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Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Hindi 139 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पवत्तिणी य गिलायमाणी अन्नयरं वएज्जा–मए णं अज्जे! कालगयाए समाणीए इयं समुक्कसियव्वा। सा य समुक्कसणारिहा समुक्कसियव्वा, सा य नो समुक्कसणारिहा नो समुक्क-सियव्वा। अत्थियाइं त्थ अण्णा काइ समुक्कसणारिहा सा समु-क्कसियव्वा, नत्थियाइं त्थ अन्ना काइ समुक्कसणारिहा सा चेव समुक्कसियव्वा। ताए व णं समुक्किट्ठाए परा वएज्जा–दुस्समुक्किट्ठं ते अज्जे! निक्खिवाहि? तीसे णं निक्खिवमाणीए नत्थि केइ छेए वा परिहारे वा। जाओ तं साहम्मिणीओ अहाकप्पे णं नो उट्ठाए विहरंति सव्वासिं तासिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: प्रवर्तिनी साध्वी बीमारी आदि कारण से या मोह के उदय से चारित्र छोड़कर (मैथुन अर्थे) देशान्तर जाए तब अन्य को ऐसा कहे कि मैं काल करूँ तब या मेरे बाद मेरी पदवी इस साध्वी को देना। यदि वो उचित लगे तो पदवी दे, उचित न लगे तो न दे। उसे समुदाय में अन्य कोई योग्य लगे तो उसे पदवी दे, यदि कोई उचित न लगे तो पहले कहे गए अनुसार पदवी
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Hindi 140 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पवत्तिणी य ओहायमाणी अन्नयरं वएज्जा–मए णं अज्जे! ओहावियाए समाणीए इयं समुक्कसियव्वा। सा य समुक्कसणारिहा समुक्कसियव्वा, सा य नो समुक्कसणारिहा नो समुक्क-सियव्वा। अत्थियाइं त्थ अण्णा काइ समुक्कसणारिहा सा समुक्कसियव्वा, नत्थियाइं त्थ अण्णा काइ समुक्कसणारिहा सा चेव समुक्कसियव्वा। ताए व णं समुक्किट्ठाए परा वएज्जा–दुस्समुक्किट्ठं ते अज्जे! निक्खिवाहि तीसे णं निक्खिवमाणीए नत्थि केइ छेए वा परिहारे वा। जाओ तं साहम्मिणीओ अहाकप्पे णं नो उट्ठाए विहरंति सव्वासिं तासिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र १३९
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Hindi 149 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झायस्स गणंसि पंच अइसेसा पन्नत्ता, तं जहा–आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स पाए निगिज्झिय-निगिज्झिय पप्फोडेमाणे वा पमज्जेमाणे वा नातिक्कमति। आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स उच्चार-पासवणं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा नातिक्कमति आयरिय-उवज्झाए पभू वेयावडियं इच्छाए करेज्जा इच्छाए नो करेज्जा। आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नातिक्कमति। आयरिय-उवज्झाए बाहिं उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नातिक्कमति।

Translated Sutra: आचार्य – उपाध्याय को गण के विषय में पाँच अतिशय बताए हैं। उपाश्रय में पाँव घिसकर पूंजे या विशेष प्रमार्जे तो जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं होता, उपाश्रय में मल – मूत्र का त्याग करे, शुद्धि करे, वैयावच्च करने का सामर्थ्य हो तो ईच्छा हो तो वैयावच्च करे, ईच्छा न हो तो वैयावच्च न करे, उपाश्रय में एक – दो रात्रि निवास करे
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Hindi 150 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइयस्स गणंसि दो अइसेसा पन्नत्ता, तं जहा–गणावच्छेइए अंतो उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नातिक्कमति। गणावच्छेइए बाहिं उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नातिक्कमति।

Translated Sutra: गणावच्छेदक के गण के लिए दो अतिशय बताए हैं। गणावच्छेदक उपाश्रय में या उपाश्रय के बाहर एक या दो रात निवास करे तो जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं होता।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 163 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए, कप्पइ ण्हं पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए। जत्थेव अन्नमन्नं पासेज्जा तत्थेव एवं वएज्जा–अह णं अज्जो! तुमए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पच्चक्खं संभोगं विसंभोगं करेमि। से य पडितप्पेज्जा एवं से नो कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए। से य नो पडितप्पेज्जा एवं से कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए।

Translated Sutra: यदि कोई साधु – साध्वी समान सामाचारी वाले हैं उनमें से किसी साधु को परोक्ष तरह या दूसरे स्थानक में प्रत्यक्ष बताए बिना विसंभोगि यानि मांड़ली बाहर करना न कल्पे। उसी स्थानक में प्रत्यक्ष उनके सन्मुख कहकर विसंभोगि करना कल्पे। सन्मुख हो तब कहे कि हे आर्य ! इस कुछ कारण से अब तुम्हारे साथ सांभोगिक व्यवहार न करूँ।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 164 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जाओ निग्गंथीओ वा निग्गंथा वा संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए, कप्पइ ण्हं पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए। जत्थेव ताओ अप्पणो आयरिय-उवज्झाए पासेज्जा, तत्थेव एवं वएज्जा– अह णं भंते! अमुगीए अज्जाए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पारोक्खं पाडिएक्कं संभोगं विसंभोगं करेमि। सा य से पडितप्पेज्जा एवं से नो कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए। सा य से नो पडितप्पेज्जा एवं से कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए।

