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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Gujarati | 178 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कण्हे वासुदेवे लवणसमुद्दं मज्झंमज्झेणं वीईवयमाणे-वीईवयमाणे गंगं उवागए उवागम्म ते पंच पंडवे एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! गंगं महानइं उत्तरह जाव ताव अहं सुट्ठियं लवणाहिवइं पासामि।
तए णं ते पंच पंडवा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ता समाणा जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता एगट्ठियाए मग्गण-गवेसणं करेंति, करेत्ता एगट्ठियाए गंगं महानइं उत्तरंति, उत्तरित्ता अन्नमन्नं एवं वयंति–पहू णं देवानुप्पिया! कण्हे वासुदेवे गंगं महानइं बाहाहिं उत्तरित्तए, उदाहू नो पहू उत्तरित्तए? त्ति कट्टु एगट्ठियं णूमेंति, णूमेत्ता कण्हं वासुदेवं पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૭ | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Gujarati | 179 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते पंच पंडवा जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता जेणेव पंडू राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु ताओ! अम्हे कण्हेणं निव्विसया आणत्ता।
तए णं पंडू राया ते पंच पंडवे एवं वयासी–कहण्णं पुत्ता! तुब्भे कण्हेणं वासुदेवेणं निव्विसया आणत्ता?
तए णं ते पंच पंडवा पंडुं रायं एवं वयासी–एवं खलु ताओ! अम्हे अवरकंकाओ पडिनियत्ता लवणसमुद्दं दोण्णिं जोयणसयसहस्साइं वीईवइत्था। तए णं से कण्हे वासुदेवे अम्हे एवं वयइ–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! गंगं महानइं उत्तरह जाव ताव अहं सुट्ठियं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૭ | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१८ सुंसमा |
Gujarati | 210 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चिलाए चोरसेनावई अन्नया कयाइ विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेत्ता ते पंच चोरसए आमंतेइ तओ पच्छा ण्हाए कयबलिकम्मे भोयणमंडवंसि तेहि पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं सुरं च मज्जं च मंसं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ, जिमियभुत्तुत्तरागए ते पंच चोरसए विपुलेणं धूव-पुप्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता एवं वयासी–
एवं खलु देवानुप्पिया! रायगिहे नयरे धने नामं सत्थवाहे सड्ढे। तस्स णं धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अनुमग्गजाइया सुंसुमा नामं दारिया–अहीना जाव सुरूवा। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૦૮ | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१८ सुंसमा |
Gujarati | 211 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से धने सत्थवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुबहुं धन-कनगं सुंसुमं च दारियं अवहरियं जाणित्ता महत्थं महग्घं महरिहं पाहुडं गहाय जेणेव नगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं महत्थं महग्घं महरिहं पाहुडं उवनेइ, उवनेत्ताएवं वयासी–
एवं खलु देवानुप्पिया! चिलाए चोरसेनावई सीहगुहाओ चोरपल्लीओ इहं हव्वमागम्म पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं मम गिहं धाएत्ता सुबहुं धन-कनगं सुंसुमं च दारियं गहाय रायगिहाओ पडि-निक्खमित्ता जेणेव सीहगुहा तेणेव पडिगए। तं इच्छामो णं देवानुप्पिया! सुंसुमाए दारियाए कूवं गमित्तए। तुब्भं णं देवानुप्पिया! से विपुले धनकनगे, ममं Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૧૧. ત્યારપછી તે ધન્ય સાર્થવાહ, પોતાના ઘેર આવ્યો. પછી ઘણુ જ ધન – કનક અને સુંસુમા પુત્રીનું અપહરણ થયું જાણીને મહાર્થ પ્રાભૃત લઈને નગરરક્ષક પાસે ગયો, તે મહાર્થ ભેંટણુ યાવત્ આપ્યું અને કહ્યું – હે દેવાનુપ્રિય ! ચિલાત ચોર સેનાપતિ, ચોરપલ્લીથી અહીં ૫૦૦ ચોર સાથે શીઘ્ર આવીને મારું ઘર લૂંટી, ઘણું ધન – સુવર્ણ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 54 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चई–भरहे वासे? भरहे वासे? गोयमा! भरहे णं वासे वेयड्ढस्स पव्वयस्स दाहिणेणं चोद्दुसत्तरं जोयणसयं एगारस य एगूनवीसइभाए जोयणस्स अबाहाए, लवणसमुद्दस्स उत्तरेणं चोद्दसुत्तरं जोयणसयं एगारस य एगूनवीसइभाए जोयणस्स अबाहाए, गंगाए महानईए पच्चत्थिमेणं, सिंधूए महानईए पुरत्थिमेणं, दाहिणड्ढभरहमज्झिल्लतिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं विनीया नामं रायहानी पन्नत्ता–पाईणपडीणायया, उदीणदाहिणविच्छिण्णा, दुवालस-जोयणायामा नवजोयणविच्छिण्णा धनवइमतिनिम्माया चामीकरपागारा नानामणिपंचवण्णकवि- सीसगपरिमंडियाभिरामा अलकापुरीसंकासा पमुइय-पक्कीलिया पच्चक्खं Translated Sutra: भगवन् ! भरतक्षेत्र का ‘भरतक्षेत्र’ यह नाम किस कारण पड़ा ? गौतम ! भरतक्षेत्र – स्थित वैताढ्य पर्वत के दक्षिण के ११४ – ११/१९ योजन तथा लवणसमुद्र के उत्तर में ११४ – ११/१९ योजन की दूरी पर, गंगा महानदी के पश्चिम में और सिन्धु महानदी के पूर्व में दक्षिणार्ध भरत के मध्यवर्ती तीसरे भाग के ठीक बीच में विनीता राजधानी है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 229 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सक्के देविंदे देवराया हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए जाव हरिसवसविसप्पमाणहियए दिव्वं जिणिंदाभिगमनजोग्गं सव्वालंकारविभूसियं उत्तरवेउव्वियं रूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता अट्ठहिं अग्ग-महिसीहिं सपरिवाराहिं नट्टाणीएणं गंधव्वाणीएण य सद्धिं तं विमानं अनुप्पयाहिणीकरेमाणे-अनुप्पयाहिणीकरेमाणे पुव्विल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहइ, दुरुहित्ता जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणंसि पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने।
एवं चेव सामानियावि उत्तरेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहित्ता पत्तेयं-पत्तेयं पुव्वण्णत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति। अवसेसा देवा य देवीओ Translated Sutra: पालक देव द्वारा दिव्य यान की रचना को सुनकर शक्र मन में हर्षित होता है। जिनेन्द्र भगवान् के सम्मुख जाने योग्य, दिव्य, सर्वालंकारविभूषित, उत्तरवैक्रिय रूप की विकुर्वणा करता है। सपरिवार आठ अग्रमहिषियों, नाट्यानीक, गन्धर्वानीक के साथ उस यान – विमान की अनुप्रदक्षिणा करता हुआ पूर्वदिशावर्ती त्रिसोपनक से – | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 3 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे? केमहालए णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे? किंसंठिए णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे? किमागारभावपडोयारे णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे पन्नत्ते?
