) શ્રાવિકાની આશાતના, (૯) દેવોની આશાતના, (૧૦) દેવીની આશાતના, (૧૧) આલોક સંબંધી આશાતના, (૧૨) પરલોક સંબંધી આશાતના, (૧૩) કેવલિ પ્રજ્ઞપ્ત ધર્મની આશાતના, (૧૪) દેવ – મનુષ્ય – અસુર લોક સંબંધી | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ प्रतिक्रमण |
Gujarati | 33 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जं संभरामि जं च न संभरामि, जं पडिक्कमामि जं च न पडिक्कमामि,
तस्स सव्वस्स देवसियस्स अइयारस्स पडिक्कमामि
समणोहं संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय-पावकम्मो अनियाणो दिट्ठिसंपन्नो मायामोस-विवज्जओ। Translated Sutra: જે કંઈ મને સ્મરણમાં છે, જે કંઈ સ્મરણમાં નથી. જેનું મેં પ્રતિક્રમણ કર્યુ અને જે (અજાણ)નું પ્રતિક્રમણ ન કર્યું. તે (સર્વે)ના દિવસ સંબંધી અતિચારોને હું પ્રતિક્રમું છું. હું શ્રમણ છું, સંયત – વિરત – પ્રતિહત અને પ્રત્યાખ્યાત પાપકર્મ વાળો છું, નિયાણા રહિત છું, દૃષ્ટિ સંપન્ન અને માયામૃષા રહિત છું. | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Gujarati | 38 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि ठाइउं काउस्सग्गं
जो मे देवसिओ अइयारो कओ
काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो उप्पग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुज्झाओ दुव्विचिंतिओ अणायारो अणिच्छियव्वो असमणपाउग्गो
नाणे दंसणे चरित्ते सुए सामाइए तिण्हं गुत्तीणं चउण्हं कसायाणं पंचण्हं महव्वयाणं छण्हं जीवनिकायाणं सत्तण्हं पिंडसेणाणं अट्ठण्हं पवयणमाऊणं नवण्हं बंभचेरगुत्तीणं दसविहेसमणधम्मे समणाणं जोगाणं
जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। Translated Sutra: હું કાયોત્સર્ગમાં સ્થિર રહેવાને ઇચ્છું છું. મેં જે કોઈ દૈવસિક અતિચાર સેવેલ હોય૦ (સૂત્ર – ૧૫ મુજબ આખું સૂત્ર કહેવું.) | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Gujarati | 48 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुक्खरवरदीवड्ढे धायइसंडे य जंबुद्दीवे य ।
भरहेरवय विदेहे धम्माइगरे नमंसामि ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૮. અર્દ્ધ પુષ્કરવરદ્વીપ, ધાતકીખંડ અને જંબૂદ્વીપ (એ અઢીદ્વીપ)માં આવેલ ભરત, ઐરવત અને વિદેહ ક્ષેત્રમાં રહેલા શ્રુત ધર્મના આદિ કરોને હું નમસ્કાર કરું છું. સૂત્ર– ૪૯. અજ્ઞાનરૂપી અંધકારના સમૂહનો નાશ કરનાર, દેવ અને નરેન્દ્રોના સમૂહથી પૂજાયેલ, મોહની જાળને તોડી નાંખનારા, મર્યાદાધરને વંદુ છું. સૂત્ર– ૫૦. જન્મ | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Gujarati | 50 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जाईजरामरण सोग पणासणस्स, कल्लाणपुक्खल विसालसुहावहस्स ।
को देवदानवनरिंदगणच्चिअस्स, धम्मस्ससारमुवलब्भकरे पमायं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૮ | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Gujarati | 51 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सिद्ध भो पयओ नमो जिणमए नंदी सया संजमे ।
देवं नाग सुवण्णकिन्नरगण स्सब्भूअ भावच्चिए ॥
लोगो जत्थ पइट्ठिओ जगमिणं तेलुक्कमच्चासुरं ।