Translated Sutra: यदि कोई साधु – साध्वी समान सामाचारी वाले हैं उनमें से किसी साध्वी को दूसरे साध्वी ने प्रत्यक्ष संभोगी – पन में से विसंभोगीपन यानि की मांड़ली व्यवहार बंध करना न कल्पे। परोक्ष तरह अन्य के द्वारा कहकर विसंभोगी पन करना कल्पे। अपने आचार्य – उपाध्याय को ऐसा कहे कि कुछ कारण से अमुक साध्वी के साथ मांड़ली व्यवहार बंध
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 183 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विहवधूया नातिकुलवासिणी, सावि ताव ओग्गहं अनुण्णवेयव्वा। किमंग पुण पिया वा भाया वा पुत्ते वा पहेवि ओग्गहे ओगेण्हियव्वे।

Translated Sutra: यदि कोई विधवा पिता के घर में रहती हो और उसकी अनुमति लेने का अवसर आए तो उसके पिता, पुत्र या भाई दोनों की आज्ञा लेकर अवग्रह माँगना चाहिए।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-८ Hindi 195 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारगं सव्वप्पणा अप्पिणित्ता दोच्चं पि ओग्गहं अणणुन्नवेत्ता अहिट्ठित्तए, कप्पइ अनुण्णवेत्ता।

Translated Sutra: साधु – साध्वी को पाड़िहारिक या शय्यातर के पास से शय्या – संथारा पहले लिया हो वो उन्हें सौंपकर दूसरी दफा उनकी आज्ञा बिना रखना न कल्पे। आज्ञा लेकर रखना कल्पे, या पहले ग्रहण करके फिर आज्ञा लेना भी न कल्पे, पूर्व आज्ञा लेकर फिर ग्रहण करना कल्पे। यदि ऐसा माने कि यहाँ वाकई में प्रातिहारिक शय्या – संथारा सुलभ नहीं है,
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 244 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संखादत्तियस्स णं भिक्खुस्स पडिग्गहधारिस्स जावइयं-जावइयं केइ अंतो पडिग्गहंसि उवित्ता दलएज्जा तावइयाओ ताओ दत्तीओ वत्तव्वं सिया, तत्थ से केइ छव्वेण वा दूसएण वा वालएण वा अंतो पडिग्गहंसि उवित्ता दलएज्जा, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया। तत्थ से बहवे भुंजमाणा सव्वे ते सयं पिंडं अंतो पडिग्गहंसि उवित्ता दलएज्जा, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया।

Translated Sutra: अन्न – पानी की दत्ति की अमुक संख्या लेनेवाले साधु को पात्र धारक गृहस्थ के घर आहार के लिए प्रवेश बाद यात्रा में वो गृहस्थ अन्न की जितनी दत्ति दे उतनी दत्ति कहलाए। अन्न – पानी देते हुए धारा न तूटे वो एक दत्ति, उस साधु को किसी दातार वाँस की छाब में, वस्त्र से, चालणी से, पात्र उठाकर साधु को ऊपर से दे तब धारा तूटे नहीं
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 246 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिविहे उवहडे पन्नत्ते, तं जहा–सुद्धोवहडे फलिओवहडे संसट्ठोवहडे।

Translated Sutra: अभिग्रह तीन प्रकार के बताए, सफेद अन्न लेना, काष्ठ पात्र में सामने से लाकर दे वो हाथ से या बरतन से दे तो जो कोई ग्रहे, जो कोई दे, यदि कोई चीज को मुख में रखे वो चीज ही लेनी चाहिए। वो दूसरे प्रकार से तीन अभिग्रह। सूत्र – २४६, २४७
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 248 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगे पुण एवमाहंसु दुविहे ओग्गहिए पन्नत्ते, तं जहा–जं च ओगिण्हइ, जं च आसगंसि पक्खिवइ।

Translated Sutra: दो प्रकार से (भी) अभिग्रह बताए हैं। (१) जो हाथ में ले वो चीज लेना (२) जो मुख में रखे वो चीज लेना – ईस प्रकार मैं (तुम्हें) कहता हूँ।
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Gujarati 115 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चरियापविट्ठे भिक्खू परं चउरायाओ पंचरायाओ थेरे पासेज्जा पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्क-मेज्जा पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा। भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अनुण्णवेयव्वे सिया–अनुजाणह भंते! मिओग्गहं अहालंदं धुवं नितियं वेउट्ठियं, तओ पच्छा कायसंफासं।

Translated Sutra: ચર્યામાં પ્રવિષ્ટ સાધુ જો ચાર – પાંચ રાત્રિ પછી સ્થવિરોને મળે તો તે પુનઃ આલોચના પ્રતિક્રમણ કરે અને આવશ્યક છેદ કે તપરૂપ પ્રાયશ્ચિત્તમાં ઉપસ્થિત થાય. ભિક્ષુભાવને માટે તેને બીજી વખત અવગ્રહની અનુમતિ લેવી જોઈએ. તે આ પ્રકારે પ્રાર્થના કરે કે, ‘હે ભદંત; મિતાવગ્રહમાં વિચરવાને માટે કલ્પ અનુસાર કરવાને માટે ધ્રુવ
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Gujarati 117 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चरियानियट्टे भिक्खू परं चउरायाओ पंचरायाओ थेरे पासेज्जा, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेय-परि-हारस्स उवट्ठाएज्जा। भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अण्णुन्नवेयव्वे सिया–अनुजाणह भंते! मिओग्गहं अहालंदं धुवं नितियं वेउट्टियं, तओ पच्छा कायसंफासं।

Translated Sutra: ચર્યાથી નિવૃત્ત સાધુ જો ચાર – પાંચ રાત્રિ પછી સ્થવિરોને મળે તો તે પુનઃ આલોચના પ્રતિક્રમણ કરે. આવશ્યક છેદ કે તપરૂપ પ્રાયશ્ચિત્તમાં ઉપસ્થિત થાય. ભિક્ષુભાવને માટે તેણે બીજીવાર અવગ્રહની અનુમતિ લેવી જોઈએ. તે આ પ્રમાણે પ્રાર્થના કરે કે, ‘મને મિતાવ – ગ્રહની યથાલંદકલ્પની ધ્રુવ, નિત્ય, ક્રિયા કરવાની અને ફરી આવવાની
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Gujarati 1 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स मासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं।

Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: આ વ્યવહાર છેદસૂત્રમાં દશ ઉદ્દેશાઓ છે. દશે ઉદ્દેશા મળીને કુલ ૨૮૫ સૂત્રો નોંધાયેલા છે. વ્યવહાર સૂત્રનું ભાષ્ય હાલ ઉપલબ્ધ છે. તેના ઉપર પૂજ્ય મલયગિરિજીની ટીકા રચાયેલી છે. જે બંને અમારા ‘આગમ – સુત્તાણી સટીકં’માં છપાયેલા છે. અમારી ઇચ્છા સંપૂર્ણ અનુવાદની હોવા છતાં, વડીલોમાં સટીક – અનુવાદ પ્રગટ કરવા
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Gujarati 20 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेज्जा। थेरा य से सरेज्जा, कप्पइ से एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसं अन्ने साहम्मिया विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए। नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पति से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए। तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परो वएज्जा–वसाहि अज्जो! एगरायं वा दुरायं वा। एवं से कप्पति एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पति परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए। जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वासइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: પરિહાર કલ્પ સ્થિત સાધુ કોઈ બીમાર સ્થવિરની વૈયાવચ્ચ માટે જાય, તે સમયે સ્થવિર તેને પરિહાર તપ છોડવાની અનુમતિ આપે તો તેને માર્ગના ગ્રામાદિમાં એક – એક રાત્રિ વિશ્રામ કરતા જે દિશામાં સાધર્મિક બીમાર સાધુ હોય તે જ દિશામાં જવું કલ્પે છે. માર્ગમાં વિચરણના લક્ષ્યથી રોકાવું ન કલ્પે. પણ રોગાદિના કારણે રહેવું કલ્પે. કારણ
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Gujarati 21 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेज्जा। थेरा य नो सरेज्जा, कप्पति से निव्विसमाणस्स एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसिं अन्ने साहम्मिया विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए। नो से कप्पति तत्थ विहारवत्तियं वत्थए कप्पति से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए। तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परो वएज्जा–वसाहि अज्जो! एगरायं वा दुरायं वा। एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए। जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: પરિહાર કલ્પસ્થિત સાધુ કોઈ બીમાર સ્થવિરની વૈયાવચ્ચ માટે જાય. તે સમયે સ્થવિર પરિહારતપ છોડવાની અનુમતિ ન આપે તો પરિહારતપ વહન કરતા માર્ગમાં ગ્રામાદિમાં એક – એક રાત્રિ વિશ્રામ કરતા જે દિશામાં સાધર્મિક બીમાર સાધુ હોય તે જ દિશામાં જવું કલ્પે છે. માર્ગમાં વિચરણના લક્ષ્યથી રોકાવું ન કલ્પે. પણ રોગાદિના કારણે રહેવું
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उद्देशक-१ Gujarati 35 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो चेव सम्मंभावियाइं चेइयाइं पासेज्जा, बहिया गामस्स वा नगरस्स वा निगमस्स वा रायहाणीए वा खेडस्स वा कब्बडस्स वा मडंबस्स वा पट्टणस्स वा दोणमुहस्स वा आसमस्स वा संवाहस्स वा संनिवेसस्स वा पाईणाभिमुहे वा उदीणाभिमुहे वा करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वएज्जा– एवइया मे अवराहा, एवइक्खुत्तो अहं अवरद्धो, अरहंताणं सिद्धाणं अंतिए आलोएज्जा पडिक्कमेज्जा निंदेज्जा गरहेज्जा विउट्टेज्जा विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जासि।

Translated Sutra: જો સમ્યક્‌ ભાવિત જ્ઞાનીપુરુષ ન મળે તો ગામ યાવત્‌ રાજધાનીની બહાર પૂર્વ કે ઉત્તર દિશા તરફ અભિમુખ થઈ બે હાથ જોડી, મસ્તકે આવર્તન કરી, મસ્તકે અંજલી કરી આમ બોલે – આટલા મારા દોષ છે અને આટલીવાર મેં આ દોષોનું સેવન કરેલ છે. એમ બોલી અરિહંત અને સિદ્ધો સમક્ષ આલોચના કરે યાવત્‌ યથાયોગ્ય પ્રાયશ્ચિત્તરૂપ તપ સ્વીકારે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Gujarati 38 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे साहम्मिया एगओ विहरंति, एगे तत्थ अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवेत्ता आलोएज्जा, ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं।