गोयमा! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भिंतरए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापूय-संठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए वट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए, वट्टे पडिपुण्णचंद-संठाणसंठिए एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिन्नि जोयणसयसहस्साइं सोलस सहस्साइं दोन्नि य सत्तावीसे जोयणसए तिन्नि य कोसे अट्ठावीसं च धनुसयं तेरस अंगुलाइं अद्धंगुलं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं । Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप कहाँ है ? कितना बड़ा है ? उस का संस्थान कैसा है ? उस का आकार – स्वरूप कैसा है? गौतम ! यह जम्बूद्वीप सब द्वीप – समुद्रों में आभ्यन्तर है – सबसे छोटा है, गोल है, तेल में तले पूए जैसा गोल है, रथ के पहिए जैसा, कमल कर्णिका जैसा, प्रतिपूर्ण चन्द्र जैसा गोल है, अपने गोल आकारमें यह एक लाख योजन लम्बा – चौड़ा है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 8 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवस्स दीवस्स विजए नामं दारे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं पणयालीसं जोयणसहस्साइं वीइवइत्ता जंबुद्दीवे दीवे पुरत्थिमपेरंते लवणसमुद्द-पुरत्थिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं सीआए महानईए उप्पिं, एत्थ णं जंबुद्दीवस्स विजए नामं दारे पन्नत्ते–अट्ठ जोयणाइं उद्धं उच्चत्तेणं, चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं, सेए वरकनग-थूभियाए जाव दारस्स वण्णओ जाव रायहानी। Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप का विजय द्वार कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप स्थित मन्दर पर्वत की पूर्व दिशा में ४५ हजार योजन आगे जाने पर जम्बूद्वीप के पूर्व के अंतमें तथा लवणसमुद्र के पूर्वार्ध के पश्चिम में सीता महानदी पर जम्बूद्वीप का विजय द्वार है। वह आठ योजन ऊंचा तथा चार योजन चौड़ा है। उसका प्रवेश – चार योजन का है। वह द्वार | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 11 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भरहे नामं वासे पन्नत्ते?
गोयमा! चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, दाहिणलवणसमुद्दस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे नामं वासे पन्नत्ते– खाणुबहुले कंटकबहुले विसमबहुले दुग्गबहुले पव्वयबहुले पवायबहुले उज्झरबहुले निज्झरबहुले खुड्डाबहुले दरिबहुले नदीबहुले दहबहुले रुक्खबहुले गुच्छबहुले गुम्मबहुले लयाबहुले वल्लीबहुले अडवीबहुले सावयबहुये तेनबहुले तक्करबहुले डिंबबहुले डमरबहुले दुब्भिक्खबहुले दुक्कालबहुले पासंडबहुले किवणबहुले वणीमगबहुले Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरत नामक वर्ष – क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! चुल्ल हिमवंत पर्वत के दक्षिण में, दक्षिणवर्ती लवणसमुद्र के उत्तर में, पूर्ववर्ती लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमवर्ती लवणसमुद्र के पूर्व में है। इसमें स्थाणुओं, काँटों, ऊंची – नीची भूमि, दुर्गमस्थानों, पर्वतों, प्रपातों, अवझरों, निर्झरों, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 12 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणद्धे भरहे नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! वेयड्ढस्स पव्वयस्स दाहिणेणं, दाहिणलवणसमुद्दस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणद्धभरहे नामं वासे पन्नत्ते– पाईणपडीणायए उदीण-दाहिणविच्छिन्ने अद्धचंदसंठाणसंठिए तिहा लवणसमुद्दं पुट्ठे, गंगासिंधूहिं महानईहिं तिभागपविभत्ते दोन्नि अट्ठतीसे जोयणसए तिन्नि य एगूनवीसइभागे जोयणस्स विक्खंभेणं।
तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठा– पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठा, Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में दक्षिणार्ध भरत क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! वैताढ्यपर्वत के दक्षिण में, दक्षिण – लवण समुद्र के उत्तर में, पूर्व – लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिम – लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बू नामक द्वीप के अन्तर्गत है। वह पूर्व – पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर – दक्षिण में चौड़ा है। यह अर्द्ध – चन्द्र – संस्थान | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 13 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे नामं पव्वए पन्नत्ते? गोयमा! उत्तरद्धभरहवासस्स दाहिणेणं, दाहिणड्ढभरहवासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवण-समुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे नामं पव्वए पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेदुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे–पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पणवीसं जोयणाइं उद्धं उच्चत्तेणं, छस्सकोसाइं जोयणाइं उव्वेहेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं। तस्स बाहा पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में वैताढ्य पर्वत कहाँ है ? गौतम ! उत्तरार्ध भरतक्षेत्र के दक्षिण में, दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र के उत्तर में, पूर्व – लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिम – लवणसमुद्र के पूर्व में है। यह पूर्व – पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर – दक्षिण में चौड़ा है। अपने पूर्वी किनारे से पूर्व – लवणसमुद्र | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 14 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढपव्वए सिद्धायतनकूडे नामं कुडे पन्नत्ते?
गोयमा! पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं दाहिणड्ढभरहकूडस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढपव्वए सिद्धायतनकूडे नामं कूडे पन्नत्ते, छ सक्कोसाइं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले छ सक्कोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, मज्झे देसूनाइं पंच जोयणाइं विक्खंभेणं, उवरि साइरेगाइं तिन्नि जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले देसूनाइं वीसं जोयणाइं परिक्खेवेणं, मज्झे देसूनाइं पन्नरस जोयणाइं परिक्खेवेणं, उवरि साइरेगाइं नव जोयणाइं परिक्खेवेणं, मूले विच्छिन्नेमज्झे संखित्ते Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में वैताढ्य पर्वत पर सिद्धायतनकूट कहाँ है ? गौतम ! पूर्व लवणसमुद्र के पश्चिम में, दक्षिणार्ध भरतकूट के पूर्व में है। वह छह योजन एक कोस ऊंचा, मूल में छह योजन एक कौस चौड़ा, मध्य में कुछ पाँच योजन चौड़ा तथा ऊपर कुछ अधिक तीन योजन चौड़ा है। मूल में उसकी परिधि कुछ कम बाईस योजन, मध्य में | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 15 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! वेयड्ढपव्वए दाहिणड्ढभरहकूडे नामं कूडे पन्नत्ते?