धम्मो वड्ढउ सासओ विजयओ धम्मुत्तरं वड्ढउ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૮ | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Gujarati | 53 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धाणं बुद्धाणं पारगयाणं परंपरगयाणं ।
लोअग्गमुवगयाणं नमो सया सव्वसिद्धाणं ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૩. સિદ્ધ થયેલા, બોધ પામેલા, સંસારને પાર પામેલા, પરંપર સિદ્ધ થયેલા, લોકના અગ્રભાગને પામેલા એવા સર્વે સિદ્ધ ભગવંતોને સદા નમસ્કાર. સૂત્ર– ૫૪. જે દેવોના પણ દેવ છે, જેને દેવો અંજલીપૂર્વક નમસ્કાર કરે છે, તે ઇન્દ્રો વડે પૂજાયેલા મહાવીર ભગવંતને હું મસ્તકથી વંદુ છું. સૂત્ર– ૫૫. જિનવરોમાં વૃષભ સમાન – શ્રેષ્ઠ એવા | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Gujarati | 54 | Gatha | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो देवाण वि देवो जं देवा पंजली नमंसंति ।
तं देवदेवमहियं सिरसा वंदे महावीरं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૩ | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ कायोत्सर्ग |
Gujarati | 60 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो
पुव्विं चेइयाइं वंदित्ता नमंसित्ता
तुब्भण्हं पायमूलं विहरमाणेणं
जे केई बहु देवसिया साहुणो दिट्ठा समाणा वा वसमाणा वा गामाणुगामं दूइज्जमाणा वा राइणिया संपुच्छंति ओमराइणिया वंदंति अज्जया वंदंति अज्जियाओ वंदंति सावया वंदंति सावियाओ वंदंति
अहंपि निसल्लो निक्कसाओत्ति-कट्टु
सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि
–अहमवि वंदावेमि चेइयाइं। Translated Sutra: હે ક્ષમાશ્રમણ ! હું ઇચ્છું છું. (આપને ચૈત્ય અને સાધુવંદના કરાવવા) પૂર્વે આપની સાથે હતો ત્યારે હું આ ચૈત્યવંદના, સાધુવંદના શ્રીસંઘ વતી કરું છું એવા અધ્યવસાય સાથે શ્રી જિનપ્રતિમાને વંદન – નમસ્કાર કરીને અને અન્યત્ર વિચરતા, બીજા ક્ષેત્રોમાં જે કોઈ ઘણા દિવસના પર્યાયવાળા, સ્થિરવાસ કરનારા કે નવકલ્પી વિહારવાળા | |||||||||
Aavashyakasutra | આવશ્યક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ पच्चक्खाण |
Gujarati | 63 | Sutra | Mool-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ समणोवासओ पुव्वामेव मिच्छत्ताओ पडिक्कमइ सम्मत्तं उवसंपज्जइ
नो से कप्पइ अज्जप्पभिई अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थिअदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिग्गहियाणि वा अरिहंतचेइयाणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा
पुव्वि अणालत्तएणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा
तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अनुप्पयाउं वा
नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तीकंतारेणं
से य सम्मत्ते पसत्थ-समत्त-मोहणिय-कम्माणुवेयणोवसमखयसमुत्थे पसमसंवेगाइलिंगे
सुहे आयपरिणामे पन्नत्ते सम्मत्तस्स समणोवासएणं
इमे पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं Translated Sutra: તેમાં – શ્રમણોપાસકો પૂર્વે જ અર્થાત શ્રાવક બનતા પહેલા જ મિથ્યાત્વને પ્રતિક્રમે (છોડે)છે અને સમ્યક્ત્વને અંગીકાર કરે. તેઓને કલ્પે નહીં – (શું ન કલ્પે ?) આજથી અન્યતીર્થિક કે અન્યતીર્થિકના દેવો કે અન્યતીર્થિકે પરિગૃહિત અરહંત પ્રતિમાને વંદન કરવા કે નમસ્કાર કરવો. (ન કલ્પે.) પૂર્વે ભલે ગ્રહણ ન કરી હોય, પણ હાલ અન્યતીર્થિક | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-२ अद्रढता | Hindi | 76 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] विणइत्तु लोभं निक्खम्म, एस अकम्मे जाणति-पासति।