Translated Sutra: ઘણા સાધર્મિક સાધુ સાથે વિચરતા હોય. તેમાં કોઈ અકૃત્યસ્થાન સેવી આલોચના કરે તો પ્રમુખ સ્થવિર, પ્રાયશ્ચિત્ત વહન કરાવે, બીજા સાધુ વૈયાવચ્ચ કરે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Gujarati 41 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परिहारकप्पट्ठियं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: પારિહારિક પ્રાયશ્ચિત્ત સેવી સાધુ જો રોગાદિ વડે પીડિત થઈ જાય તો ગણાવચ્છેદકને તેને ગણથી બહાર કરવા કલ્પતા નથી, પરંતુ જ્યાં સુધી તે રોગાંતકથી મુક્ત ન થઈ જાય ત્યાં સુધી તેની અગ્લાનભાવથી વૈયાવચ્ચ કરવી જોઈએ.પછી ગણાવચ્છેદક તે પારિહારિક સાધુને અતિ અલ્પ પ્રાયશ્ચિત્તમાં પ્રસ્થાપિત કરે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Gujarati 42 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अणवट्ठप्पं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: અનવસ્થાપ્ય સાધુ જો રોગાદિ વડે પીડિત થઈ જાય તો ગણાવચ્છેદકને તેને ગણથી બહાર કરવા કલ્પતા નથી, પરંતુ જ્યાં સુધી તે રોગાંતકથી મુક્ત ન થઈ જાય ત્યાં સુધી તેની અગ્લાનભાવથી વૈયાવચ્ચ કરવી જોઈએ.પછી ગણાવચ્છેદક તે અનવસ્થાપ્ય સાધુને અતિ અલ્પ પ્રાયશ્ચિત્તમાં પ્રસ્થાપિત કરે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Gujarati 43 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पारंचियं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पाइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: પારંચિત સાધુ જો રોગાદિ વડે પીડિત થઈ જાય તો ગણાવચ્છેદકને તેને ગણથી બહાર કરવા કલ્પતા નથી, પરંતુ જ્યાં સુધી તે રોગાંતકથી મુક્ત ન થઈ જાય ત્યાં સુધી તેની અગ્લાનભાવથી વૈયાવચ્ચ કરવી જોઈએ.પછી ગણાવચ્છેદક તે. પારંચિત સાધુને અતિ અલ્પ પ્રાયશ્ચિત્તમાં પ્રસ્થાપિત કરે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Gujarati 44 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] खित्तचित्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: વિક્ષિપ્ત ચિત્ત સાધુ જો રોગાદિ વડે પીડિત થઈ જાય તો ગણાવચ્છેદકને તેને ગણથી બહાર કરવા કલ્પતા નથી, પરંતુ જ્યાં સુધી તે રોગાંતકથી મુક્ત ન થઈ જાય ત્યાં સુધી તેની અગ્લાનભાવથી વૈયાવચ્ચ કરવી જોઈએ.પછી ગણાવચ્છેદક તે. વિક્ષિપ્ત ચિત્ત સાધુને અતિ અલ્પ પ્રાયશ્ચિત્તમાં પ્રસ્થાપિત કરે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Gujarati 45 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दित्तचित्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: દિપ્તચિત્ત સાધુ જો રોગાદિ વડે પીડિત થઈ જાય તો ગણાવચ્છેદકને તેને ગણથી બહાર કરવા કલ્પતા નથી, પરંતુ જ્યાં સુધી તે રોગાંતકથી મુક્ત ન થઈ જાય ત્યાં સુધી તેની અગ્લાનભાવથી વૈયાવચ્ચ કરવી જોઈએ.પછી ગણાવચ્છેદક તે. દિપ્તચિત્ત સાધુ ને અતિ અલ્પ પ્રાયશ્ચિત્તમાં પ્રસ્થાપિત કરે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Gujarati 46 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जक्खाइट्ठं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: યક્ષાવિષ્ટ સાધુ જો રોગાદિ વડે પીડિત થઈ જાય તો ગણાવચ્છેદકને તેને ગણથી બહાર કરવા કલ્પતા નથી, પરંતુ જ્યાં સુધી તે રોગાંતકથી મુક્ત ન થઈ જાય ત્યાં સુધી તેની અગ્લાનભાવથી વૈયાવચ્ચ કરવી જોઈએ.પછી ગણાવચ્છેદક તે. યક્ષાવિષ્ટ સાધુ ને અતિ અલ્પ પ્રાયશ્ચિત્તમાં પ્રસ્થાપિત કરે.
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उद्देशक-२ Gujarati 47 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उम्मायपत्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: ઉન્માદપ્રાપ્ત સાધુ જો રોગાદિ વડે પીડિત થઈ જાય તો ગણાવચ્છેદકને તેને ગણથી બહાર કરવા કલ્પતા નથી, પરંતુ જ્યાં સુધી તે રોગાંતકથી મુક્ત ન થઈ જાય ત્યાં સુધી તેની અગ્લાનભાવથી વૈયાવચ્ચ કરવી જોઈએ.પછી ગણાવચ્છેદક તે. ઉન્માદપ્રાપ્ત સાધુ ને અતિ અલ્પ પ્રાયશ્ચિત્તમાં પ્રસ્થાપિત કરે.
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उद्देशक-२ Gujarati 48 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उवसग्गपत्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: ઉપસર્ગપ્રાપ્ત સાધુ જો રોગાદિ વડે પીડિત થઈ જાય તો ગણાવચ્છેદકને તેને ગણથી બહાર કરવા કલ્પતા નથી, પરંતુ જ્યાં સુધી તે રોગાંતકથી મુક્ત ન થઈ જાય ત્યાં સુધી તેની અગ્લાનભાવથી વૈયાવચ્ચ કરવી જોઈએ.પછી ગણાવચ્છેદક તે. ઉપસર્ગપ્રાપ્ત સાધુ ને અતિ અલ્પ પ્રાયશ્ચિત્તમાં પ્રસ્થાપિત કરે.
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उद्देशक-२ Gujarati 49 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] साहिगरणं भिक्खूं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: કલહયુક્ત સાધુ જો રોગાદિ વડે પીડિત થઈ જાય તો ગણાવચ્છેદકને તેને ગણથી બહાર કરવા કલ્પતા નથી, પરંતુ જ્યાં સુધી તે રોગાંતકથી મુક્ત ન થઈ જાય ત્યાં સુધી તેની અગ્લાનભાવથી વૈયાવચ્ચ કરવી જોઈએ.પછી ગણાવચ્છેદક તે. કલહયુક્ત સાધુ ને અતિ અલ્પ પ્રાયશ્ચિત્તમાં પ્રસ્થાપિત કરે.
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उद्देशक-२ Gujarati 50 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सपायच्छित्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: પ્રાયશ્ચિત્તપ્રાપ્ત સાધુ જો રોગાદિ વડે પીડિત થઈ જાય તો ગણાવચ્છેદકને તેને ગણથી બહાર કરવા કલ્પતા નથી, પરંતુ જ્યાં સુધી તે રોગાંતકથી મુક્ત ન થઈ જાય ત્યાં સુધી તેની અગ્લાનભાવથી વૈયાવચ્ચ કરવી જોઈએ.પછી ગણાવચ્છેદક તે. પ્રાયશ્ચિત્તપ્રાપ્ત સાધુ ને અતિ અલ્પ પ્રાયશ્ચિત્તમાં પ્રસ્થાપિત કરે.
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उद्देशक-२ Gujarati 51 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भत्तपाणपडियाइक्खित्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: ભક્ત પ્રત્યાખ્યાની સાધુ જો રોગાદિ વડે પીડિત થઈ જાય તો ગણાવચ્છેદકને તેને ગણથી બહાર કરવા કલ્પતા નથી, પરંતુ જ્યાં સુધી તે રોગાંતકથી મુક્ત ન થઈ જાય ત્યાં સુધી તેની અગ્લાનભાવથી વૈયાવચ્ચ કરવી જોઈએ.પછી ગણાવચ્છેદક તે. ભક્ત પ્રત્યાખ્યાની સાધુ ને અતિ અલ્પ પ્રાયશ્ચિત્તમાં પ્રસ્થાપિત કરે.
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उद्देशक-२ Gujarati 52 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठजायं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: પ્રયોજનાવિષ્ટ સાધુ જો રોગાદિ વડે પીડિત થઈ જાય તો ગણાવચ્છેદકને તેને ગણથી બહાર કરવા કલ્પતા નથી, પરંતુ જ્યાં સુધી તે રોગાંતકથી મુક્ત ન થઈ જાય ત્યાં સુધી તેની અગ્લાનભાવથી વૈયાવચ્ચ કરવી જોઈએ.પછી ગણાવચ્છેદક તે. પ્રયોજનાવિષ્ટ સાધુ ને અતિ અલ્પ પ્રાયશ્ચિત્તમાં પ્રસ્થાપિત કરે.
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उद्देशक-२ Gujarati 59 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो साहम्मिया एगओ विहरंति, एगे तत्थ अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा–अहं णं भंते! अमुगेणं साहुणा सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पडिसेवी। से य पुच्छियव्वे किं अज्जो! पडिसेवी उदाहु अपडिसेवी? से य वएज्जा–पडिसेवी, परिहारपत्ते। से य वएज्जा–नो पडिसेवी, नो परिहारपत्ते। जं से पमाणं वयइ से पमाणाओ घेतव्वे। से किमाहु भंते! सच्चपइण्णा ववहारा।