गोयमा! खंडप्पवायकूडस्स पुरत्थिमेणं सिद्धायतनकूडस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं वेयड्ढ-पव्वए दाहिणड्ढभरहकूडे नामं कूडे पन्नत्ते, सिद्धायतनकूडप्पमाणसरिसे जाव–
तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए पन्नत्ते–कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसियपहसिए जाव पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तस्स णं पासायवडेंसगस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पन्नत्ता–पंच धनुसयाइं आयामविक्खंभेणं, अड्ढाइज्जाहिं धनुसयाइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमई।
तीसे Translated Sutra: भगवन् ! वैताढ्य पर्वत का दक्षिणार्ध भरतकूट कहाँ है ? गौतम ! खण्डप्रपातकूट के पूर्व में तथा सिद्धा – यतनकूट के पश्चिम में है। उसका परिमाण आदि वर्णन सिद्धायतनकूट के बराबर है। दक्षिणार्ध भरतकूट के अति समतल, सुन्दर भूमिभाग में एक उत्तम प्रासाद है। वह एक कोस ऊंचा और आधा कोस चौड़ा है। अपने से निकलती प्रभामय किरणों | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 18 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] माणिभद्दकूडे वेयड्ढकूडे पुण्णभद्दकूडे–एए तिन्नि कणगामया सेसा छप्पि रयणामया। छण्हं सरिणामया देवा, दोण्हं कय-मालए चेव नट्टमालए चेव।
रायहानीओ? जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं तिरियं असंखेज्जदीवसमुद्दे वीईवइत्ता अन्नंमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं रायहानीओ भाणियव्वाओ विजयरायहानी सरिसियाओ। Translated Sutra: मणिभद्रकूट, वैताढ्यकूट एवं पूर्णभद्रकूट – ये तीन कूट स्वर्णमय हैं तथा बाकी के छह कूट रत्नमय हैं। दो पर कृत्यमालक तथा नृत्यमालक नामक दो विसदृश नामों वाले देव रहते हैं। बाकी के छह कूटों पर कूटसदृश नाम के देव रहते हैं। मन्दर पर्वत के दक्षिण में तिरछे असंख्येय द्वीप समुद्रों को लांघते हुए अन्य जम्बूद्वीप में | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 20 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्ढभरहे नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवण-समुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्ढभरहे नामं वासे पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेपलियंकसंठिए दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे–पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, गंगासिंधूहिं महानईहिं तिभागपविभत्ते दोन्नि अट्ठतीसे जोयणसए तिन्नि य एगूनवीसइभागे जोयणस्स विक्खंभेणं।
तस्स Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में उत्तरार्ध भरत नामक क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! चुल्लहिमवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, वैताढ्य पर्वत के उत्तर में, पूर्व – लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिम – लवणसमुद्र के पूर्व में है। वह पूर्व – पश्चिम लम्बा और उत्तर – दक्षिण चौड़ा है, पर्यंक – संस्थान – संस्थित है। वह दोनों तरफ लवण – समुद्र | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 46 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए वज्जरिसहनारायसंघयणे समचउरंससंठाणसंठिए पंच धनुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
उसभे णं अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारवासमज्झावसित्ता, तेवट्ठिं पुव्वसय-सहस्साइं रज्जवासमज्झा वसित्ता, तेसीइं पुव्वसयसहस्साइं अगारवासमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए।
उसभे णं अरहा कोसलिए एगं वाससहस्सं छउमत्थपरियायं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं वाससहस्सूणं केवलिपरियायं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं बहुपडिपुण्णं सामण्णपरियायं पाउणित्ता, चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता जेसे हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे Translated Sutra: कौशलिक भगवान् ऋषभ वज्रऋषभनाराचसंहनन युक्त, समचौरससंस्थानसंस्थित तथा ५०० धनुष दैहिक ऊंचाई युक्त थे। वे २० लाख पूर्व तक कुमारावस्था में तथा ६३ लाख पूर्व महाराजावस्था में रहे। यों ८३ लाख पूर्व गृहवास में रहे। तत्पश्चात् मुंडित होकर अगारवास से अनगार – धर्म में प्रव्रजित हुए। १००० वर्ष छद्मस्थ – पर्याय | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 62 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया चाउग्घंटं अस्सरहं दुरुढे समाणे हय गय रह पवरजोहकलियाए सद्धिं संपरिवुडे महयाभडचडगर पहगरवंदपरिक्खित्ते चक्करयणदेसियमग्गे अनेगरायवरसहस्साणुजायमग्गे महया उक्किट्ठि सीहनाय बोल कलकलरवेणं पक्खु भियमहासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणे-करेमाणे पुरत्थिम-दिसाभिमुहे मागहतित्थेणं लवणसमुद्दं ओगाहइ जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला।
तए णं से भरहे राया तुरगे निगिण्हई, निगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता धनुं परामुसइ।
तए णं तं अइरुग्गयबालचंद इंदधनु सन्निकासं वरमहिस दरिय दप्पिय दढघणसिंगग्गरइयसारं उरगवर पवरगवल पवरपरहुय भमरकुल णीलि णिद्ध धंत धोयपट्टं निउणोविय Translated Sutra: तत्पश्चात् राज भरत चातुर्घंट – अश्वरथ पर सवार हुआ। वह घोड़े, हाथी, रथ तथा पदातियों से युक्त चातुरंगिणी सेना से घिरा था। बड़े – बड़े योद्धाओं का समूह साथ चल रहा था। हजारों मुकुटधारी श्रेष्ठ राजा पीछे – पीछे चल रहे थे। चक्ररत्न द्वारा दिखाये गये मार्ग पर वह आगे बढ़ रहा था। उस के द्वारा किये गये सिंहनाद के कलकल शब्द | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 67 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सरे भरहेणं रन्ना निसट्ठे समाणे खिप्पामेव दुवालस जोयणाइं गंता मागहतित्थाधिपतिस्स देवस्स भवनंसि निवइए।
तए णं से मागहतित्थाहिवई देवे भवनंसि सरं निवइयं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुट्ठे चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं निडाले साहरइ, साहरित्ता एवं वयासी–केस णं भो! एस अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीनपुण्णचाउद्दसे हिरिसिरिपरिवज्जिए, जे णं मम इमाए एयारूवाए दिव्वाए देवड्ढीए दिव्वाए देवजुईए दिव्वेणं दिवानुभावेणं लद्धाए पत्ताए अभिसमन्नागयाए उप्पिं अप्पुस्सुए भवनंसि सरं निसिरइ त्तिकट्टु सीहासनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता जेणेव से नामाहयके Translated Sutra: राजा भरत द्वारा छोड़े जाते ही वह बाण तुरन्त बारह योजन तक जाकर मागध तीर्थ के अधिपति – के भवन में गिरा। मागध तीर्थाधिपति देव तत्क्षण क्रोध से लाल हो गया, रोषयुक्त, कोपाविष्ट, प्रचण्ड और क्रोधाग्नि से उद्दीप्त हो गया। कोपाधिक्य से उसके ललाट पर तीन रेखाएं उभर आई। उसकी भृकुटि तन गई। वह बोला – ‘अप्रार्थित – मृत्यु | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 73 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं तं धरणितलगमनलहु ततोव्विद्ध लक्खणपसत्थं हिमवंत कंदरंतरणिवाय संवद्धिय चित्त तिनिसदलियं जंबूणयसुकयकुव्वरं कनयदंडियारं पुलय वइर इंदणील सासग पवाल फलिहवर रयण लेट्ठु मणि विद्दुमविभूसियं अडयालीसारर-इयतवणिज्जपट्टसंगहिय जुत्ततुंबं पघसियपसिय-निम्मियनवपट्ट पुट्ठ परिनिट्ठियं विसिट्ठलट्ठणवलोहवद्धकम्मं हरिपहरणरयणसरिसचक्कं कक्केयण-इंदणी सासगसुसमाहिय बद्धजालकंकडं