पडिलेहाए नावकंखति।
एस अनगारेत्ति पवुच्चति।
अहो य राओ य परितप्पमाणे, कालाकालसमुट्ठाई, संजोगट्ठी अट्ठालोभी, आलुंपे सहसक्कारे, विनिविट्ठचित्ते एत्थ सत्थे पुणो-पुणो
से आय-बले, से नाइ-बले, से मित्त-बले, से पेच्च-बले, से देव-बले, से राय-बले, से चोर-बले, से अतिहि-बले, से किवण-बले, से समण-बले।
इच्चेतेहिं विरूवरूवेहिं कज्जेहिं दंड-समायाणं।
सपेहाए भया कज्जति।
पाव-मोक्खोत्ति मन्नमाणे।
अदुवा आसंसाए। Translated Sutra: जो लोभ से निवृत्त होकर प्रव्रज्या लेता है, वह अकर्म होकर (कर्मावरण से मुक्त होकर) सब कुछ जानता है, देखता है। जो प्रतिलेखना कर, विषय – कषायों आदि के परिणाम का विचार कर उनकी आकांक्षा नहीं करता, वह अनगार कहलाता है। (जो विषयों से निवृत्त नहीं होता) वह रात – दिन परितप्त रहता है। काल या अकाल में सतत प्रयत्न करता रहता | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-६ अममत्त्व | Hindi | 99 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सिया से एगयरं विप्परामुसइ, छसु अन्नयरंसि कप्पति।
सुहट्ठी लालप्पमाणे सएण दुक्खेण मूढे विप्परियासमुवेति।
सएण विप्पमाएण, पुढो वयं पकुव्वति।
जंसिमे पाणा पव्वहिया। पडिलेहाए णोणिकरणाए।
एस परिण्णा पवुच्चइ।
कम्मोवसंती। Translated Sutra: कदाचित् किसी एक जीवकाय का समारंभ करता है, तो वह छहों जीव – कायों में (सभी का) समारंभ कर सकता है। वह सुख का अभिलाषी, बार – बार सुख की ईच्छा करता है, (किन्तु) स्व – कृत कर्मों के कारण, मूढ़ बन जाता है और विषयादि सुख के बदले दुःख को प्राप्त करता है। वह अपने अति प्रमाद के कारण ही अनेक योनियों में भ्रमण करता है, जहाँ पर कि | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-६ अममत्त्व | Hindi | 106 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अवि य हणे अनादियमाणे। एत्थंपि जाण, सेयंति नत्थि।
के यं पुरिसे? कं च नए?
एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए।
उड्ढं अहं तिरियं दिसासु, से सव्वतो सव्वपरिण्णचारी।
न लिप्पई छणपएण वीरे।
से मेहावी अणुग्घायणस्स खेयण्णे, जे य बंधप्पमोक्खमन्नेसि।
कुसले पुण नोबद्धे, नोमुक्के। Translated Sutra: कभी अनादर होने पर वह (श्रोता) उसको (धर्मकथी को) मारने भी लग जाता है। अतः यहाँ यह भी जाने धर्मकथा करना श्रेय नहीं है। पहले धर्मोपदेशक को यह जान लेना चाहिए की यह पुरुष कौन है ? किस देवता को मानता है ? वह वीर प्रशंसा के योग्य है, जो बद्ध मनुष्यों को मुक्त करता है। वह ऊंची, नीची और तीरछी दिशाओं में, सब प्रकार से समग्र परिज्ञा/विवेकज्ञान | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-२ दुःखानुभव | Hindi | 122 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आसेवित्ता एतमट्ठं, इच्चेवेगे समुट्ठिया, तम्हा तं बिइयं नो सेवए।
निस्सारं पासिय नाणी, उववायं चवणं नच्चा। अनन्नं चर माहणे!