Translated Sutra: બે સાધર્મિક સાથે વિચરતા હોય, તેમાં કોઈ એક સાધુ કોઈ અકૃત્ય સ્થાનને સેવીને આલોચના કરે – ‘‘ભગવાન! મેં અમુક સાધુ સાથે અમુક કારણે દોષનું સેવન કરેલ છે.’’ ત્યારે બીજા સાધુને પૂછ્યું કે – ‘‘શું તમે પ્રતિસેવી છો કે અપ્રતિસેવી?’’ જો તે કહે કે, ‘‘હું પ્રતિસેવી છું’’ તો તે પ્રાયશ્ચિત્ત પાત્ર થાય છે. જો એમ કહે કે, ‘‘હું પ્રતિસેવી
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उद्देशक-३ Gujarati 67 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य इच्छेज्जा गणं धारेत्तए, नो से कप्पइ थेरे अनापुच्छित्ता गणं धारेत्तए, कप्पइ से थेरे आपुच्छित्ता गणं धारेत्तए। थेरा य से वियरेज्जा एवं से कप्पइ गणं धारेत्तए, थेरा य से नो वियरेज्जा एवं से नो कप्पइ गणं धारेत्तए। जण्णं थेरेहिं अविइण्णं गणं धारेज्जा, से संतरा छेओ वा परिहारो वा।