पसत्थविच्छिण्णसमधुरं पुरवरं व गुत्तं सुकरणतवणिज्ज-जुत्तकलियं कंकडगणिजुत्तकप्पणं पहरणानुजायं खेडग कनग धनु मंडलग्ग वरसत्ति कोंत तोमर सरसयबत्तीसतोणपरिमंडियं कनगरयणचित्तं जुत्तं हलीमुह Translated Sutra: वह रथ पृथ्वी पर शीघ्र गति से चलनेवाला था। अनेक उत्तम लक्षण युक्त था। हिमालय पर्वत की वायु – रहित कन्दराओं में संवर्धित तिनिश नामक रथनिर्माणोपयोगी वृक्षों के काठ से बना था। उसका जुआ जम्बूनद स्वर्ण से निर्मित था। आरे स्वर्णमयी ताड़ियों के थे। पुलक, वरेन्द्र, नील सासक, प्रवाल, स्फटिक, लेष्टु, चन्द्रकांत, विद्रुम | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 76 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया कयमालस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए सुसेणं सेनावइं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छाहि णं भो देवानुप्पिया! सिंधूए महानईए पच्चत्थिमिल्लं निक्खुडं ससिंधुसागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य ओयवेहि, ओयवेत्ता अग्गाइं वराइं रयणाइं पडिच्छाहि, पडिच्छित्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि।
तते णं से सेनावई बलस्स नेया, भरहे वासंमि विस्सुयजसे, महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी तेयंसी लक्खणजुत्ते मिलक्खुभासाविसारए चित्तचारुभासी भरहे वासंमि निक्खुडाणं निण्णाण य दुग्गमाण य दुक्खप्पवेसाण य वियाणए अत्थसत्थ-कुसले रयणं सेनावई सुसेने Translated Sutra: कृतमाल देव के विजयोपलक्ष्य में समायोजित अष्टदिवसीय महोत्सव के सम्पन्न हो जाने पर राजा भरत ने अपने सुषेण सेनापति को बुलाकर कहा – सिंधु महानदी के पश्चिम से विद्यमान, पूर्व में तथा दक्षिण में सिन्धु महानदी द्वारा, पश्चिम में पश्चिम समुद्र द्वारा तथा उत्तर में वैताढ्य पर्वत द्वारा विभक्त भरतक्षेत्र के कोणवर्ती | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 78 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया मणिरयणं परामुसइ– तो तं चउरंगुलप्पमाणमेत्तं च अनग्घियं तंसच्छलंसं अनोवमजुइं दिव्वं मणिरयणपतिसमं वेरुलियं सव्वभूयकंतं वेढो–
जेण य मुद्धागएणं दुक्खं, ण किंचि जायइ हवइ आरोग्गे य सव्वकालं।
तेरिच्छिय-देवमाणुसकया य, उवसग्गा सव्वे न करेंति तस्स दुक्खं।
संगामे वि असत्थवज्झो, होइ णरो मणिवरं धरेंतो।
ठियजोव्वण-केसअवट्ठियणहो, हवइ य सव्वभयविप्पमुक्को।
तं मणिरयणं गहाय से नरवई हत्थिरयणस्स दाहिणिल्लाए कुंभीए निक्खिवइ।
तए णं से भरहाहिवे नरिंदे हारोत्थयसुकयरइयवच्छे कुंडलउज्जोइयाणणे मउडदित्तसिरए नरसीहे नरवई नरिंदे नरवसभे मरुयरायवसभकप्पे अब्भहियरायतेयलच्छीए Translated Sutra: तत्पश्चात् राजा भरत ने मणिरत्न का स्पर्श किया। वह मणिरत्न विशिष्ट आकारयुक्त, सुन्दरतायुक्त था। चार अंगुल प्रमाण था, अमूल्य था – वह तिखूंटा, ऊपर नीचे षट्कोणयुक्त, अनुपम द्युतियुक्त, दिव्य, मणिरत्नों में सर्वोत्कृष्ट, सब लोगों का मन हरने वाला था – जो सर्व – कष्ट – निवारक था, सर्वकाल आरोग्यप्रद था। उस के प्रभाव | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 79 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं तिमिसगुहाए बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं उम्मुग्ग-णिमुग्गजलाओ नामं दुवे महानईओ पन्नत्ताओ, जाओ णं तिमिसगुहाए पुरत्थिमिल्लाओ भित्तिकडगाओ पवूढाओ समाणीओ पच्चत्थि-मेणं सिंधुं महानइं समप्पेंति।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–उम्मुग्ग-णिमुग्गजलाओ महानईओ? गोयमा! जण्णं उम्मुग्गजलाए महानईए तणं वा पत्तं वा कट्ठं वा सक्करा वा आसे वा हत्थी वा रहे वा जोहे वा मनुस्से वा पक्खिप्पइ, तण्णं उम्मुग्गजला महानई तिक्खुत्तो आहुणिय-आहुणिय एगंते थलंसि एडेइ। जण्णं निमुग्गजलाए महानईए तणं वा पत्तं वा कट्ठं वा सक्करा वा आसे वा हत्थी वा रहे वा जोहे वा मनुस्से वा पक्खिप्पइ, तण्णं निमुग्गजला Translated Sutra: तमिस्रा गुफा के ठीक बीच में उन्मग्नजला तथा निमग्नजला नामक दो महानदियाँ हैं, जो तमिस्रा गुफा के पूर्वी भित्तिप्रदेश से निकलती हुई पश्चिमी भित्ति प्रदेश होती हुई सिन्धु महानदी में मिलती हैं। भगवन् ! इन नदियों के उन्मग्नजला तथा निमग्नजला – ये नाम किस कारण पड़े ? गौतम ! उन्मग्नजला महानदी में तृण, पत्र काष्ठ पाषाणखण्ड, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 80 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं उत्तरड्ढभरहे वासे बहवे आवाडा नामं चिलाया परिवसंति–अड्ढा दित्ता बित्ता विच्छिण्णविउलभवन सयणासण जानवाहनाइण्णा बहुधन बहुजायरूवरयया आओगपओग-संपउत्ता विच्छड्डियपउरभत्तपाणा बहुदासी-दास गो महिस गवेलगप्पभूया बहुजनस्स अपरिभूया सूरा वीरा विक्कंता विच्छिण्णविउलबलबाहणा बहुसु समरसंपराएसु लद्धलक्खा यावि होत्था।
तए णं तेसिमावाडचिलायाणं अन्नया कयाइ विसयंसि बहूइं उप्पाइयसयाइं पाउब्भवित्था, तं जहा– अकाले गज्जियं, अकाले विज्जुयं, अकाले पायवा पुप्फंति, अभिक्खणं-अभिक्खणं आगासे देवयाओ नच्चंति।
तए णं ते आवाडचिलाया विसयंसि बहूइं उप्पाइयसयाइं Translated Sutra: उस समय उत्तरार्ध भरतक्षेत्र में – आपात संज्ञक किरात निवास करते थे। वे आढ्य, दीप्त, वित्त, भवन, शयन, आसन, यान, वाहन तथा स्वर्ण, रजत आदि प्रचुर धन के स्वामी थे। आयोग – प्रयोग – संप्रवृत्त – थे। उनके यहाँ भोजन कर चुकने के बाद भी खाने – पीने के बहुत पदार्थ बचते थे। उनके घरों में बहुत से नौकर – नौकरानियाँ, गायें, भैंसे, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 104 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे चक्करयणे गंगाए देवीए अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघर- सालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडिय सद्दसन्निनादेणं पूरेंते चेव अंबरतलं गंगाए महानईए पच्चत्थिमिल्लेणं कूलेणं दाहिणदिसिं खंडप्पवाय गुहाभिमुहे पयाए यावि होत्था।
तते णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं गंगाए महानईए पच्चत्थिमिल्लेणं कूलेणं दाहिणदिसिं खंडप्पवायगुहाभिमुहं पयातं चावि पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए जाव जेणेव खंडप्पवायगुहा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सव्वा कय-मालकवत्तव्वया नेयव्वा, नवरि–नट्ट-मालगे Translated Sutra: तत्पश्चात् वह दिव्य चक्ररत्न शस्त्रागार से बाहर निकला। उसने गंगा महानदी के पश्चिमी किनारे दक्षिण दिशा के खण्डप्रपात गुफा की ओर प्रयाण किया। तब राजा भरत खण्डप्रपात गुफा आया। शेष कथन तमिस्रा गुफा के अधिपति कृतमाल देव समान है। केवल इतना सा अन्तर है, खण्डप्रपात गुफा के अधिपति नृत्तमालक देव ने प्रीतिदान | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 121 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया अज्जियरज्जो निज्जियसत्तू उप्पन्नसमत्तरयणे चक्करयणप्पहाणे नवनिहिवई समिद्धकोसे बत्तीसरायवरसहस्साणुयायमग्गे सट्ठीए वरिससहस्सेहिं केवलकप्पं भरहं वासं ओयवेइ, ओयवेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हय गय रह पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेन्नं सण्णा हेह, एतमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणंति।