से न छणे न छनावए, छणंतं णाणुजाणइ।
निव्विंद नंदिं अरते पयासु।
अणोमदंसी निसन्ने पावेहिं कम्मेहिं। Translated Sutra: इस प्रकार कईं व्यक्ति इस अर्थ का आसेवन करके संयम – साधना में संलग्न हो जाते हैं। इसलिए वे फिर दुबारा उनका आसेवन नहीं करते। हे ज्ञानी ! विषयों को निस्सार देखकर (तू विषयाभिलाषा मत कर)। केवल मनुष्यों के ही, जन्म – मरण नहीं, देवों के भी उपपात और च्यवन निश्चित हैं, यह जानकर (विषय – सुखों में आसक्त मत हो)। हे माहन ! तू अनन्य | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-२ विरत मुनि | Hindi | 162 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आवंती केआवंती लोगंसि परिग्गहावंती–से अप्पं वा, बहुं वा, अणुं वा, थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा, एतेसु चेव परिग्गहावंती।
एतदेवेगेसि महब्भयं भवति, लोगवित्तं च णं उवेहाए।
एए संगे अविजाणतो। Translated Sutra: इस जगत में जितने भी प्राणी परिग्रहवान हैं, वे अल्प या बहुत, सूक्ष्म या स्थूल, सचित्त या अचित्त वस्तु का परिग्रहण करते हैं। वे इनमें (मूर्च्छा के कारण) ही परिग्रहवान हैं। यह परिग्रह ही परिग्रहियों के लिए महाभय का कारण होता है। साधकों ! असंयमी – परिग्रही लोगों के वित्त – या वृत्त को देखो। (इन्हें भी महान भयरूप | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-१ स्वजन विधूनन | Hindi | 193 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तं परक्कमंतं परिदेवमाणा, ‘मा णे चयाहि’ इति ते वदंति। छंदोवणीया अज्झोववन्ना, अक्कंदकारी जणगा रुवंति।
अतारिसे मुनी, नो ओहंतरए, जणगा जेण विप्पजढा।
सरणं तत्थ णोसमेति। किह नाम से तत्थ रमति?
एयं नाणं सया समणुवासिज्जासि। Translated Sutra: मोक्षमार्ग – संयम में पराक्रम करते हुए उस मुनि के माता – पिता आदि करुण विलाप करते हुए यों कहते हैं – तुम हमें मत छोड़ो, हम तुम्हारे अभिप्राय के अनुसार व्यवहार करेंगे, तुम पर हमें ममत्व है। इस प्रकार आक्रन्द करते हुए वे रुदन करते हैं। (वे रुदन करते हुए स्वजन कहते हैं) जिसने माता – पिता को छोड़ दिया है, ऐसा व्यक्ति | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-९ उपधान श्रुत |
उद्देशक-१ चर्या | Hindi | 279 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] भगवं च ‘एवं मन्नेसिं’, सोवहिए हु लुप्पती बाले ।
कम्मं च सव्वसो नच्चा, तं पडियाइक्खे पावगं भगवं ॥ Translated Sutra: भगवान ने यह भलीभाँति जान – मान लिया था कि द्रव्य – भाव – उपधि से युक्त अज्ञानी जीव अवश्य ही क्लेश का अनुभव करता है। अतः कर्मबन्धन सर्वांग रूप से जानकर कर्म के उपादानरूप पाप का प्रत्याख्यान कर दिया था | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-९ उपधान श्रुत |
उद्देशक-४ आतंकित | Hindi | 331 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अवि ज्झाति से महावीरे, आसणत्थे अकुक्कुए ज्झाणं ।