Translated Sutra: જો કોઈ સાધુ ગણ ધારણ કરવા ઇચ્છે તો તેમને સ્થવિરોને પૂછ્યા વિના ગણ ધારણ કરવો ન કલ્પે. જો સ્થવિર અનુજ્ઞા પ્રદાન કરે તો ગણ ધારણ કરવો ન કલ્પે. જો સ્થવિર આજ્ઞા ન આપે તો ગણ ધારણ કરવો કલ્પતો નથી. જો કોઈ સ્થવિરોની અનુજ્ઞા પ્રાપ્ત કર્યા વિના જ ગણ ધારણ કરે છે, તો તે સાધુ તે મર્યાદાના ઉલ્લંઘનને કારણે છેદ કે તપ પ્રાયશ્ચિત્તને
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उद्देशक-४ Gujarati 107 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए गिलायमाणे अन्नयरं वएज्जा–अज्जो! ममंसि णं कालगयंसि समाणंसि अयं समुक्कसियव्वे। से य समुक्कसणारिहे समुक्कसियव्वे, से य नो समुक्कसणारिहे नो समुक्कसियव्वे। अत्थियाइं त्थ अन्ने केइ समुक्कसणारिहे से समुक्क-सियव्वे, नत्थियाइं त्थ अन्ने केइ समुक्कसणारिहे से चेव समुक्कसियव्वे। तंसि च णं समुक्किट्ठंसि परो वएज्जा–दुस्समुक्किट्ठं ते अज्जो! निक्खिवाहि। तस्स णं निक्खिवमाणस्स नत्थि केइ छेए वा परिहारे वा। जे तं साहम्मिया अहाकप्पेणं नो उट्ठाए विहरंति सव्वेसिं तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: રોગગ્રસ્ત આચાર્ય કે ઉપાધ્યાય કોઈ મુખ્ય સાધુને કહે કે, ‘હે આર્ય ! મારા કાળધર્મ પછી અમુક સાધુને મારા પદ ઉપર સ્થાપિત કરજો.’ જો આચાર્ય દ્વારા નિર્દિષ્ટ તે સાધુને પદ ઉપર સ્થાપન કરવાને યોગ્ય હોય તો તેને સ્થાપિત કરવો જોઈએ. જો તે એક પદ ઉપર સ્થાપન કરવાને યોગ્ય ન હોય તો તેને સ્થાપિત કરવા ન જોઈએ. જો સંઘમાં અન્ય કોઈ સાધુને
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उद्देशक-४ Gujarati 108 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए ओहायमाणे अन्नयरं वएज्जा–अज्जो! ममंसि णं ओहावियंसि समाणंसि अयं समुक्कसियव्वे। से य समुक्कसणारिहे समुक्कसियव्वे, से य नो समुक्कसणारिहे नो समुक्कसियव्वे। अत्थियाइं त्थ अन्ने केइ समुक्कसणारिहे से समुक्कसियव्वे, नत्थियाइं त्थ अन्ने केइ समुक्कसणारिहे से चेव समुक्कसियव्वे। तंसि च णं समुक्किट्ठंसि परो वएज्जा– दुस्समुक्किट्ठं ते अज्जो! निक्खिवाहि। तस्स णं निक्खिवमाणस्स नत्थि केई छेए वा परिहारे वा। जे तं साहम्मिया अहाकप्पेणं नो उट्ठाए विहरंति सव्वेसिं तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: સંયમનો પરિત્યાગ કરી જનારા આચાર્ય કે ઉપાધ્યાય કોઈ મુખ્ય સાધુને કહે હે આર્ય! મારા ચાલ્યા ગયા પછી અમુક સાધુને મારા પદ ઉપર સ્થાપિત કરજો, જો આચાર્ય દ્વારા નિર્દિષ્ટ તે સાધુને પદ ઉપર સ્થાપન કરવાને યોગ્ય હોય તો તેને સ્થાપિત કરવો જોઈએ. જો તે એક પદ ઉપર સ્થાપન કરવાને યોગ્ય ન હોય તો તેને સ્થાપિત કરવા ન જોઈએ. જો સંઘમાં
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उद्देशक-४ Gujarati 112 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा तं च केइ साहम्मिए पासित्ता वएज्जा–कं अज्जो! उवसंपज्जित्ताणं विहरसि? जे तत्थ सव्वराइणिए तं वएज्जा। राइणिए तं वएज्जा–अह भंते! कस्स कप्पाए? जे तत्थ सव्वबहुसए तं वएज्जा, जं वा से भगवं वक्खइ तस्स आणा-उववाय वयणनिद्देसे चिट्ठिस्सामि।