तए णं से भरहे राया जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे तहेव जाव धवलमहामेह निग्गए Translated Sutra: राजा भरत ने इस प्रकार राज्य अर्जित किया – । शत्रुओं को जीता। उसके यहाँ समग्र रत्न उद्भूत हुए। नौ निधियाँ प्राप्त हुईं। खजाना समृद्ध था – । बत्तीस हजार राजाओं से अनुगत था। साठ हजार वर्षों में समस्त भरतक्षेत्र को साध लिया। तदनन्तर राजा भरत ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रियों ! शीघ्र | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 122 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स भरहस्स रन्नो अन्नया कयाइ रज्जधुरं चिंतेमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अभिजिए णं मए नियगबल वीरिय पुरिसक्कार परक्कमेणं चुल्ल-हिमवंतगिरिसागरमेराए केवलकप्पे भरहे वासे, तं सेयं खलु मे अप्पाणं महयारायाभिसेएणं अभिसिंचावित्तए त्तिकट्टु एवं संपेहेति, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभाए रयणीए फुल्लु-प्पल-कमल-कोमलुम्मिलियंमि अहपंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास किंसुय सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागर संडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिंमि दिणयरे तेयसा जलंते जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव मज्जनघराओ पडिनिक्खमइ, Translated Sutra: राजा भरत अपने राज्य का दायित्व सम्हाले था। एक दिन उसके मन में ऐसा भाव, उत्पन्न हुआ – मैंने अपना बल, वीर्य, पौरुष एवं पराक्रम द्वारा समस्त भरतक्षेत्र को जीत लिया है। इसलिए अब उचित है, मैं विराट् राज्याभिषेक – समारोह आयोजित करवाऊं, जिसमें मेरा राजतिलक हो। दूसरे दिन राजा भरत, स्नान कर बाहर निकला, पूर्व की ओर मुँह | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 127 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे चुल्लहिमवंते नामं वासहरपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! हेमवयस्स वासस्स दाहिणेणं, भरहस्स वासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे चुल्ल-हिमवंते नामं वासहरपव्वए पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेदुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे–पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थि-मिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, एगं जोयणसयं उड्ढं उच्चत्तेणं, पणवीसं जोयणाइं उव्वेहेणं, एगं जोयणसहस्सं बावन्नं च जोयणाइं दुवालस य एगूनवीसइभाए जोयणस्स Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप में चुल्ल हिमवान् नामक वर्षधर पर्वत हैमवतक्षेत्र के दक्षिण में, भरतक्षेत्र के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में बतलाया गया है। वह पूर्व – पश्चिम लम्बा तथा उत्तर – दक्षिण चौड़ा है। वह | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 129 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं पउमद्दहस्स पुरत्थिमिल्लेणं तोरणेणं गंगा महानई पवूढा समाणी पुरत्थाभिमुही पंच जोयणसयाइं पव्वएणं गंता गंगावत्तणकूडे आवत्ता समाणी पंच तेवीसे जोयणसए तिन्नि य एगून-वीसइभाए जोयणस्स दाहिनाभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगजोयणसइएणं पवाएणं पवडइ।
गंगा महानई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिब्भिया पन्नत्ता। सा णं जिब्भिया अद्धजोयणं आयामेणं, छस्सकोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं, मगरमुहविउट्टसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा सण्हा।
गंगा महानई जत्थ पवडइ, एत्थ णं महं एगे गंगप्पवायकुंडे नामं कुंडे पन्नत्ते–सट्ठिं Translated Sutra: उस पद्मद्रह के पूर्वी तोरण – द्वार से गंगा महानदी निकलती है। वह पर्वत पर पाँच ५०० बहती है, गंगावर्त कूट के पास से वापस मुड़ती है, ५२३ – ३/१९ योजन दक्षिण की ओर बहती है। घड़े के मुँह से निकलते हुए पानी की ज्यों जोर से शब्द करती हुई वेगपूर्वक, मोतियों के बने हार के सदृश आकार में वह प्रपात – कुण्ड में गिरती है। उस समय | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 130 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चुल्लहिमवंते णं भंते! वासहरपव्वए कइ कूडा पन्नत्ता? गोयमा! एक्कारस कूडा पन्नत्ता, तं जहा–सिद्धायतनकूडे चुल्लहिमवंतकूडे भरहकूडे इलादेवीकूडे गंगाकूडे सिरिकूडे रोहियंसकूडे सिंधुकूडे सूरादेवीकूडे हेमवयकूडे वेसमणकूडे।
कहि णं भंते! चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए सिद्धायतनकूडे नामं कूडे पन्नत्ते? गोयमा! पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, चुल्लहिमवंतकूडस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सिद्धायतनकूडे नामं कूडे पन्नत्ते–पंच जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले पंचजोयणसयाइं विक्खंभेणं, मज्झे तिन्नि य पण्णत्तरे जोयणसए विक्खंभेणं, उप्पिं अड्ढाइज्जे जोयणसए विक्खंभेणं, मूले Translated Sutra: भगवन् ! चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत के कितने कूट हैं ? गौतम ! ग्यारह, सिद्धायतन, चुल्लहिमवान्, भरत, इलादेवी, गंगादेवी, श्री, रोहितांशा, सिन्धुदेवी, सुरादेवी, हैमवत तथा वैश्रवणकूट। भगवन् ! चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत पर सिद्धायतनकूट कहाँ है ? गौतम ! पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, चुल्ल हिमवानकूट के पूर्व में | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 131 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे हेमवए नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! महाहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हेमवए नामं वासे पन्नत्ते–
पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेपलियंकसंठाणसंठिए दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे– पुरत्थि-मिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, दोन्नि य जोयणसहस्साइं एगं च पंचुत्तरं जोयणसयं पंच य एगूनवीसइभाए जोयणस्स विक्खं-भेणं। तस्स बाहा पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीपमें हैमवत क्षेत्र कहाँ है ? महाहिमवान् वर्षधरपर्वत के दक्षिण में, चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में है। वह पूर्व – पश्चिम लम्बा उत्तर – दक्षिण चौड़ा, पलंग आकारमें अवस्थित है। दो ओर से लवणसमुद्र का स्पर्श करता है, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 134 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाहिमवंते नामं वासहरपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! हरिवासस्स दाहिणेणं, हेमवयस्स वासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थि-मेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाहिमवंते नामं वासहरपव्वए पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिण-विच्छिन्नेपलियंकसंठाणसंठिए दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे–पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, दो जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, पन्नासं जोयणाइं उव्वेहेणं चत्तारि जोयणसहस्साइं दोन्नि य दसुत्तरे जोयणसए दस य Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में महाहिमवान् वर्षधर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! हरिवर्षक्षेत्र के दक्षिण में, हैमवतक्षेत्र के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत है। वह पर्वत पूर्व – पश्चिम लम्बा तथा उत्तर – दक्षिण चौड़ा है। वह पलंग – सा आकारवाला है। वह दो | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 135 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] महाहिमवंतस्स णं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं एगे महापउमद्दहे नामं दहे पन्नत्ते–दो जोयणसहस्साइं आयामेणं, एगं जोयणसहस्सं विक्खंभेणं, दस जोयणाइं उव्वेहेणं, अच्छे रययामयकूले एवं आयाम-विक्खंभविहूणा जा चेव पउमद्दहस्स वत्तव्वया सा चेव नेयव्वा। पउमप्पमाणं दो जोयणाइं अट्ठो जाव महापउमद्दहवण्णाभाइं। हिरी य एत्थ देवी महिड्ढीया जाव पलिओवमट्ठिईया परिवसइ। से एएणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ– महापउमद्दहे-महापउमद्दहे।