उड्ढमहे तिरियं च, पेहमाणे समाहिमपडिण्णे ॥ Translated Sutra: भगवान महावीर उकडू आदि आसनों में स्थित होकर ध्यान करते थे। ऊंचे, नीचे और तिरछे लोक में स्थित द्रव्य – पर्याय को ध्यान का विषय बनाते थे। वे असम्बद्ध बातों से दूर रहकर आत्म – समाधि में ही केन्द्रित रहते थे। | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-२ शय्यैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 414 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु पाईण वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा–गाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा। तेसिं च णं आयारे-गोयरे नो सुणिसंते भवइ।
तं सद्दहमाणेहिं, तं पत्तियमाणेहिं, तं रोयमाणेहिं बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स तत्थ-तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेतिताइं भवंति, तं जहा–आएसणाणि वा, आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहाओ वा पवाओ वा, पणिय-गिहाणि वा, पणिय-सालाओ वा, जाण-गिहाणि वा, जाण-सालाओ वा, सुहाकम्मंताणि वा, दब्भ-कम्मंताणि वा, बद्ध-कम्मंताणि वा, वक्क-कम्मंताणि वा, Translated Sutra: आयुष्मन् ! इस संसार में पूर्व, पश्चिम, दक्षिण अथवा उत्तर दिशा में कईं श्रद्धालु हैं जैसे कि गृहस्वामी, गृह – पत्नी, उसकी पुत्र – पुत्रियाँ, पुत्रवधूएं, धायमाताएं, दास – दासियाँ या नौकर – नौकरानियाँ आदि; उन्होंने निर्ग्रन्थ साधुओं के आचार – व्यवहार के विषय में तो सम्यक्तया नहीं सूना है, किन्तु उन्होंने यह सून | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-२ शय्यैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 419 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा–गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा। तेसिं च णं आयार-गोयरे नो सुणिसंते भवइ।
तं सद्दहमाणेहिं, तं पत्तियमाणेहिं, तं रोयमाणेहिं एगं समणजायं समुद्दिस्स तत्थ-तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेतिताइं भवंति, तं जहा–आएसणाणि वा जाव भवनगिहाणि वा। महया पुढविकाय-समारंभेणं, महया आउकाय-समारंभेणं, महया तेउकाय-समारंभेणं, महया वाउकाय-समारंभेणं, महया वणस्सइकाय-समारंभेणं, महया तसकाय-समारंभेणं, महया संरंभेणं, महया समारंभेणं महया आरंभेणं, महया विरूवरूवेहिं पावकम्म-किच्चेहिं, तं जहा–छायणओ लेवनओ संथार-दुवार-पिहणओ। सीतोदए Translated Sutra: इस संसार में पूर्वादि दिशाओं में गृहपति, उनकी पत्नी, पुत्री, पुत्रवधू आदि कईं श्रद्धा – भक्ति से ओतप्रोत व्यक्ति हैं उन्होंने साधुओं के आचार – व्यवहार के सम्बन्ध में तो जाना – सूना नहीं है, किन्तु उनके प्रति श्रद्धा, प्रतीति और रुचि से प्रेरित होकर उन्होंने किसी एक ही प्रकार के निर्ग्रन्थ श्रमण वर्ग के उद्देश्य | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-२ शय्यैषणा |
उद्देशक-३ | Hindi | 429 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा, अन्नमन्नस्स गायं सिनाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, पउमेण वा,