Translated Sutra: વિશિષ્ટ જ્ઞાનપ્રાપ્તિને માટે જો કોઈ સાધુ પોતાનો ગણ છોડીને બીજા ગણને સ્વીકાર કરી વિચરતો હોય તે સમયે તેને જો કોઈ સ્વધર્મી સાધુ મળે અને પૂછે કે – હે આર્ય ! તમે કોની નિશ્રામાં વિચરો છો ? ત્યારે તે એ ગણમાં જે દીક્ષામાં સૌથી મોટા હોય તેનું નામ કહે. જો તે ફરી પૂછે કે હે ભદંત ! કયા બહુશ્રુતની મુખ્યતામાં રહેલા છો ? ત્યારે
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उद्देशक-५ Gujarati 139 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पवत्तिणी य गिलायमाणी अन्नयरं वएज्जा–मए णं अज्जे! कालगयाए समाणीए इयं समुक्कसियव्वा। सा य समुक्कसणारिहा समुक्कसियव्वा, सा य नो समुक्कसणारिहा नो समुक्क-सियव्वा। अत्थियाइं त्थ अण्णा काइ समुक्कसणारिहा सा समु-क्कसियव्वा, नत्थियाइं त्थ अन्ना काइ समुक्कसणारिहा सा चेव समुक्कसियव्वा। ताए व णं समुक्किट्ठाए परा वएज्जा–दुस्समुक्किट्ठं ते अज्जे! निक्खिवाहि? तीसे णं निक्खिवमाणीए नत्थि केइ छेए वा परिहारे वा। जाओ तं साहम्मिणीओ अहाकप्पे णं नो उट्ठाए विहरंति सव्वासिं तासिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: બીમાર પ્રવર્તિની કોઈ પ્રમુખ સાધ્વીને કહે હે આર્ય! મારા કાળધર્મ બાદ અમુક સાધ્વીને મારા પદ ઉપર સ્થાપિત કરવી. જો પ્રવર્તિનીએ કહેલ તે સાધ્વી તે પદે સ્થાપના માટે યોગ્ય હોય તો તેને સ્થાપિત કરવી જોઈએ. જો તે એ પદે સ્થાપન કરવાને યોગ્ય ન હોય તો તેને સ્થાપિત ન કરવી. જો સમુદાયમાં બીજા કોઈ સાધ્વી તે પદને યોગ્ય હોય તો સ્થાપિત
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उद्देशक-५ Gujarati 140 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पवत्तिणी य ओहायमाणी अन्नयरं वएज्जा–मए णं अज्जे! ओहावियाए समाणीए इयं समुक्कसियव्वा। सा य समुक्कसणारिहा समुक्कसियव्वा, सा य नो समुक्कसणारिहा नो समुक्क-सियव्वा। अत्थियाइं त्थ अण्णा काइ समुक्कसणारिहा सा समुक्कसियव्वा, नत्थियाइं त्थ अण्णा काइ समुक्कसणारिहा सा चेव समुक्कसियव्वा। ताए व णं समुक्किट्ठाए परा वएज्जा–दुस्समुक्किट्ठं ते अज्जे! निक्खिवाहि तीसे णं निक्खिवमाणीए नत्थि केइ छेए वा परिहारे वा। जाओ तं साहम्मिणीओ अहाकप्पे णं नो उट्ठाए विहरंति सव्वासिं तासिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: સંયમનો ત્યાગ કરીને જનારી પ્રવર્તિની કોઈ મુખ્ય સાધ્વીને કહે કે હે આર્ય! હું ચાલી જઉં પછી અમુક સાધ્વીને મારા પદ ઉપર સ્થાપિત કરજો. જો પ્રવર્તિનીએ કહેલ તે સાધ્વી તે પદે સ્થાપના માટે યોગ્ય હોય તો તેને સ્થાપિત કરવી જોઈએ. જો તે એ પદે સ્થાપન કરવાને યોગ્ય ન હોય તો તેને સ્થાપિત ન કરવી. જો સમુદાયમાં બીજા કોઈ સાધ્વી તે
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उद्देशक-५ Gujarati 141 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथीए नवडहरतरुणियाए आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भट्ठे सिया। सा य पुच्छियव्वा–केण ते अज्जे! कारणेणं आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भट्ठे? किं आबाहेणं उदाहु पमाएणं? सा य वएज्जा–नो आबाहेणं, पमाएणं। जाव-ज्जीवं तीसे तप्पत्तियं नो कप्पइ पवत्तिणित्तं वा गणावच्छेइणित्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। सा य वएज्जा–आबाहेणं, नो पमाएणं। सा य संठवेस्सामी ति संठवेज्जा, एवं से कप्पइ पवत्तिणित्तं वा गणावच्छेइणित्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। सा य संठवेस्सामी ति नो संठवेज्जा, एवं से नो कप्पइ पवत्तिणित्तं वा गणावच्छेइणित्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: નવદીક્ષિત, બાલ અને તરુણ સાધ્વીને જો આચારપ્રકલ્પ અધ્યયન ભૂલાઈ જાય તો તેણીને પૂછવું કે હે આર્યા ! તું કયા કારણે આચારપ્રકલ્પ અધ્યયન ભૂલી ગઈ છો, કોઈ કારણથી ભૂલી છો કે પ્રમાદથી? જો તેણી કહે કે કોઈ કારણથી નહીં પણ પ્રમાદથી ભૂલી ગયેલી છું. તો તેણીને તે કારણે જીવન પર્યન્ત પ્રવર્તિની કે ગણાવચ્છેદણી પદ આપવું કે ધારણ કરવું
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उद्देशक-५ Gujarati 142 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथस्स नवडहरतरुणस्स आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भट्ठे सिया। से य पुच्छियव्वे–केण ते अज्जो! कारणेणं आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भट्ठे? किं आबाहेणं उदाहु पमाएणं? से य वएज्जा–नो आबाहेणं, पमाएणं। जावज्जीवं तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। से य वएज्जा–आबाहेणं, नो पमाएणं। से य संठवेस्सामी ति संठवेज्जा, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। से य संठवेस्सामी ति नो संठवेज्जा, एवं से नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: નવદીક્ષિત, બાલ, તરુણ સાધુ જો આચારપ્રકલ્પ અધ્યયન ભૂલી જાય તો તો તેણીને પૂછવું કે હે આર્ય ! તું કયા કારણે આચારપ્રકલ્પ અધ્યયન ભૂલી ગયો છો, કોઈ કારણથી ભૂલ્યો છો કે પ્રમાદથી? જો તે કહે કે કોઈ કારણથી નહીં પણ પ્રમાદથી ભૂલી ગયેલ છું. તો તેને તે કારણે જીવન પર્યન્ત આચાર્ય યાવત્‌ ગણાવચ્છેદક પદ આપવું કે ધારણ કરવું ન કલ્પે. જો
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उद्देशक-६ Gujarati 149 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झायस्स गणंसि पंच अइसेसा पन्नत्ता, तं जहा–आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स पाए निगिज्झिय-निगिज्झिय पप्फोडेमाणे वा पमज्जेमाणे वा नातिक्कमति। आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स उच्चार-पासवणं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा नातिक्कमति आयरिय-उवज्झाए पभू वेयावडियं इच्छाए करेज्जा इच्छाए नो करेज्जा। आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नातिक्कमति। आयरिय-उवज्झाए बाहिं उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नातिक्कमति।

Translated Sutra: આચાર્ય અને ઉપાધ્યાયને ગણમાં પાંચ અતિશય કહેવાયેલા છે. જેમ કે આચાર્ય અને ઉપાધ્યાય – ૧. ઉપાશ્રયમાં ધૂળવાળા પગે આવે પછી પોતાના પગોને કપડાંથી પોંછે કે પ્રમાર્જે તો મર્યાદા ભંગ ન થાય. ૨. ઉપાશ્રયમાં મળમૂત્ર ત્યાગે કે શુદ્ધિ કરે. ૩. ઇચ્છા હોય તો વૈયાવચ્ચ કરે, ન ઇચ્છા હોય તો ન કરે તો પણ સશક્ત એવા તેમને મર્યાદા ભંગ ન થાય. ૪.
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उद्देशक-६ Gujarati 150 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइयस्स गणंसि दो अइसेसा पन्नत्ता, तं जहा–गणावच्छेइए अंतो उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नातिक्कमति। गणावच्छेइए बाहिं उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नातिक्कमति।