अदुत्तरं च णं गोयमा! महापउमद्दहस्स सासए नामधेज्जे पन्नत्ते–जं न कयाइ नासी य कयाइ नत्थि न कयाइ न भविस्सइ भुविं च भवइ य भविस्सइ य धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए Translated Sutra: महाहिमवान् पर्वत के बीचोंबीच महापद्मद्रह है। वह २००० योजन लम्बा तथा १००० योजन चौड़ा है। वह दश योजन जमीन में गहरा है। वह स्वच्छ है, रजतमय तटयुक्त है। शेष वर्णन पद्मद्रह के सदृश है। उसके मध्य में जो पद्म है, वह दो योजन का है। शेष वर्णन पद्मद्रह के पद्म के सदृश है। वहाँ एक पल्योपमस्थितिक ह्री देवी निवास करती | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 137 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे हरिवासे नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! निसहस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, महाहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हरिवासे नामं वासे पन्नत्ते। एवं जाव पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, अट्ठ जोयणसहस्साइं चत्तारि य एगवीसे जोयणसए एगं च एगूनवीसइभागं जोयणस्स विक्खंभेणं। तस्स बाहा पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं तेरस जोयणसहस्साइं तिन्नि य एगसट्ठे जोयणसए छच्च एगूनवीसइभाए जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं।
तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत् हरिवर्ष नामक क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के है। वह दोनों किनारे से लवणसमुद्र का स्पर्श करता है। उसका विस्तार ८४२१ – १/१९ योजन है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 138 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे निसहे नामं वासहरपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! महाविदेहस्स वासस्स दक्खिणेणं, हरिवासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे निसहे नामं वासहरपव्वए पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेदुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे–पुरत्थिमिल्लाए जाव पुट्ठे, चत्तारि जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउयसयाइं उव्वेहेणं, सोलस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोयणसए दोन्नि य एगूनवीसइभाए जोयस्स विक्खंभेणं। तस्स बाहा पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं वीसं जोयणसहस्साइं एगं च पण्णट्ठं जोयणसयं दुन्नि Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत् निषध नामक वर्षधर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! महाविदेहक्षेत्र के दक्षिण में, हरिवर्षक्षेत्र के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत है। वह पूर्व – पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर – दक्षिण में चौड़ा है। वह दो ओर लवणसमुद्र | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 139 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं तिगिंछिद्दहस्स दक्खिणिल्लेणं तोरणेणं हरिमहानई पवूढा समाणी सत्त जोयणसहस्साइं चत्तारि य एकवीसे जोयणसए एगं च एगूनववीसइभागं जोयणस्स दाहिनाभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगचउजोयणसइएणं पवाएणं पवडइ। एवं जा चेव हरिकंताए वत्तव्वया सा चेव हरीएवि नेयव्वा–जिब्भियाए कुंडस्स दीवस्स भवनस्स तं चेव पमाणं, अट्ठोवि भाणियव्वो जाव अहे जगइं दालइत्ता छप्पन्नाए सलिलासहस्सेहिं समग्गा पुरत्थिमं लवणसमुद्दं समप्पेइ। तं चेव पवहे य मुहमूले य पमाणं उव्वेहो य जो हरिकंताए जाव वनसंडसंपरिक्खित्ता।
तस्स णं तिगिंछिद्दहस्स उत्तरिल्लेणं Translated Sutra: उस तिगिंछद्रह के दक्षिणी तोरण से हरिसलिला महानदी निकलती है। वह दक्षिण में उस पर्वत पर ७४२१ – १/१९ योजन बहती है। घड़े के मुँह से निकलते पानी की ज्यों जोर से शब्द करती हुई वेगपूर्वक प्रपात में गिरती है। उस समय उसका प्रवाह कुछ अधिक ४०० योजन होता है। शेष वर्णन हरिकान्ता महानदी समान है। नीचे जम्बूद्वीप की जगती | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 140 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! निलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, निसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिम-लवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे नामं वासे पन्नत्ते– पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेपलियंकसंठाणसंठिए दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे– पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थि-मिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, तित्तीसं जोयण-सहस्साइं छच्च चुलसीए जोयणसए चत्तारि य एगूनवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं।
तस्स बाहा पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत् महाविदेह क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत् है। वह पूर्व – पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर – दक्षिण में चौड़ा है, पलंग के आकार के समान | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 171 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सुकच्छे नामं विजए पन्नत्ते? गोयमा! सीयाए महानईए उत्तरेणं, निलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, गाहावईए महानईए पच्चत्थिमेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सुकच्छे नामं विजए पन्नत्ते–उत्तरदाहिणायए जहेव कच्छे विजए तहेव सुकच्छे विजए, नवरं–खेमपुरा रायहानी, सुकच्छे राया समुप्पज्जइ, तहेव सव्वं।
कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे गाहावइकुंडे नामं कुंडे पन्नत्ते? गोयमा! सुकच्छस्स विजयस्स पुरत्थिमेणं, महाकच्छस्स विजयस्स पच्चत्थिमेणं, निलवंतस्स वासहर-पव्वयस्स Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में सुकच्छ विजय कहाँ है ? गौतम ! शीता महानदी के उत्तर में, नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, ग्राहावती महानदी के पश्चिम में तथा चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में है। वह उत्तर – दक्षिण लम्बा है। क्षेमपुरा उसकी राजधानी है। वहाँ सुकच्छ नामक राजा समुत्पन्न होता है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 174 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सीयाए महानईए दाहिणिल्ले सीयामुहवने नामं वने पन्नत्ते? एवं जह चेव उत्तरिल्ले सीयामुहवणं तह चेव दाहिणंपि भाणियव्वं, नवरं– निसहस्स वासहर-पव्वयस्स उत्तरेणं, सीयामहानईए दाहिणेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, वच्छस्सविजयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सीयाए महानईए दाहिणिल्ले सीयामुहवने नामं वने पन्नत्ते–उत्तरदाहिणायए, तहेव सव्वं, नवरं–निसहवासहरपव्वयंतेणं एगमेगूणवीसइभागं जोयणस्स विक्खंभेणं, किण्हे किण्होभासे जाव आसयंति, उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं वनवण्णओ।