आघंसंति वा, पघंसंति वा, उव्वलेंति वा, उव्वट्टेंति वा, नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए, नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग-चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा, चेतेज्जा। Translated Sutra: साधु या साध्वी यदि ऐसे उपाश्रय को जाने, कि इस उपाश्रय में गृहस्वामी यावत् नौकरानियाँ परस्पर एक दूसरे के शरीर को स्नान करने योग्य पानी से, कर्क से, लोघ्र से, वर्णद्रव्य से, चूर्ण से, पक्ष से मलती हैं, रगड़ती हैं, मैल उतारती हैं, उबटन करती हैं; वहाँ प्राज्ञ साधु का नीकलना या प्रवेश करना उचित नहीं है और न ही वह स्थान | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-३ इर्या |
उद्देशक-३ | Hindi | 461 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागाराणि वा, तोर-णाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गल-पासगाणि वा, गड्डाओ वा, दरीओ वा, कूडागाराणि वा, पासादाणि वा, नूम-गिहाणि वा, रुक्ख-गिहाणि वा, पव्वय-गिहाणि वा, रुक्खं वा चेइय-कडं, थूभं वा चेइय-कडं, आएसणाणि वा, आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहाओ वा, पवाओ वा, पणिय-गिहाणि वा, पणिय-सालाओ वा, जाण-गिहाणि वा, जाण-सालाओ वा, सुहा-कम्मंताणि वा, दब्भ-कम्मंताणि वा, वद्ध-कम्मंताणि वा, वक्क-कम्मंताणि वा, वन-कम्मंताणि वा, इंगाल-कम्मंताणि वा, कट्ठ-कम्मंताणि वा, सुसाण-कम्मंताणि वा, संति-कम्मंताणि वा, गिरि-कम्मंताणि वा, कंदर-कम्मंताणि Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भिक्षु या भिक्षुणी मार्ग में आने वाले उन्नत भू – भाग या टेकरे, खाइयाँ, नगर को चारों ओर से वेष्टित करने वाली नहरें, किले, नगर के मुख्य द्वार, अर्गला, अर्गलापाशक, गड्ढे, गुफाएं या भूगर्भ मार्ग तथा कूटागार, प्रासाद, भूमिगृह, वृक्षों को काटछांट कर बनाए हुए गृह, पर्वतीय गुफा, वृक्ष के नीचे | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-४ भाषाजात |
उद्देशक-१ वचन विभक्ति | Hindi | 466 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इमाइं वइ-आयाराइं सोच्चा निसम्म इमाइं अणायाराइं अनायरियपुव्वाइं जाणेज्जा–जे कोहा वा वायं विउंजंति, जे माणा वा वायं विउंजंति, जे मायाए वा वायं विउंजंति, जे लोभा वा वायं विउंजंति, जाणओ वा फरुसं वयंति, अजाणओ वा फरुसं वयंति, सव्वमेयं सावज्जं वज्जेज्जा विवेगमायाए।
धुवं चेयं जाणेज्जा, अधुवं चेयं जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा लभिय णोलभिय, भुंजिय णोभुंजिय, अदुवा आगए अदुवा णोआगए, अदुवा एइ अदुवा नो एइ, अदुवा एहिति अदुवा नो एहिति, एत्थवि आगए एत्थवि नो आगए, एत्थवि एइ एत्थवि नो एइ, एत्थवि एहिति एत्थवि नो एहिति।
अणुवीइ निट्ठाभासी, समियाए Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी इन वचन (भाषा) के आचारों को सूनकर, हृदयंगम करके, पूर्व – मुनियों द्वारा अनाचरित भाषा – सम्बन्धी अनाचारों को जाने। जो क्रोध से वाणी का प्रयोग करते हैं, जो अभिमानपूर्वक, जो छल – कपट सहित, अथवा जो लोभ से प्रेरित होकर वाणी का प्रयोग करते हैं, जानबूझकर कठोर बोलते हैं, या अनजाने में कठोर वचन कह देते | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-४ भाषाजात |