Translated Sutra: ગણમાં ગણાવચ્છેદકના બે અતિશય કહેલા છે. જેમ કે ૧. ઉપાશ્રયમાં કે ૨. ઉપાશ્રય બહાર કારણ વિશેષથી જો એક કે બે રાત્રિ એકલા રહે તો મર્યાદા ઉલ્લંઘન ન થાય.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Gujarati 163 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए, कप्पइ ण्हं पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए। जत्थेव अन्नमन्नं पासेज्जा तत्थेव एवं वएज्जा–अह णं अज्जो! तुमए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पच्चक्खं संभोगं विसंभोगं करेमि। से य पडितप्पेज्जा एवं से नो कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए। से य नो पडितप्पेज्जा एवं से कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए।

Translated Sutra: જે સાધુ – સાધ્વી સાંભોગિક છે. તેમાં નિર્ગ્રન્થને પરોક્ષમાં સાંભોગિક વ્યવહાર બંધ કરીને તેમને વિસંભોગી કરવા કલ્પે છે. તેમને પ્રત્યક્ષ કહે કે – હે આર્ય ! હું અમુક કારણથી તમારી સાથે સાંભોગિક વ્યવહાર બંધ કરીને તને વિસંભોગી કરું છું.’ એમ કહેવાથી જો તે પશ્ચાત્તાપ કરે તો પ્રત્યક્ષમાં પણ તેને વિસંભોગી કરવો ન કલ્પે. પણ
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उद्देशक-७ Gujarati 164 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जाओ निग्गंथीओ वा निग्गंथा वा संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए, कप्पइ ण्हं पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए। जत्थेव ताओ अप्पणो आयरिय-उवज्झाए पासेज्जा, तत्थेव एवं वएज्जा– अह णं भंते! अमुगीए अज्जाए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पारोक्खं पाडिएक्कं संभोगं विसंभोगं करेमि। सा य से पडितप्पेज्जा एवं से नो कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए। सा य से नो पडितप्पेज्जा एवं से कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए।

Translated Sutra: જે સાધુ – સાધ્વી સાંભોગિક છે. તેમાં સાધ્વીને પ્રત્યક્ષમાં માંડલી વ્યવહાર બંધ કરી વિસંભોગી કરવી ન કલ્પે. પરંતુ પરોક્ષમાં વિસંભોગી કરવી કલ્પે છે. જ્યારે તે પોતાના આચાર્ય કે ઉપાધ્યાય પાસે જાય ત્યારે તેમને એમ કહે કે – હું અમુક સાધ્વી સાથે અમુક કારણે પરોક્ષ રૂપમાં સાંભોગિક વ્યવહાર બંધ કરી તેને વિસંભોગી કરવા
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उद्देशक-८ Gujarati 202 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठ कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे अप्पाहारे। बारस कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे अवड्ढोमोयरिए, सोलस कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे दुभागपत्ते। चउवीसं कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे ओमोयरिए। एगतीसं कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे किंचूणो-मोयरिए। बत्तीसं कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे पमाणपत्ते। एत्तो एगेण वि घासेणं ऊणगं आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे नो पकामभोइ

Translated Sutra: પોતાના મુખ પ્રમાણ આઠ કવલ આહાર કરવાથી અલ્પાહાર કહેવાય છે. પોતાના મૂળ પ્રમાણ બાર કવલ આહાર કરવાથી કંઈક અધિક અર્ધ ઉણોદરિકા કહેવાય છે. પોતાના મુખ પ્રમાણ સોળ કવલ આહાર કરવાથી બે ભાગ પ્રાપ્ત આહાર અને (બે ભાગ પ્રાપ્ત) અર્ધ ઉણોદરી કહેવાય છે. ચોવીશ કવલ આહાર કરવાથી એક ભાગ ઉણોદરી કહેવાય છે. ૩૧ કવલ આહારથી કંઈક ઉણોદરી કહેવાય
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उद्देशक-१० Gujarati 251 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचविहे ववहारे पन्नत्ते तं जहा–आगमे सुए आणा धारणा जीए। जहा से तत्थ आगमे सिया, आगमेणं ववहारं पट्ठवेज्जा। नो से तत्थ आगमे सिया, जहा से तत्थ सुए सिया, सुएणं ववहारं पट्ठवेज्जा। नो से तत्थ सुए सिया, जहा से तत्थ आणा सिया, आणाए ववहारं पट्ठवेज्जा। नो से तत्थ आणा सिया, जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहारं पट्ठवेज्जा। नो से तत्थ धारणा सिया, जहा से तत्थ जीए सिया, जीएणं ववहारं पट्ठवेज्जा। इच्चेतेहिं पंचहिं ववहारेहिं ववहारं पट्ठवेज्जा, तं जहा–आगमेणं सुएणं आणाए धारणाए जीएणं। जहा-जहा से आगमे सुए आणा धारणा जीए तहा-तहा ववहारे पट्ठवेज्जा। से किमाहु भंते? आगमबलिया समणा निग्गंथा। इच्चेयं

Translated Sutra: વ્યવહારમાં પાંચ પ્રકારે કહેલ છે, જેમ કે – ૧. આગમ, ૨. શ્રુત, ૩. આજ્ઞા, ૪. ધારણા, ૫. જીત ૧. જ્યાં આગમજ્ઞાની હોય, ત્યાં તેમના નિર્દેશાનુસાર વ્યવહાર કરે, ૨. જ્યાં આગમજ્ઞાની ન હોય ત્યાં શ્રુતજ્ઞાનીના નિર્દેશાનુસાર વ્યવહાર કરવો, ૩. જ્યાં શ્રુતજ્ઞાની ન હોય ત્યાં ગીતાર્થની આજ્ઞા અનુસાર વ્યવહાર કરવો, ૪. જ્યાં ગીતાર્થની આજ્ઞા
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