कहि णं भंते! जंबुद्दीवे Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में शीतामुखवन कहाँ है ? गौतम ! शीता महानदी के उत्तर – दिग्वर्ती शीतामुखवन के समान ही दक्षिण दिग्वर्ती शीतामुखवन समझ लेता। इतना अन्तर है – दक्षिण – दिग्वर्ती शीतामुखवन निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, शीता महानदी के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, वत्स विजय | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 206 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे नीलवंते नामं वासहरपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! महाविदेहस्स वासस्स उत्तरेणं, रम्मगवासस्स दक्खिणेणं, पुरत्थिमिल्ललवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवण-समुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे नीलवंते नामं वासहरपव्वए पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे, निसहवत्तव्वया निलवंतस्स भाणियव्वा, नवरं–जीवा दाहिणेणं, धनुपट्ठं उत्तरेणं, एत्थ णं केसरिद्दहो, सीया महानई पवूढा समाणी उत्तरकुरं एज्जेमाणी-एज्जेमाणी जम-गपव्वए निलवंत उत्तरकुरु चंदेरावण मालवंतद्दहे य दुहा विभयमाणी-विभयमाणी चउरासीए सलिलासहस्सेहिं आपूरेमाणी-आपूरेमाणी Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप का नीलवान् वर्षधर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र के उत्तर में, रम्यक क्षेत्र के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में है। निषध पर्वत के समान है। इतना अन्तर है – दक्षिण में इसकी जीवा है, उत्तर में धनुपृष्ठभाग है। उसमें केसरी द्रह है। दक्षिण में | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 209 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे रम्मए नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! निलवंतस्स उत्तरेणं, रुप्पिस्स दक्खिणेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एवं जह चेव हरिवासं तह चेव रम्मयं वासं भाणियव्वं, नवरं–दक्खिणेणं जीवा उत्तरेणं धनुपट्ठं अवसेसं तं चेव।
कहि णं भंते! रम्मए वासे गंधावई नामं वट्टवेयड्ढपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! नरकंताए पच्च-त्थिमेणं, नारीकंताए पुरत्थिमेणं, रम्मगवासस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं गंधावई नामं वट्टवेयड्ढे पन्नत्ते, जं चेव वियडावइस्स तं चेव गंधावइस्सवि वत्तव्वं। अट्ठो, बहवे उप्पलाइं जाव गंधावइवण्णाइं गंधावइवण्णाभाइं Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप का रम्यक क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के उत्तर में, रुक्मी पर्वत के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में है। उसकी जीवा दक्षिण में है, धनुपृष्ठभाग उत्तर में है। बाकी वर्णन हरिवर्ष सदृश है। रम्यक् क्षेत्र में गन्धापाती वृत्तवैताढ्य | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 211 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वेवि एए पंचसइया, रायहानीओ उत्तरेणं।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–रुप्पी वासहरपव्वए? रुप्पी वासहरपव्वए? गोयमा! रुप्पी णं वासहरपव्वए रुप्पी रुप्पपट्टे रुप्पिओभासे सव्वरुप्पामए। रुप्पी य इत्थ देवे पलिओवमट्ठिईए परिवसइ। से तेणट्ठेणं।
कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे हेरण्णवए वासे पन्नत्ते? गोयमा! रुप्पिस्स उत्तरेणं, सिहरिस्स दक्खिणेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हेरण्णवए वासे पन्नत्ते। एवं जह चेव हेमवयं तह चेव हेरण्णवयंपि भाणियव्वं, नवरं–जीवा दाहिणेणं उत्तरेणं धनुपट्ठं अवसिट्ठं तं Translated Sutra: ये सभी कूट पाँच – पाँच सौ योजन ऊंचे हैं। उत्तर में इनकी राजधानियाँ है। भगवन् ! वह रुक्मी वर्षधर पर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! रुक्मी वर्षधर पर्वत रजत – निष्पन्न रजत की ज्यों आभामय एवं सर्वथा रजतमय है। वहाँ पल्योपमस्थितिक रुक्मी नामक देव निवास करता है, इसलिए वह रुक्मी वर्षधर पर्वत कहा जाता है। भगवन् ! जम्बूद्वीप | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 239 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अच्चुए देविंदे देवराया महं देवाहिवे आभिओग्गे देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! महत्थं महग्घं महरिहं विउलं तित्थयराभिसेयं उवट्ठवेह।
तए णं ते आभिओग्गा देवा हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया जाव पडिसुणित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं जाव समोहणित्ता अट्ठसहस्सं सोवण्णियकलसाणं, एवं रुप्पमयाणं मणिमयाणं सुवण्णरुप्पमयाणं सुवण्ण मणिमयाणं रुप्पमणिमयाणं सुवण्णरुप्प-मणिमयाणं अट्ठसहस्सं भोमेज्जाणं, अट्ठसहस्सं वंदणकलसाणं, एवं भिंगाराणं आयंसाणं थालाणं पातीणं सुपइट्ठाणं चित्ताणं रयणकरंडगाणं Translated Sutra: देवेन्द्र, देवराज, महान् देवाधिप अच्युत अपने आभियोगिक देवों को बुलाता है, उनसे कहता है – देवानुप्रियों! शीघ्र ही महार्थ, महार्घ, महार्ह, विपुल – तीर्थंकराभिषेक उपस्थापित करो – । यह सुनकर वे आभियोगिक देव हर्षित एवं परिपुष्ट होते हैं। वे ईशानकोण में जाते हैं। वैक्रियसमुद्घात से १००८ स्वर्णकलश, १००८ रजत | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ६ जंबुद्वीपगत पदार्थ |
Hindi | 245 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स पएसा लवणं समुद्दं पुट्ठा? हंता! पुट्ठा।
ते णं भंते! किं जंबुद्दीवे दीवे? लवणे समुद्दे? गोयमा! ते णं जंबुद्दीवे दीवे, नो खलु लवणे समुद्दे। एवं लवणसमुद्दस्सवि पएसा जंबुद्दीवे दीवे पुट्ठा भाणियव्वा।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगइया पच्चायति, अत्थेगइया नो पच्चायंति।
एवं लवणसमुद्दस्सवि जंबुद्दीवे दीवे नेयव्वं। Translated Sutra: भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप के चरम प्रदेश लवणसमुद्र का स्पर्श करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं। जम्बूद्वीप के जो प्रदेश लवणसमुद्र का स्पर्श करते हैं, क्या वे जम्बूद्वीप के ही प्रदेश कहलाते हैं या लवणसमुद्र के ? गौतम ! वे जम्बूद्वीप के ही प्रदेश कहलाते हैं। इसी प्रकार लवणसमुद्र के प्रदेशों की बात है। भगवन् ! क्या | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ६ जंबुद्वीपगत पदार्थ |