उद्देशक-१ वचन विभक्ति | Hindi | 468 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुमं आमंतेमाणे आमंतिए वा अपडिसुणेमाणे एवं वएज्जा–अमुगे ति वा, आउसो ति वा, आउसंतो ति वा, सावगे ति वा, उपासगे ति वा, धम्मिए ति वा, धम्मपिये ति वा–एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोव-घाइयं अभिकंख भासेज्जा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थिं आमंतेमाणे आमंतिए य अपडिसुणेमाणी नो एवं वएज्जा–होले ति वा, गोले ति वा, वसुले ति वा, कुपक्खे ति वा, घडदासी ति वा, साणे ति वा, तेणे ति वा, चारिए ति वा, माई ति वा, मुसावाई ति वा, इच्चे-याइं तुमं एयाइं ते जणगा वा–एतप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकंख णोभासेज्जा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थियं आमंतेमाणे आमंतिए Translated Sutra: साधु या साध्वी किसी पुरुष को आमंत्रित कर रहे हों और आमंत्रित करने पर भी वह न सूने तो उसे इस प्रकार न कहे – अरे होल रे गोले ! या हे गोल ! अय वृषल ! हे कुपक्ष ! अरे घटदास ! या ओ कुत्ते ! ओ चोर ! अरे गुप्तचर अरे झूठे ! ऐसे ही तुम हो, ऐसे ही तुम्हारे माता – पिता हैं। साधु इस प्रकार की सावद्य, सक्रिय यावत् जीवोपघातिनी भाषा न बोले। संयमशील | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-४ भाषाजात |
उद्देशक-१ वचन विभक्ति | Hindi | 469 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा नो एवं वएज्जा– णभोदेवे ति वा, गज्जदेवे ति वा, विज्जुदेवे ति वा, पवट्ठदेवे ति वा, निवुट्ठदेवे ति वा, पडउ वा वासं मा वा पडउ, निप्फज्जउ वा सस्सं मा वा निप्फज्जउ, विभाउ वा रयणीं मा वा विभाउ, उदेउ वा सूरिए मा वा उदेउ, सो वा राया जयउ मा वा जयउ–नो एतप्पगारं भासं भासेज्जा पण्णवं।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अंतलिक्खे ति वा, गुज्झाणुचरिए ति वा, संमुच्छिए ति वा, णिवइए ति वा, ‘पओए, वएज्ज’ वा वुट्ठबलाहगे ति वा। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि। Translated Sutra: MISSING_TEXT_IN_ORIGINAL | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-४ भाषाजात |
उद्देशक-२ क्रोधादि उत्पत्तिवर्जन | Hindi | 470 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाइं रूवाइं पासेज्जा तहावि ताइं नो एवं वएज्जा, तं जहा–गंडी गंडी ति वा, कुट्ठी कुट्ठी ति वा, रायंसी रायंसी ति वा, अवमारियं अवमारिए ति वा, काणियं काणिए ति वा, ज्झिमियं ज्झिमिए ति वा, कुणियं कुणिए ति वा, खुज्जियं खुज्जिए ति वा, उदरी उदरी ति वा, मूयं भूए ति वा, सूणियं सूणिए ति वा, गिलासिणी गिलासिणी ति वा, वेवई वेवई ति वा, पीढसप्पी पीढसप्पी ति वा, सिलिवयं सिलिवए ति वाव, महुमेहणी महुमेहणी ति वा, हत्थछिन्नं हत्थछिन्ने ति वा, पादछिन्नं पादछिन्ने ति वा, नक्कछिन्नं नक्कछिन्ने ति वा, कण्णछिन्नं कण्णछिन्ने ति वा, ओट्ठछिन्नं ओट्ठछिन्ने ति वा जे यावण्णे Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी यद्यपि अनेक रूपों को देखते हैं तथापि उन्हें देखकर इस प्रकार न कहे। जैसे कि गण्डी माला रोग से ग्रस्त या जिसका पैर सूझ गया हो को गण्डी, कुष्ठ – रोग से पीड़ित को कोढ़िया, यावत् मधुमेह से पीड़ित रोगी को मधुमेही कहकर पुकारना, अथवा जिसका हाथ कटा हुआ है उसे हाथकटा, पैरकटे को पैरकटा, नाक कटा हुआ हो |