Hindi | 249 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे कइ वासा पन्नत्ता? गोयमा! सत्त वासा पन्नत्ता, तं जहा–भरहे एरवए हेमवए हेरण्णवए हरिवासे रम्मगवासे महाविदेहे।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया वासहरा पन्नत्ता? केवइया मंदरा पव्वया? केवइया चित्तकूडा? केवइया विचित्तकूडा? केवइया जमगपव्वया? केवइया कंचनगपव्वया? केवइया वक्खारा? केवइया दीहवेयड्ढा? केवइया वट्ठवेयड्ढा पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे छ वासहरपव्वया, एगे मंदर पव्वए, एगे चित्तकूडे, एगे विचित्तकूडे, दो जमगपव्वया, दो कंचनगपव्वय-सया, वीसं वक्खारपव्वया, चोत्तीसं दीहवेयड्ढा, चत्तारि वट्टवेयड्ढा–एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे दुन्नि Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने वर्ष – क्षेत्र हैं ? गौतम ! सात, – भरत, ऐरावत, हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यकवर्ष तथा महाविदेह। जम्बूद्वीप के अन्तर्गत छह वर्षधर पर्वत, एक मन्दर पर्वत, एक चित्रकूट पर्वत, एक विचित्रकूट पर्वत, दो यमक पर्वत, दो सौ काञ्चन पर्वत, बीस वक्षस्कार पर्वत, चौतीस दीर्घ वैताढ्य पर्वत तथा चार वृत्त | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 252 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! सूरमंडला पन्नत्ता? गोयमा! एगे चउरासीए मंडलसए पन्नत्ते।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया सूरमंडला पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहित्ता, एत्थ णं पन्नट्ठी सूरमंडला पन्नत्ता।
लवणे णं भंते! समुद्दे केवइयं ओगाहित्ता केवइया सूरमंडला पन्नत्ता? गोयमा! लवणे णं समुद्दे तिन्नि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता, एत्थ णं एगूनवीसे सूरमंडलसए पन्नत्ते– एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणे य समुद्दे एगे चुलसीए सूरमंडलसए भवतीतिमक्खायं। Translated Sutra: भगवन् ! सूर्य – मण्डल कितने हैं ? गौतम ! १८४, जम्बूद्वीप में १८० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर आगत क्षेत्र में ६५ सूर्य – मण्डल हैं। लवणसमुद्र में ३३० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर आगत क्षेत्र में ११९ सूर्यमण्डल हैं। इस प्रकार जम्बूद्वीप तथा लवणसमुद्र में १८४ सूर्य – मण्डल होते हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 260 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं किंसंठिया तावखेत्तसंठिई पन्नत्ता? गोयमा! उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठिया तावखेत्तसंठिई पन्नत्ता– अंतो संकुया बाहिं वित्थडा, अंतो वट्टा बाहिं पिहुला, अंतो अंकमुहसंठिया बाहिं सगडुद्धीमुहसंठिया, उभओ पासेणं तीसे दो बाहाओ अवट्ठियाओ हवंति– पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साइं आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अनवट्ठियाओ हवंति, तं जहा–सव्वब्भंतरिया चेव बाहा सव्वबाहिरिया चेव बाहा। तीसे णं सव्वब्भंतरिया बाहा मंदरपव्वयंतेणं नव जोयणसहस्साइं चत्तारि छलसीए जोयणसए नव य दसभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं।
एस णं Translated Sutra: भगवन् ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तो उसके ताप – क्षेत्र की स्थिति किस प्रकार है ? तब ताप – क्षेत्र की स्थिति ऊर्ध्वमुखी कदम्ब – पुष्प के संस्थान जैसी होती है – वह भीतर में संकीर्ण तथा बाहर विस्तीर्ण, भीतर से वृत्त तथा बाहर से पृथुल, भीतर अंकमुख तथा बाहर गाड़ी की धुरी के अग्रभाग जैसी | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 262 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तया णं भंते! किंसंठिया अंधयारसंठिई पन्नत्ता? गोयमा! उड्ढीमुहकलंबुया-पुप्फसंठाणसंठिया अंधयारसंठिई पन्नत्ता– अंतो संकुया बाहिं वित्थडा, अंतो वट्टा बाहिं पिहुला, अंतो अंकमुहसंठिया बाहिं सगडुद्धीमुहसंठिया, उभओ पासे णं तीसे दो बाहाओ अवट्ठियाओ हवंति– पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साइं आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अनवट्ठियाओ हवंति, तं जहा–सव्वब्भंतरिया चेव बाहा, सव्वबाहिरिया चेव बाहा।
तीसे णं सव्वब्भंतरीया बाहा मंदरपव्वयंतेणं छज्जोयणसहस्साइं तिन्नि य चउवीसे जोयणसए छच्च दसभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं।
से णं भंते! परिक्खेवविसेसे कओ आहिएति वएज्जा? गोयमा! जे णं मंदरस्स Translated Sutra: भगवन् ! तब अन्धकार – स्थिति कैसी होती है ? गौतम ! अन्धकार – स्थिति तब ऊर्ध्वमुखी कदम्ब पुष्प का संस्थान लिये होती है। वह भीतर संकीर्ण, बाहर विस्तीर्ण इत्यादि होती है। उसकी सर्वाभ्यन्तर बाहा की परिधि मेरु पर्वत के अन्त में ६३२४ – ६/१० योजन – प्रमाण है। जो पर्वत की परिधि है, उसे दो से गुणित किया जाए, गुणनफल को दस | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 269 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! चंदमंडला पन्नत्ता? गोयमा! पन्नरस चंदमंडला पन्नत्ता।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया चंदमंडला पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहित्ता पंच चंदमंडला पन्नत्ता।
लवणे णं भंते! पुच्छा। गोयमा! लवणे णं समुद्दे तिन्नि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता, एत्थ णं दस चंदमंडला पन्नत्ता। एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणे य समुद्दे पन्नरस चंदमंडला भवंतीतिमक्खायं। Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्र – मण्डल कितने हैं ? गौतम ! १५ हैं। जम्बूद्वीपमें १८० योजन क्षेत्र अवगाहन कर पाँच चन्द्र – मण्डल है। लवणसमुद्रमें ३३० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर दस चन्द्र – मण्डल हैं। यों कुल १५ चन्द्र – मण्डल होते हैं | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 276 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! नक्खत्तमंडला पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठ नक्खत्तमंडला पन्नत्ता।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया नक्खत्तमंडला पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहेत्ता, एत्थ णं दो नक्खत्तमंडला पन्नत्ता।
लवणे णं भंते! समुद्दे केवइयं ओगाहेत्ता केवइयं नक्खत्तमंडला पन्नत्ता? गोयमा! लवणे णं समुद्दे तिन्नि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता, एत्थ णं छ नक्खत्तमंडला पन्नत्ता। एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणसमुद्दे अट्ठ नक्खत्तमंडला भवंतीतिमक्खायं।
सव्वब्भंतराओ णं भंते! नक्खत्तमंडलाओ केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरए नक्खत्तमंडले पन्नत्ते? गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! नक्षत्रमण्डल कितने बतलाये हैं ? गौतम ! आठ। जम्बूद्वीपमें १८० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर दो नक्षत्रमण्डल हैं। लवणसमुद्र में ३३० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर छ नक्षत्रमण्डल हैं। सर्वाभ्यन्तर नक्षत्र – मण्डल से सर्वबाह्य नक्षत्रमण्डल ५१० योजन की अव्यवहित दूरी पर है। एक नक्षत्रमण्डल से दूसरे नक्षत्रमण्डल | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ६ जंबुद्वीपगत पदार्थ |
Gujarati | 245 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स पएसा लवणं समुद्दं पुट्ठा? हंता! पुट्ठा।
ते णं भंते! किं जंबुद्दीवे दीवे? लवणे समुद्दे? गोयमा! ते णं जंबुद्दीवे दीवे, नो खलु लवणे समुद्दे। एवं लवणसमुद्दस्सवि पएसा जंबुद्दीवे दीवे पुट्ठा भाणियव्वा।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगइया पच्चायति, अत्थेगइया नो पच्चायंति।
एवं लवणसमुद्दस्सवि जंबुद्दीवे दीवे नेयव्वं। Translated Sutra: ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના પ્રદેશો લવણસમુદ્રને પૃષ્ઠ છે ? હા, ગૌતમ ! સ્પૃષ્ટ છે. ભગવન્ ! શું તે જંબૂદ્વીપના પ્રદેશ કહેવાય કે લવણસમુદ્રના કહેવાય ? ગૌતમ ! તે પ્રદેશો જંબૂદ્વીપ દ્વીપના જ કહેવાય છે, લવણસમુદ્રના કહેવાતા નથી. એ પ્રમાણે લવણસમુદ્રના પ્રદેશો પણ જંબૂદ્વીપ દ્વીપને સ્પૃષ્ટ છે, એ પ્રમાણે કહેવું. ભગવન્ |